Rajasthan

If Your House Is In 225 Sqm, It Is Mandatory To Save Rain Water – आपका घर 225 वर्गमीटर में तो बारिश का पानी सहेजना होगा अनिवार्य

राजस्थान में 300 की जगह अब 225 वर्गमीटर व इससे बड़े भूखंड, भवन रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के आएंगे दायरे में

भवनेश गुप्ता
जयपुर। राज्य में अब कम से कम 225 वर्गमीटर क्षेत्रफल के भूखंड पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाना जरूरी हो गया है। इतने और इससे बड़े भूखण्डधारियों को बारिश का पानी को सहेजना अनिवार्य होगा। अभी 300 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल के भूखंडों पर ही यह लागू था, जिनकी संख्या अभी केवल 4 से 5 लाख ही है। नगरीय विकास विभाग ने मंगलवार को इसके आदेश जारी कर दिए। इसके बाद मॉडल बिल्डिंग बायलॉज में संशोधन कर दिया गया। सूत्रों के मुताबिक पहले इसे 167 वर्गमीटर से शुरुआत करने का प्रस्ताव था, लेकिन ऐसे भूखंडों पर सेटबैक में ज्यादा जगह नहीं मिलने के कारण ऐसा नहीं हो पाया।

रिटायर्ड अभियंता के भरोसे मॉनिटरिंग
ऐसे भूखंडों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बना है या नहीं, इसकी मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी भूजल विभाग और जल संसाधन विभाग के सेवानिवृत्त अभियंताओं को सौंपी जाएगी। यह अभियंता ही जांच करेंगे कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम सही बना है यह उसमें सुधार की गुंजाइश है।

यूं समझें : आप एक साल पेयजल सहेज सकते हैं
यदि भवन की छत का एरिया 1000 वर्गफीट है और वहां 5 लोग निवास कर रहे हैं तो बारिश के एक सीजन में 1 साल में उपयोग आने वाला पेयजल सहेजा जा सकता है। 225 वर्गमीटर भूखंड पर छत का अधिकतम निर्मित एरिया 2421 वर्गफीट होगा। इस तरह दो साल से ज्यादा पेयजल जमीन में संचित कर पाएंगे। अभी ऐसे भवनों का पानी सीवर लाइन या नालों में बह रहा है।

एक पर भी जुर्माना नहीं, कहीं फिर ऐसा ना हो
300 वर्गमीटर से ज्यादा क्षेत्रफल के लाखों भवन निर्मित हैं, लेकिन हार्वेस्टिंग सिस्टम 5 से 8 फीसदी भवनों में ही बनाए गए। पिछले 5 वर्ष में नियमों को ताक पर रखने वाले एक भी निर्माणकर्ता से जुर्माना नहीं वसूला गया, केवल नोटिस देकर जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली गई।

पानी बचाने और दोबारा उपयोगी बनाने के लिए दो कदम
पानी को दोबारा उपयोगी बनाने के लिए अब 5 हजार की जगह 2500 वर्गमीटर क्षेत्रफल के भूखंड पर बनने वाले बहुमंजिला आवास व भूखंड आवासीय योजनाओं में भी ट्रीटमेंट प्लांट बनाना जरूरी होगा। साथ इन योजनाओं में रहने वाले फ्लैटधारक और भूखंडधारियों को शौचालय में ड्यूल फ्लश (टू-फ्लश सिस्टम) लगाना अनिवार्य हो जाएगा। यानि, शौच जाने के बाद अलग बटन और पेशाब (यूरीन) के दौरान अलग उपयोग होगा। इसमें अधिकतम एक लीटर पानी का ही उपयोग होगा। इसकेे दायरे में बनने वाले हजारों फ्लैट-भूखंड आ जाएंगे। अफसरों का दावा है कि एक घर में 5 लोग रह रहे हैं तो ड्यूल फ्लश सिस्टम से ही प्रतिदिन 40 से 50 लीटर पानी की बचत होगी।







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