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देश के अजेय किलों में से एक है जालौर का यह किला, दुश्मन कभी नहीं खोल पाए दरवाजा

सोनाली भाटी/जालौर: राजा-महाराजा लोग जब भी अपना किला बनवाते थे तो वो आसपास के बाकी किलों से अलग हटकर होते थे. सभी किलों में कुछ न कुछ ऐसा खास होता था जिनकी चर्चा आज भी होती है. ऐसा ही एक किला है राजस्थान का जालौर किला. इस किले का द्वार इतना मजबूत और सुरक्षित था कि दुश्मनों ने यहां कई बार हमला किया, लेकिन कभी इसका द्वार खोल नहीं पाए. किले की एक पहचान यह भी है कि यह देश के अजेय किलों में से एक है. इसके बारे में एक लोकप्रिय कहावत है कि आकाश को फट जाने दो, पृथ्वी उलटी हो जाएगी, लोहे के कवच को टुकड़ों में काट दिया जाएगा, शरीर को अकेले लड़ना होगा, लेकिन जालोर आत्मसमर्पण नहीं करेगा. चलिए जानते हैं जालौर किले से जुड़ी और जानकारी.

जालौर किले का इतिहास क्या है?जालौर किला सोनगिरि पहाड़ी पर 1200 मीटर की ऊंचाई में बना है. इतनी ऊंचाई पर होने से यहां से पूरे शहर बहुत शानदार दिखता है. किले के निर्माण को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ लोग इसे 8वीं सदी में बनाया गया बताते हैं और कुछ कहा कहना है कि यह 10वीं सदी का किला है. इसे “मारू” (रेगिस्तान) के नौ महलों में से एक बताया गया है जो परमार वंश के अधीन था.

8वीं सदी वालों के हिसाब से प्रतिहार क्षत्रिय वंश के सम्राट नागभट्ट प्रथम ने इस किले को बनवाकर जालौर को अपनी राजधानी बनाया था और जब प्रतिहार शासक जालौर से चले गए तो बाद में कई वंशों ने यहां अपना राज जमाया. 10वीं सदी वालों के हिसाब से इसे परमार वंश ने बनवाया था.

जालौर किले पर किसने राज किया?सूकड़ी नदी के तट पर बने जालौर किले पर गुर्जर, प्रतिहार, चालुक्य, परमार, चौहान, खिलजी, सोलंकियों, मुस्लिम सुल्तानों और राठौड़ों का राज रहा. जालौर का प्रसिद्ध शासक कान्हड़देव था जिसे अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का सामना करना पड़ा. खिलजी ने छल कपट से इस किले पर अधिकार जमा लिया था. इसके बाद मालदेव ने मुस्लिम शासक को भगाकर इस पर राठौड़ों का राज स्थापित किया.

कहते हैं कि जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर किले पर हमला किया तो कई राजपूत सैनिक मारे गए. उन सैनिकों की पत्नियां जलती हुई आग के तालाब में कूद गईं और खुद को उसी आग में जला दिया. उन्होंने दुश्मन सेना से अपने सम्मान को बचाने के लिए ऐसा किया था. यह राजपूत महिलाओं के बीच त्याग की एक लोकप्रिय परंपरा थी जिसे “जौहर” कहा जाता था.

यह किला सोनगिरि पहाड़ी पर बना होने के कारण इसे सोनगढ़ भी कहते हैं. पुराने शिलालेखों में जालौर का पुराना नाम जाबलिपुर और किले का नाम सुवर्णगिरि भी लिखा मिलता है. जालौर को जालहुर नाम से भी जाना जाता था और इस किले को सोहनगढ और सवर्णगिरी कनकाचल के नाम से भी जाना जाता है.

क्या है जालौर किले का मुख्य आकर्षण?किले का मुख्य आकर्षण अलाउद्दीन खिलजी का आवासीय पैलेस है. यह पैलेस भी अब उजड़ गया है. यहां गढ़वाली तोपें भी देखने को मिलेंगी. यहां पुराने जमाने के पीने के पानी के टैंक भी हैं. इसके अलावा यहां बने हिंदू मंदिरों, जैन मंदिर और मस्जिदों की मान्यता है. यानी यहां जितने भी शासक आए सभी ने अपने धर्म से जुड़े पवित्र स्थल बनवाए. खास बात यह रही कि किसी ने दूसरे के धार्मिक स्थलों को नुकसान नहीं पहुंचाया.

हिंदू वास्तुकला स्टाइल में बने इस किले के भीतर किला मस्जिद भी है. किले में संत रहमद अली बाबा का मंदिर है. मुख्य द्वार के पास एक प्रसिद्ध मुस्लिम संत मलिक शाह का मकबरा है. यहां बना जैन मंदिर जालौर के जैनियों का तीर्थस्थल भी है. इसके अलावा यहां आदिनाथ मंदिर, महावीर मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर और शांतिनाथ के प्रसिद्ध जैन मंदिर स्थित हैं. यहां एक पुराना शिव मंदिर भी बना हुआ है. जिसे कान्हड़देव ने बनवाया था. इसके अलावा जालौर के दुर्ग में महाराजा मानसिंह का महल, दो मंजिला रानी महल, पुराना जैन मन्दिर, चामुण्डा माता मंदिर, जोगमाया मन्दिर, परमार काल का कीर्ति स्तम्भ बने हुए हैं.

जालौर किले की खासियतकिले के बारे में कहा जाता है कि कोई भी दुश्मन इसके मजबूत द्वार को खोल नहीं पाया था. किले में चार विशाल द्वार हैं जिन्हें पोल कहा जाता है. इन सभी पोल को सूरज पोल, ध्रुव पोल, चांद पोल और सीर पोल नाम दिया गया है. सूरज पोल यानी “सूर्य द्वार” को इस तरह से बनाया गया है कि सुबह सूर्य की पहली किरणें इस द्वार में प्रवेश करें. हालांकि अभी किले में जाने के लिए एक ही द्वार का इस्तेमाल किया जाता है. किला जिस सोनगिरी पहाड़ी पर बना है वह एकदम खड़ी पहाड़ी है. इसलिए यहां पहुंचने के लिए 3 किमी लंबी सर्पीली चढ़ाई के बाद ही पहुंचा जा सकता है.

जालौर किले में है सभी धर्मों के पवित्र स्थानइस किले की एक खूबी यह है कि यहां लगभग अधिकतर धर्मों से जुड़े मंदिर, मस्जिद, मजार आदि बनाए गए हैं. इससे भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां अलग-अलग समय में जिन्होंने शासन किया सभी ने अपने-अपने धर्म से जुड़े धार्मिक स्थलों का निर्माण कराया.

जालौर किला घूमने का सबसे अच्छा समयअगर आप जालौर फोर्ट और जालौर के अन्य डेस्टिनेशन में घूमने का प्लान कर रहे है तो अक्टूबर से मार्च का समय बेस्ट रहता है. गर्मी और बरसात के मौसम में अमूमन लोग घूमना पसंद नहीं करते हैं और राजस्थानी इलाका गर्मी में और गर्म होता है. जालौर किला सुबह 5 बजे से शाम 5 बजे तक जा सकते हैं.

जालौर किला कैसे पहुंचेयहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है जो जलौर से 141 किमी दूर है. यहां से किला के लिए कैब और टैक्सी ले सकते हैं. इसके अलावा रोडवेज बस , प्राइवेट बस और निजी साधनों से भी जा सकते हैं. निकटतम रेलवे स्टेशन जोधपुर है, जो भारत के सभी प्रमुख रेल नेटवर्कों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. इसलिए यहां आने में कोई परेशानी नहीं होगी.

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FIRST PUBLISHED : August 3, 2024, 18:28 IST

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