इस मंदिर में है चमत्कारी कुंआ, नहाने से ठीक होते हैं चर्म रोग

मनीष पुरी/भरतपुर: देश में बने पुराने मंदिरों से कोई न कोई अनोखी कहानी जरूर जुड़ी है. कहीं लोगों मन्नत पूरी होती है तो कहीं के मंदिर को किसी समय उसके चमत्कारी होने के चलते पूजा जाता है. राजस्थान के भरतपुर जिले में में शीतला माता का मंदिर भी ऐसी ही चमत्कारी कहानियों से भरा है. इस मंदिर का सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि शीतला माता की मूर्ति के सामने एक कुआं है और उसके जल को पवित्र तो माना ही जाता है और वह बीमारी के इलाज में भी काम आता है.
इसलिए अद्भुत माना जाता है इस कुंए का पानीकहते हैं कि इस कुएं के पानी में रोगों को दूर की अद्भुत क्षमता है. पानी को इसलिए अद्भुत माना जाता है कि इस कुंए से शीतला माता प्रकट हुई थी और लोगों को दर्शन दिया था. वैसे तो भारत से चेचक खत्म हो चुका है लेकिन उसके बाद भी कई लोगों को चेचक या चिकन पॉक्स हो जाता है. कहते हैं कि इस कुएं के पानी से नहाने और मुंह धोने से चेचक, उसके दाग, धब्बे और चर्म रोग आदि बीमारियां बिल्कुल ठीक हो जाती हैं.
यह मंदिर भरतपुर जिला से लगभग 45 किलोमीटर दूर ब्रह्मबाद में है. चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यहां पर विशाल लक्खी मेला लगता है. मेले में राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों के लोग शीतला मां के दर्शन करने और जल से स्नान करने आते हैं.
हर साल यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं और अधिकांश लोग कुएं का पानी पीते हैं. यह एक अनोखा अनुभव है जो लोगों को इस स्थान को लेकर चमत्कारों की अनुभूति कराता है. कैला मां के दर पर जाने वाले लोग पहले भरतपुर के शीतला माता मंदिर पर हाजिरी लगाते हैं. लोग यहां कुएं पानी से नहाते हैं और आराम कर अपनी थकान मिटाते हैं और फिर कैला देवी के लिए रवाना हो जाते हैं.
ठंडे पकवानों का भोग लगाकर मांगते हैं मन्नतयहां के लोग शीतलाष्टमी यानी बास्योड़ा का पर्व मनाते हैं. इस अवसर पर शीतला माता को ठण्डे पकवानों का भोग लगाकर मन्नत मांगी जाती है. महिलाएं एक दिन पहले शाम को घरों में पकवान बना लेती हैं और फिर अगले दिन उन ठंडे पकवानों का भोग लगाकर परिवार की सुख समृद्धि के लिए मन्नतें मांगती हैं. पूजा के बाद एक दूसरे को बास्योड़ा का प्रसाद देते हैं. पकवानों में पूआ, पूरी, कचौडी, मीठे चावल, आलू के पराठे, सब्जी और कढी आदि होता है.
शीतला मां की मान्यताशीतला माता एक प्रसिद्ध देवी हैं. इन्हें संक्रामक रोगों से बचाने वाली देवी कहा जाता है. स्कंद पुराण में इनका जिस तरह से वर्णन किया गया है उसके अनुसार इन्हें स्वच्छता की देवी भी कहा जा सकता है. देहात के इलाकों में तो स्मालपोक्स (चेचक) को माता, मसानी, शीतला माता आदि नामों से जाना जाता है. मान्यता है कि शीतला माता के कोप से ही यह रोग पनपता है इसलिये इस रोग से मुक्ति के लिये आटा, चावल, नारियल, गुड़, घी इत्यादि माता के नाम पर रोगी श्रद्धालुओं से रखवाया जाता है.
पौराणिक ग्रंथों में प्राचीन काल से ही शीतला माता का महत्व बहुत अधिक माना गया है. स्कंद पुराण के अनुसार इनका वाहन गधा बताया गया है. ये अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू औप नीम के पत्ते धारण करती हैं. इन सब का चेचक जैसे रोग से सीधा संबंध भी है एक और कलश का जल शीतलता देता है तो सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाड़ू से जो छोटे-छोटे फोड़े निकलते हैं वो फट जाते हैं नीम के पत्ते उन फोड़ों में सड़न नहीं होने देते. यही मान्यता है कि माता शीतला की कृपा से रोगी के रोग नष्ट हो जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : August 6, 2024, 19:05 IST