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SC News: ‘मुआवजे के लिए मुकदमा दायर करें’: सुप्रीम कोर्ट ने कोविड वैक्सीन से कथित विकलांगता के लिए मुआवजा मांगने वाले व्यक्ति को सलाह दी- Supreme Court told a man File Suit For Damages from Union government and Serum Institute of India

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में एक शख्स की याचिका पहुंची तो सुनवाई करते-करते जज साहब ने उसे मुआवजे का केस दायर करने की सलाह दी. असल में यह शख्स कोविडशील वैक्सीन लगाने के बाद कथित रूप से शरीरिक रूप से दिव्यांग हो गया था. इस शरीरिक दिव्यांगता के लिए ही वह शख्स केन्द्र सरकार और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से मेडिकल कवर की मांग कर रहा था.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिसे एजी मसीह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की. न्यायमूर्ति गवई ने याचिकाकर्ता के वकील को सुझाव दिया कि अदालत में एक रिट याचिका दायर करने में सालों साल लग सकते हैं, जबकि मुआवजे के लिए मुकदमा दायर करना तेजी से राहत प्रदान कर सकता है. याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस गवई ने टिप्पणी की कि इस मामले में रिट याचिका कैसे दायर की जा सकती है? मुआवजे के लिए मुकदमा दायर करें.

क्या दी याचिकाकर्ता ने दलील?इस प्वाइंट पर याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि ऐसी दो याचिकाएं पहले से ही अदालत में लंबित हैं, जहां सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने नोटिस जारी किया है. उन्होंने आगे बताया कि याचिकाकर्ता को 100% निचले अंगों की विकलांगता हुई है. इस पर न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि अदालत याचिकाकर्ता की याचिका को लंबित मामलों के साथ जोड़ सकती है. हालांकि, मुआवजे के लिए मुकदमा, रिट याचिका की तुलना में याचिकाकर्ता के लिए अधिक लाभकारी होगा, क्योंकि यह तेजी से राहत प्रदान कर सकता है.

जस्टिस गवई ने दी क्या सलाह?जस्टिस गवई ने कहा कि अगर आप याचिका को यहां लंबित रखते हैं, तो यहां 10 साल तक कुछ नहीं होगा. आपके पास केवल यह उम्मीद होगी कि मामला यहां लंबित है. कम से कम अगर आप मुकदमा दायर करते हैं, तो आपको कुछ तेजी से राहत मिलेगी. 10 साल तक, यह (रिट याचिका) दिन का उजाला नहीं देखेगी. कम से कम अगर मुकदमा दायर किया जाता है, तो 1 साल, 2 साल, 3 साल में, आपको कुछ (राशि/राहत) मिलेगी.

जज की सलाह पर याचिकाकर्ता ने क्या किया?अंततः, याचिकाकर्ता के वकील ने निर्देशों के साथ वापस आने के लिए समय मांगा और मामले को स्थगित कर दिया गया. याचिकाकर्ता ने एओआर पुरुषोत्तम शर्मा त्रिपाठी के माध्यम से याचिका दायर की, जिसमें भारत सरकार (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय) और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (कोविशील्ड वैक्सीन के निर्माता) को निर्देश देने की मांग की गई.

– यह सुनिश्चित करें कि वह वैक्सीन की पहली खुराक के बाद एक शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति के रूप में गरिमा के साथ जी सके;

– उसके द्वारा किए गए चिकित्सा खर्चों का भुगतान किया जाए और उसके भविष्य के मेडिकल खर्चों की जिम्मेदारी ली जाएं.

– उसकी शारीरिक विकलांगता के लिए मुआवजा दें, यदि यह लाइलाज पाई जाती है.

इसके अलावा, वह भारत में कोविड वैक्सीनेशन के संदर्भ में प्रतिरक्षण के बाद प्रतिकूल प्रभावों (AEFI) के प्रभावी समाधान के लिए उचित दिशानिर्देश चाहता है, जहां टीकाकरण और पूर्व-टीकाकरण चरणों के लिए मानक प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया था. प्रार्थनाओं के समर्थन में याचिकाकर्ता परेंस पैट्रिए, पूर्ण उत्तरदायित्व और रेस्टिट्यूशन इन इंटेग्रुम के सिद्धांतों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों पर निर्भर करता है.

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