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चूरू का धर्म स्तूप – राजशाही फरमानों से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक, सर्वधर्म सद्भाव और इतिहास का साक्षी

Last Updated:October 12, 2025, 01:12 IST

Churu News Hindi : चूरू का धर्म स्तूप रियासतकाल और स्वतंत्रता संग्राम का जीवंत साक्षी है. 1925 में सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने इसका शिलान्यास कराया था. लाल घंटाघर के रूप में प्रसिद्ध यह स्थल राजशाही फरमानों और बाद में तिरंगे की शौर्य गाथा का गवाह बना. आज यह सर्वधर्म सद्भाव और भारतीय संस्कृति का प्रतीक है.

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चूरू : रियासतकाल में राजशाही किस कदर हावी थी और महाराजाओं के एक शाही फरमान पर कैसे एक्शन हुआ करता था. यह आज भी इतिहास के पन्नो में दर्ज है राजस्थान का चूरू भी रियासतकाल में राज शाही के शाही फरमानों का एक ग्वाह है चूरू का धर्म स्तूप बीकानेर संभाग के दर्शनीय स्थलों में से एक है और लाल पत्थरों से निर्मित उत्कृष्ट कारीगरी का एक अभिनव वृत्त चित्र है. इतिहास के जानकार हनुमान कोठारी बताते हैं सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने धर्मस्तूप का निर्माण करवाया था और वैसे बिड़ला परिवार को चूरू से आत्मीय लगाव भी था, बिड़ला जी का ननिहाल भी चूरू में था और एक बहन भी चूरू के मंत्री परिवार में ब्याही गई थी.

धर्म स्तूप का शिलान्यास सन् 1925 में रामनवमी के दिन तत्कालीन बीकानेर रियासत के गृहमंत्री खान बहादुर के रुस्तम द्वारा शाही ताम, झाम के साथ किया गया था. कोठारी बताते हैं धर्म स्तूप पर एक कीमती घड़ी भी लगी हुई थी जो हर आधे घंटे के बाद तेज आवाज में शहर के लोगों को समय की सूचना घंटा बजाकर देती थी. इसकी वजह से लोग इसको लाल घंटाघर के नाम से भी पहचानते थे. लेकिन इसके घंटा बजने का क्रम लंबा नहीं चला और कुछ लोगों ने बीकानेर महाराजा गंगा सिंह को शिकायत कर दी की चूरू के लोग तो बिड़लों के घंटे की आवाज पर सोते हैं तथा उसी की आवाज पर उठते हैं यहां तो बिड़ला शाही चल रही है बस फिर क्या था, हो गया शाही फरमान जारी की धर्मस्तूप से घंटा बजाना बंद कर दिया जाए और करीब 1 साल घंटा बजने के बाद 1926 में ही यह क्रम बंद हो गया.

सर्वधर्म सद्भावना का संदेशधर्म स्तूप की ऋषभ मंजिल के घेरे में वेदों की पहचान एवं गीता के महत्वपूर्ण श्लोक देवनागरी लिपि में अंकित किए गए हैं धर्म स्तूप के अंदर कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक एवं शंकराचार्य आदि की मूर्तियां भी लगी हैं भारतीय संस्कृति के अनुरूप यह धर्म स्तूप सर्वधर्म सद्भावना का आज भी संदेशवाहक बना हुआ है.

स्वतंत्रता संग्राम का गवाहLocal18 से बातचीत में हनुमान कोठारी बताते हैं कि गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन की गूंज सारे देश में सुनाई पड़ने लगी थी, चूरू में भी स्वामी गोपाल दास के नेतृत्व में एक टीम आंदोलन की रूपरेखा बनाने में जुटी थी और 26 जनवरी 1930 को उन लोगों ने धर्म स्तूप पर तिरंगा फहरा दिया. बीकानेर तक खबर पहुंचते ही राजशाही का दमन चक्र शुरू हो गया और इस आंदोलन में भाग लेने वालों को गिरफ्तार कर लिया गया. तिरंगा फहराने वालों को बहुत यातनाएं दी गईं और बीकानेर षड्यंत्र केस के नाम से मुकदमा चलाया गया जिसकी गूंज गोलमेज कांफ्रेंस लंदन में महात्मा गांधी द्वारा की गई और इस प्रकार चूरू का धर्म स्तूप बन गया. बीकानेर रियासत के स्वतंत्रता संग्राम का मूक साक्षी.

Rupesh Kumar Jaiswal

रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन…और पढ़ें

रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन… और पढ़ें

Location :

Churu,Rajasthan

First Published :

October 12, 2025, 01:12 IST

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चूरू का धर्म स्तूप – राजशाही फरमान और स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी स्थल

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