Rajasthan

Haryana Exit Poll Result: एक्जिट पोल सही हैं…. तो क्या किसानों, पहलवानों और अग्निवीर का मसला हरियाणा में कांग्रेस के लिए काम कर गया

ज्यादातर एक्जिट पोल में हरियाणा में कांग्रेस को बढ़त दिखाया जा रहा है. हरियाणा में वैसे भी लड़ाई बहुत कड़ी दिख रही थी. खास तौर पर लोकसभा चुनाव में जो नैरेटिव खड़ा हुआ था, उसका पूरी असर यूपी में दिखा. या कहा जाय वहां प्रतिपक्ष ने दलित वोटों को पिछड़े वोटों से जोड़ कर अपनी स्थिति मजबूत किया. लेकिन हरियाणा के संदर्भ में समझा जाय तो ये राज्य किसानों का है. यहीं की वो महिला पहलवान हैं जिन्होंने कुश्ती महासंघ का मसला उठाया. हरियाणा ही वो राज्य है जहां के लोग सेना में जाना बहुत पसंद करते हैं. ये तीनो मसले बीजेपी के विरोध में ही थे. ऊपर से बीजेपी ने हरियाणा में दस साल हुकूमत की है. इस लिहाज से कहा जाय कि उसे एंटीइनकंबेसी वोटों का विरोध भी झेलना पड़ा होगा.

किसानों की नारजगी + जाट वोटरों की बेरुखीतीन कृषि कानूनों को लेकर राज्य के किसानों ने उसी तरह की नाराजगी दिखाई थी, जैसी पंजाब के किसानों ने. ध्यान देने लायक है कि किसान आंदोलन के दौरान राज्य के मंत्रियों को कई जगहों पर किसानों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था. पंजाब की ही तरह यहां किसान परिवारों की संख्या अच्छी भली है. किसान भी ऐसे हैं जिनके लिए खेती आमदनी का अहम जरिया है. किसानों में जाट वोटरों की संख्या भी ठीक ठाक है. हरियाणा में जाट भी बीजेपी के स्वाभाविक वोटर नहीं रहे हैं. अब से दस साल पहले ही बीजेपी ने यहां सरकार बनाई थी. चुनाव के ठीक पहले पार्टी ने मुख्यमंत्री भी बदला तो वहां कुर्सी किसी जाट को न देकर नायब सिंह सैनी को दी गई जो दलित न हो कर पिछड़ी जाति (ओबीसी) से आते हैं. कांग्रेस बाद में किसानों के समर्थन में उतरी लेकिन हरियाणा कांग्रेस के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा किसानों के साथ लगातार बने रहे.

अग्निवीर की आगकिसानों की इस नाराजगी को सेना में नियमित भर्ती की जगह अग्निवीर योजना से और हवा मिला. आखिर इन्ही किसानों के परिवारों से सेना के जवान भी निकलते हैं. हरियाणा वो राज्य है जिसकी देश की आबादी में हिस्सेदारी महज 2 फीसदी के आस पास है. जबकि सेना में इसकी हिस्सेदारी 5 फीसदी से कुछ ज्यादा होती है. राज्य की आबादी के हिसाब से ये बहुत बड़ी और प्रभावी संख्या है. इसका मतलब ये है कि फौज में शामिल होने के इच्छुक लोगों की संख्या भी बहुत अधिक है. अग्निवीर की व्यवस्था लागू होने किए जाने के केंद्र के फैसले से जो राज्य सबसे ज्यादा नाराज हुए हैं उनमें हरियाणा प्रमुख है. जब भी राज्य के ग्रामीण इलाकों में सरकारी नौकरियों की बात की जाय तो उनमें अग्निवीर को लेकर निराशा फैल जाती है. वे इसे खुल कर जताते भी हैं. उन्हें ये बात गले से नहीं उतरती कि पांच साल की सेवा के बाद रिटायर अग्निवीर को सरकार ने पैरामिलिट्री और दूसरी जगहों पर नौकरियां देने का वायदा कर रखा है.

पहलवानों का दाबावतीसरी और सबसे अहम लड़ाई पहलवानों की रही. साक्षी मलिक के साथ विनेश फोगाट ने उस समय के कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह के विरोध में आवाज उठाई. ये मामला किसी न किसी रूप से हरियाणा के लिए बड़ा सवाल था. यही वो राज्य है जहां के पहलवान मेडल जीत कर दुनिया भर में भारत का नाम उंचा करते हैं. पेरिस ओलंपिक में हुई घटनाओं के बाद विनेश जब लौट कर भारत में आईं तब भी बीजेपी ने पार्टी के स्तर पर उनके आंसू पोछने का कोई ऐसा काम नहीं किया, जिससे हरियाणा के वोटरों के जख्म पर मरहम लगाने जैसा काम किया गया हो. उल्टे विनेश और उनके साथ बजरंग पूनिया पहलवान कांग्रेस के पाले में चले गए. दोनों रेलवे की सरकारी नौकरी छोड़ कर सीधी लड़ाई में आ गए थे. कांग्रेस ने उन्हें टिकट दे कर चुनाव लड़ाया. पहले से ही हरियाणा के पहलवान और उनकी कमान यूपी के नेता के हाथ वाली भावना को यहां हवा मिलने की संभावना पूरी है.

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इसमें राज्य में बीजेपी सरकार की ओर से लोगों की बेहतरी के लिए कुछ खास काम किए गए हों, वो भी नहीं दिखा था. रोजगार राज्य के लिए एक बड़ा मुद्दा बना रहा. नायब सिंह सैनी ने सीएम बनने के बाद दलित समुदाय के लोगों को 20 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव कैबिनेट से पारित कराया. हालांकि ये फैसला चुनाव की तारीखें जारी होने के बाद किया गया. उस समय मुख्यमंत्री ने कहा था कि उन्हें राज्य में तीसरी बार सरकार बनने का पूरा यकीन है. लिहाजा ये फैसला चुनावों के बाद लागू किया जाएगा. जाहिर है इससे इस चुनाव में कोई फायदा हुआ हो, ये नहीं कहा जा सकता.

Tags: BJP Congress, Haryana Election, Haryana election 2024

FIRST PUBLISHED : October 5, 2024, 20:24 IST

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