अंपायर जिसे मिला ‘स्लो डेथ’ नाम, सचिन तेंदुलकर को गलत आउट देने के लिए रहा बदनाम,

नई दिल्ली. क्रिकेट के खेल में जितना महत्व प्लेयर्स का है उतना ही अंपायर का. यह अंपायर ही हैं जो मैदान पर खेल का नियमों के तहत संचालन सुनिश्चित करते हैं. अक्सर अंपायर के निर्णय से खिलाड़ी सहमत नहीं होते लेकिन इसकी परवाह किए बिना उसका दायित्व खेल के हित में बेहतर फैसला देना होता है. आधुनिक हो रहे क्रिकेट में आज अंपायर्स के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं और उनके फैसलों को तकनीक की कसौटी पर परखा जाने लगा है. इसके बावजूद अंपायर की महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता. मैदान पर अंपायर ही है तो किसी गेंद के एंगल, दिशा और गति को बेहतर तरीके से जज करने की स्थिति में होता है.
क्रिकेट में ऐसे कई अंपायर हुए हैं जिन्होंने अपने बेहतरीन फैसलों से प्लेयर्स और फैंस का सम्मान हासिल किया. इनमें इंग्लैंड के डिकी वर्ड और साइमन टफेल का नाम अहम है. इससे इतर कई अंपायर फैसले देने के अपने अंदाज और विवादों के कारण भी चर्चा हासिल कर चुके हैं. नजर डालते हैं ऐसे प्रमुख अंपायरों पर..
टीम इंडिया के लिए ‘शुभ’,’मन’ को जीतने वाला भी, प्रिंस की तरह है लाइफ स्टाइल
स्टीव बकनर : मिला था ‘स्लो डेथ’ का नाम
जमैका के स्टीव बकनर (Steve Bucknor) को फैसले देने में पर्याप्त समय लेने के चलते ‘स्लो डेथ’ का उपनाम मिला था. कई बार तो अपील पर आउट देने में उन्होंने इतना समय लिया कि बॉलर और फील्डर भी अपने पक्ष में फैसला आने की उम्मीद खो बैठे थे. क्रिकेट के अलावा बकनर फुटबॉल मैचों में भी रैफरी की भूमिका निभा चुके हैं. उनके नाम 128 टेस्ट मैचों में अंपायरिंग करने का रिकॉर्ड है. करीब दो दशक के अंपायरिंग करियर के दौरान 182 वनडे मैचों में भी वे अंपायर रहे. वर्ष 1992 से 2007 के बीच लगातार पांच क्रिकेट वर्ल्डकप के फाइनल में अंपायरिंग करने का श्रेय बकनर को हासिल है. करियर की शुरुआत में बकनर को अपने फैसलों के लिए सम्मान हासिल था लेकिन समय गुजरने के साथ उनके फैसलों पर सवाल उठने लगे. मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को कई बार उनके गलत फैसलों को शिकार होना पड़ा. एक बार उन्होंने सचिन को तब विकेट के पीछे आउट करार दिया था जब गेंद बल्ले से काफी दूर थी. इन फैसलों के बाद भारत के खिलाफ मैचों में बकनर को अंपायर नहीं बनाया गया.
डेब्यू टेस्ट और वनडे में जड़ा शतक, 16 टेस्ट में 4 सैकड़े फिर अचानक…
बिली बोडेन : आउट और चौका-छक्का देने का खास अंदाज
न्यूजीलैंड के बिली बोडेन (Billy Bowden) की गिनती भी दुनिया के सम्मानित अंपायरों में होती है. अंपायरों के एलीट पैनल का वे हिस्सा रहे. बोडेन को रोचक अंदाज में फैसले/सिग्नल देने के लिए जाना जाता था. किसी बैटर को आउट करार देते समय बोडेन, दूसरे अंपायरों से अलग अपने दाएं हाथ की उंगली को टेढ़ा रखते थे. यह अंदाज कुछ यूं था मानो किसी को फांसी पर लटकाने का फरमान सुना रहे हों. इसी तरह चौका देते हुए वे हाथों को चारों दिशा में लहराते थे जबकि छक्का देते समय आम अंपायरों की तरह हाथों को धीरे-धीरे उठाकर ऊपर ले जाते थे. क्रिकेट प्रेमियों को बोडेन के सिग्नल देने का यह अंदाज बहुत पसंद आता था. बोडेन के इस तरह से सिग्नल देने की वजह उनका गठिया रोग से ग्रस्त होना था, इस कारण तेजी से हाथ उठाने में उन्हें दिक्कत होती थी. ऐसे में उन्होंने इस स्टाइल को अपनाया जो बाद में उनका ट्रेडमार्क बनी. दुबले-पतले शरीर वाले बिली ने 84 टेस्ट मैचों, 200 वनडे और 24 टी20 मैचों में ग्राउंड अंपायर की भूमिका निभाई.
विराट की भारत और आरसीबी की कप्तानी के अजब संयोग, कभी अर्श तो कभी फर्श पर…
डेविड शेफर्ड : हास्यबोध के लिए थे मशहूर
हास्य बोध के लिए मशहूर इंग्लैंड के डेविड राबर्ट शेफर्ड (David Shepherd) ने 92 टेस्ट और 172 वनडे में ग्राउंड अंपायर की भूमिका निभाई. अंपायरिंग में हाथ आजमाने से पहले भारी-भरकम कद काठी के शेफर्ड एक काउंटी टीम के लिए बैटर की हैसियत से भी खेल चुके हैं. क्रिकेट मैदान में किसी टीम का स्कोर ‘नेल्सन’ (एक जैसे नंबर जैसे 111, 222, 333 या 444 ) होने पर वे बारी-बारी से एक पैर को उठाते थे. मैदान और टीवी पर मैच देख रहे दर्शकों के लिए यह मनोरंजन से भरपूर क्षण होता था. मान्यताओं के अनुसार, नेल्सन नंबर को ‘पनौती’ या खराब नंबर माना जाता है. ‘नेल्सन’ नाम एडमिरल नेल्सन पर रखा गया था. ऐसा कहा जाता है कि कई जंग लड़ने वाले नेल्सन की एक आंख, एक पैर और एक हाथ नहीं था. बाद में क्रिकेट टीमों में 111 और इससे मिलते-जुलते मल्टीपल स्कोर (222 या 333) को पनौती माना जाने लगा. इसी पनौती को खत्म करने के लिए शेफर्ड बारी-बारी से एक पैर उठाते थे. अक्टूबर 2009 में शेफर्ड का निधन हो गया.
एक ही मैच में ब्रैडमैन के दो बड़े रिकॉर्ड तोड़ने से चूके थे सहवाग, यह था कारण
साइमन टफेल : फैसलों में बेहद सटीक
ऑस्ट्रेलिया के साइमन टफेल (Simon Taufel) को उनके फैसलों के उच्च स्तर के लिए क्रिकेट बिरादरी में काफी सम्मान मिला. अपने सटीक फैसलों के कारण उन्हें पांच बार आईसीसी अंपायर ऑफ द ईयर चुना गया. ऐसे मौके बेहद कम रहे जब टफेल का कोई फैसला रिव्यू के दौरान गलत साबित हुआ हो. टफेल ने 13 जनवरी 1999 को ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के वनडे मैच से अंपायरिंग करियर का आगाज किया और 74 टेस्ट, 174 वनडे व 34 टी20I में यह भूमिका निभाई. परिवार को अधिक समय देने की खातिर टफेल ने 2012 में अंपायरिंग को बाय-बाय कह दिया. वे इस समय ICC में अंपायर परफॉर्मेंस और ट्रेनिंग मैनेजर के रूप में सेवाएं दे रहे हैं.
क्रिकेटर जो तेज गेंदबाज थे और स्पिनर भी, इंटरनेशनल मैचों में निभाया ‘डबल रोल’
डेरेल हेयर : विवादों से रहा चोली-दामन का साथ
ऑस्ट्रेलिया के डेरेल हेयर (Darrell Hair) ऐसे अंपायर रहे जिनका विवादों से गहरा नाता रहा. श्रीलंका की क्रिकेट टीम के लिए तो वे विलेन की तरह रहे. 78 टेस्ट, 141 वनडे और 6 टी20I में ग्राउंड अंपायर का रोल निभाने वाले हेयर का नाम तब सुर्खियों में आया जब उन्होंने श्रीलंका के 1995-96 के ऑस्ट्रेलिया दौरे के मेलबर्न टेस्ट में मुरलीधरन की गेंदों को नोबॉल घोषित किया. इससे खफा होकर श्रीलंका के तत्कालीन कप्तान अर्जुन रणतुंगा मैच से अपनी टीम को बाहर लेकर चले गए थे. हेयर उस समय फिर विवादों में घिरे जब उन्होंने अगस्त 2006 में इंग्लैंड के खिलाफ ओवल टेस्ट में पाकिस्तान टीम पर बॉल टेम्परिंग का आरोप लगाया और इंग्लैंड को 5 रन अवॉर्ड कर दिए. इस फैसले पर विरोध जताते हुए इंजमाम उल हक की पाकिस्तान टीम ने मैदान पर लौटने से इनकार कर दिया था, फलस्वरूप इंग्लैंड को विजयी घोषित कर दिया गया. हेयर को 2003 में आईसीसी की अंपायर्स की एलीट पैनल में स्थान मिला था लेकिन एशियाई टीमों के खिलाफ कथित पूर्वाग्रह के कारण उन्हें कभी वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वे हकदार थे. 2008 में हेयर ने अंपायरिंग को अलविदा कह दिया.
.
Tags: Cricket, Darrell Hair, On This Day, Test cricket
FIRST PUBLISHED : March 1, 2024, 08:01 IST