हल्दीघाटी को ऐसे ही नहीं कहा जाता मेवाड़ की आन-बान-शान, जुड़ी है ये रोचक कहानी

हल्दीघाटी का नाम सुनते ही महाराणा प्रताप, चेतक और उस युद्ध से जुड़ी कहानी ताजा हो जाती है. हल्दीघाटी असल में एक दर्रा है जो राजस्थान के उदयपुर से करीब 40 किमी दूर एक जगह है. इस दर्रे की मिट्टी हल्दी की तरह पीली है, इसलिए इसका नाम हल्दीघाटी पड़ा. इसी जगह पर मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच हुई लड़ाई को हल्दीघाटी की लड़ाई या हल्दीघाटी का युद्ध कहा जाता है. जान लेते हैं हल्दीघाटी और इस युद्ध से जुड़े रोचक इतिहास के बारे में.
हल्दीघाटी का युद्धहल्दीघाटी का युद्ध लगभग 450 साल पहले जून 1576 में हुआ था लेकिन युद्ध इसकी तारीख को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं हैं. कुछ इहिताहसकार मानते हैं कि युद्ध 18 जून को हुआ था कुछ युद्ध की तारीख 21 जून मानते हैं. यहां अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 4 घंटे युद्ध चला था. हालांकि, एक बात और कही जाती है कि युद्ध हल्दीघाटी के दर्रे से शुरू हुआ लेकिन असली और खूनी लड़ाई हल्दीघाटी से 4 किलोमीटर दूर खमनौर में हुई थी. इस वजह से मुगल इतिहासकार अबुल फजल इसे खमनौर का युद्ध कहते हैं.
हल्दीघाटी युद्ध को लेकर इतिहासकारों में सिर्फ युद्ध की तारीख को लेकर ही नहीं बल्कि युद्ध में किसने किसको हराया था इसको लेकर भी मतभेद है. कई इतिहासकारों का मानना है कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर को हराया था वहीं, कई इतिहासकारों का मानना है कि इस युद्ध में अकबर ने महाराणा प्रताप को हराया था.
कहते हैं कि मुगल शासक के मुकाबले महाराणा के प्रताप से पास बहुत ज्यादा सेना, हाथी, घोड़े नहीं थे और उनके पास ऊंट पर रखकर चलाई जा सकने वाली तोप भी नहीं थी. इधर दुश्मन सेना सभी चीजों से लैस थी. ऐसे में राणा प्रताप ने मेवाड़ को मुगलों से छीनने के लिए छापामार युद्ध (गोरिल्ला वॉर) की रणनीति अपनाई.
हल्दीघाटी को इसलिए कहा गया मेवाड़ की शानराणा प्रताप ने युद्ध के लिए जानबूझकर हल्दीघाटी को चुना था क्योंकि वहां बने दर्रे की खासियत ही कुछ ऐसी है. दरअसल, वह दर्रा इतना संकरा है कि इससे दो घुड़सवार सैनिक एक साथ नहीं निकल सकते थे. इसी वजह से महाराणा प्रताप ने अपनी छापामार और गोरिल्ला युद्ध की रणनीति को सफल बनाने के लिए इस जगह को चुना. कहते हैं कि अगर हल्दीघाटी न होती तो गोरिल्ला युद्ध सफल नहीं होता. मुगल सैनिकों को इस दर्रे का अंदाजा नहीं था और वो इसमें घुस गए. उन्हें जब आगे संकरा रास्त मिला तो उन्हें कई किलोमीटर उल्टा भागना पड़ा औऱ इस दौरान कई मुगल सैनिक मारे गए. इस तरह हल्दीघाटी को मेवाड़ की आन-बान-शान बचाने वाली रणभूमि माना जाता है.
चेतक ही नहीं रामप्रसाद की भी है रोचक कहानीइस युद्ध से जुड़ी एक और रोचक कहानी आपको बताते हैं. युद्ध में राणा के घोड़े चेतक के बारे में तो आपने सुना ही होगा जिसकी मौत पर महाराणा प्रताप जैसे प्रतापी राजा फूट-फूट कर रोए थे. इस युद्ध में चेतक की तरह ही एक और स्वामी भक्त हाथी था जिसकी चर्चा कम हुई. रामप्रसाद नाम के इस हाथी की भी युद्ध में बड़ी भूमिका थी. इस हाथी ने दुश्मन सेना के पसीने छुड़ा दिए थे. युद्ध के बीच में ही इस हाथी के महावत को मार कर मुगलों ने इसे बंदी बना लिया. अपने मालिक से दूर होना यह हाथी सहन नहीं कर पाया और दुख में अन्न जल त्याग दिया और फिर इसकी मृत्यु हो गई.
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FIRST PUBLISHED : August 10, 2024, 21:37 IST