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मोहब्बत की नगरी किसे देगी अपना दिल, कौन पहनेगा विजय का हार, जानें दलितों की राजधानी में किस्सा कुर्सी का

(योगेंद्र यादव/ Yodendra Yadav)
2024 के चुनावी चक्रव्यूह में हर दल अपनी-अपनी गोटियां बिछाने लगा है. कहीं विकास के सहारे विजय गाथा लिखने की तैयारी कर है तो कहीं जाति के सहारे जीत का जुगाड़ सेट किया जा रहा है. खासकर बात जब उत्तर प्रदेश की हो तो यहां जातिगत फैक्टर और अहम हो जाते हैं. हम जिस सीट के सियासी समीकरण को समझने की कोशिश कर रहे हैं कभी वो शहर भारत के सत्ता का सेंटर था. यानी मुगलों की राजधानी और बाद में इसे दलितों की राजधानी नाम दिया था बाबा साहेब आंबेडकर ने.

ये शहर है आगरा. जूता और पेठा बनाकर पहचान बनाने वाली ये नगरी दुनिया में ताजनगरी के नाम से भी मशहूर है. दुनिया के 7 अजूबों में से एक ताजमहल यहीं पर स्थित है. और यही ताज इसे बनाता है इंटनरेशनल सिटी. यूं तो मान्यता है कि आगरा महाभारत से मौजूद था लेकिन इतिहास कहता है कि 1504 में इस शहर को सिकंदर लोदी ने बसाया था और लोदी वंश ने तबतक इस शहर पर राज किया, जबतक कि मुगल बादशाह बाबर ने लोदी वंश की नींव नहीं उखाड़ी. अकबरा के बाद यानी आज का आगरा इतिहास में सत्ता का केंद्र रहा है.

आजादी के बाद का आगरा
स्वतंत्रता के बाद आगरा शहर में लोकतांकत्रिक तरीके से चुनाव हुए और तब से आगरा पर सियासी हार-जीत की जंग चल रही है. एक बार फिर आगरा का सियासी पारा गर्म है. आगरा लोकसभा चुनाव को लेकर माहौल गर्माया हुआ है. यहां गद्दी का खेल शुरू हो चुका है. लगभग 4 हजार 27 वर्ग किलोमीटर में फैली आगरा लोकसभा सीट कुल 5 विधानसभा सीटों को मिलाकर बनी है. इनमें आगरा छावनी, आगरा उत्तर, आगरा दक्षिण, एत्मादपुर और जलेसर विधानसभा सीट शामिल हैं. इन सभी विधानसभा सीटों को 2022 में भारतीय जनता पार्टी ने जीता था. ये इलाका बीजेपी का गढ़ है. आगरा लोकसभा की कुल आबादी में 71.25 प्रतिशत लोग शहरी 28.75 फीसदी वोटर ग्रामीण एरिया में रहते हैं.

2019 के लोकसभा के नतीजों में छिपा राज
वर्ष 2019 के लोकसभा के नतीजों को देखें तो यहां से भारतीय जनता पार्टी के एसपी सिंह बघेल को 6.46 लाख वोट के साथ बंपर जीत मिली थी. बहुजन समाज पार्टी के मनोज सोनी 4.35 लाख वोट के साथ दूसरे नंबर पर थे. इस चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन था. कांग्रेस के प्रीत हरित महज 45 हजार वोट पा कर तीसरे नंबर पर थे.

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आगरा में ये बीजेपी की ये लगातार तीसरी जीत थी. यहां की जनता ने सिर्फ उम्मीदवार बदला था पार्टी नहीं. आगरा की जनता मोदी युग से पहले ही कमल खिलाती रही है. इस बार भी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है क्योंकि बीजेपी ने अपनी पहली लिस्ट में पत्ते खोल दिए हैं, और एसपी सिंह बघेल को फिर से मैदान उतारा है. सपा-कांग्रेस गठबंधन से राकेश बघेल संभावित उम्मीदवार हैं. यानी बघेल Vs बघेल की टक्कर से आगरा का सियासी माहौल गर्म हो चुका है.

बीजेपी का गढ़ आगरा
आगरा के अबतक के चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो यहां से कुल 7 बार कांग्रेस और 6 बार बीजेपी को जीत मिली है. इस सीट पर समाजवादी पार्टी दो बार जीती तो जनता पार्टी ने एक बार जीत हासिल की. लेकिन हैरत की बात है कि दलित बाहुल्य इस इलाके में बीएसपी का खाता भी नहीं खुला. जो बताता है कि यहां कास्ट फैक्टर से कहीं ज्यादा कैंडिकेट और दल मैटर करता है. वैसे भी आगरा के सभी सांसद, सभी विधायक यहां तक की आगरा शहर की नगर निगम सरकार भी बीजेपी की ही है.

आगरा के जातिगत आंकड़ें
आगरा के जातिगत आंकड़ों को देखें तो यहां लगभग 3.15 लाख वैश्य, अनुसूचित जाति के 2.80 लाख मतदाता, जबकि मुस्लिम वोटर 2.70 लाख के करीब हैं. यानी कास्ट फैक्टर में मुस्लिम और दलित गठजोड़ बेहद निर्णायक है. यही वोटर हार-जीत तय करेंगे. लेकिन मोहब्बत की नगरी अपना दिल किसे देती है, किस दल के खाते में आगरा से विजय का खिताब जाएगा, ये तो यहां हुए विकास और स्थानीय मुद्दों को समझने पर ही पता चलेगा.

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आगरा का विकास
विकास की बात होते ही आगरा में मेट्रो की याद आती है. बीते 6 मार्च को ही बात है जब करीब 8,379 करोड़ की लागत वाली आगरा मेट्रो का उद्घाटन हुआ था. यानी विकास की बिसात पर बीजेपी ने जनता के सामने उस गेमचेंजर तस्वीर को सामने रखा जो मतदान के दिन हर शहरी मतदाता की आंखों में कौंध रही होगी. आगरा में 498 करोड़ रुपये की लागत से एयरपोर्ट भी तैयार किया जाएगा. ग्रेटर आगरा का भी प्रस्ताव हाल ही में पास हुआ है. लगातार नई सड़कें और पुल बन रहे हैं.स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काम हुआ है और सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज को एम्स की तर्ज पर चलाने की मंजूरी मिल चुकी है.

आगरा के स्थानीय मुद्दे
अबतक के नतीजे बताते हैं कि आगरा में जातिगत समीकरणों के उलट नतीजे आते रहे हैं. यानी मोहब्बत की नगरी के लोग अपनी अलग राजनीतिक पाठशाला चलाते हैं. बदले में शहर के विकास की बात करते हैं. यही वजह है कि 2024 के चुनाव में भी कई बड़े मुद्दे उम्मीदवारों के सामने होंगे जैसे कि पानी, बैराज और ट्रैफिक जाम. आगरा शहर में खारे पानी की समस्या लंबे समय से है. लंबे समय से आगरा बैराज बनाने की मांग हो रही है और आगरा पर्टकों की पहली पसंद है लिहाजा शहर में जाम भी एक बड़ा मुद्दा है

उद्यमियों की मांग
आगरा उद्यमियों का शहर है. तो ताजमहल के चलते भारी उद्योग नहीं लग सकते, किन पेठा और जूता उद्योग में आगरा खूब नाम कमा रहा है. में इन कारोबार से जुड़े कारोबारियों की अपनी सियासी राय है. हर के वाशिंदे और कारोबारी ये मानते हैं कि मोदी-योगी की जोड़ी ने आगरा में खूब विकास किया है.कानून व्यवस्था दुरस्त हुई तो महिला सुरक्षा का संकट खत्म हो गया. व्यापारी भी सुरक्षित हैं. एसपी सिंह बघेल भी बतौर सांसद अपनी परीक्षा में पास हैं, लेकिन जनता से इतर विपक्ष की अपनी राय और अपनी सियासत है जिसमें विरोध के बोल हैं.

आगरा की जनता हमेशा स्पष्ट जनादेश देती रही है. जिसे जीत मिली उसे बंपर जीत मिली और जो नहीं भाया उसे खाता खोलना भी मुश्किल हो गया. वैसे भी मेट्रो वाले तोहफे ने आगरा का दिल जीत लिया है. हालांकि 2024 के चक्रव्यूह में जनता किसे अपना किंग चुनती है ये तो आने वाले वक्त ही बताएगा.

(योगेंद्र यादव लगभग 8 वर्षों से टीवी पत्रकारिता में सक्रिय हैं. वर्तमान में News18 उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड में डिप्टी प्रोड्यूसर हैं. योगेंद्र ने न्यूज नेशन, ज़ी न्यूज और समाचार प्लस सहित कई संस्थानों विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दी हैं. आपने पत्रकारिता के साथ कामर्शियल एड फिल्म लेखन में भी काम किया है.)

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