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राजस्थान की मिट्टी से गढ़ी कला की विरासत, दादा-पिता को मिले पद्मश्री-नेशनल अवॉर्ड, अब पोता लिख रहा नई कहानी

Last Updated:October 13, 2025, 17:09 IST

Terracotta Art : दिवाली के फेस्टिवल सीजन में जहां बाजार रंग-बिरंगी झालरों और सजावट से सजे हैं, वहीं राजस्थान की पारंपरिक टेराकोटा कला एक बार फिर लोगों का दिल जीत रही है. मिट्टी से बनी खूबसूरत मूर्तियां और सजावटी कलाकृतियां घरों की रौनक बढ़ा रही हैं. राजसमंद के मोलेला गांव के कुम्हार इस कला को नई ऊंचाई दे रहे हैं.

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जयपुर : दिपावली का फेस्टिवल सीजन चल रहा और बाजारों में लोग घरों की सजावट की लिए जमकर खरीदारी कर रहे हैं, दिपावली पर लोग सबसे ज्यादा घरों की सजावट के लिए मूर्तियां, पेंटिंग, गुलदस्ते, रंग बिरंगी झालरों जैसी चीजों की सबसे ज्यादा खरीदारी कर रहे हैं. ऐसे ही दिपावली पर लोग राजस्थान की प्राचीन कलाओं को भी सजावट के रूप में खूब पंसद करते हैं, ऐसे राजस्थान की टेराकोटा कला जिससे तैयार होने वाले मिट्टी के बर्तन से लेकर मूर्तियों के कलाकार जयपुर पहुंचे हैं.

Local 18 ने लोकरंग फेस्टिवल में राजसमंद के मोमेला गांव से टेराकोटा की कला को लेकर आए हितेश कुम्हार से बात की तो वह बताते हैं की टेराकोटा की कला वैसे तो राजस्थान की 200 वर्ष पुरानी कला है, लेकिन मेरे दादाजी जी मोहनलाल कुम्हार ने 1981 में इसमें नया इंवेंशन किया जिसके चलते उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया और बाद में दादाजी के बाद उनके पिता राजेन्द्र कुम्हार ने इस कला को आगे बढ़ाया जिसके लिए उन्हें नेशनल अवार्ड मिला. ऐसे ही दादा और पिता के बाद मैं तीसरी पीढ़ी का मैं हूं जो टेराकोटा की कला से जुड़कर इसे लगातार आगे बढ़ा रहा हूं. हितेश बताते हैं कि टेराकोटा की कला मिट्टी से जुड़ी अनोखी कला है जिसे दुनियाभर में लोग खूब पंसद करते हैं.

क्यों खास होता है टेराकोटा की कला मेंLocal18 से बात करते हुए हितेश कुमार बताते हैं कि टेराकोटा की कला मिट्टी से जुड़ी ऐसी खास कला है जिसमें मूर्तियों को अलग-अलग आकार में तैयार किया जाता है जिसमें मूर्ती के अंदर का हिस्सा खोखला होता है वहीं बाहर से उभरते हुए इस कला की सुंदरता दिखाई देती है टेराकोटा की कला में मूर्तियों को तैयार करने में सबसे खास बात यह है कि मूर्तियां बनाते समय इसमें एक हाथ मूर्ती के अंदर होता हैं तो वहीं दूसरे हाथ से मूर्ती तैयार की जाती हैं, टेराकोटा की कला में खासतौर पर चौखोट आकार में एक फ्रेम की तरह मूर्तियां तैयार की जाती हैं जिसपर अलग-अलग कलर नहीं होता बल्कि सभी मूर्तियों पर मिट्टी के रंगों से मिलते जुलते रंगों का इस्तेमाल होता है. इसी कला को अब हितेश कुमार विरासत के रूप में ही नहीं बल्कि मिट्टी पर कहानियां गढ़ते हुए, परंपरा के गौरव के साथ अपनी नवीनता, सटीकता और जुनून से इसे देश दुनिया तक पहुंचा रहें हैं.

‘टेराकोटा आर्ट’ से दुनिया में बढ़ी राजस्थान की पहचानLocal18 से बात करते हुए हितेश कुमार बताते हैं कि राजस्थान की प्रसिद्ध टेराकोटा की कला को वैसे लोग हमेशा पंसद करते हैं लेकिन खासतौर पर दिपावली की सजावट के समय लोग टेराकोटा की कला से बनी मूर्तियों को सबसे ज्यादा खरीदते हैं टेराकोटा की कला में खासतौर पर कलाकृतियां आदिवासी मान्यताओं और मंदिर अनुष्ठानों पर आधारित जटिल रूप से डिज़ाइन की कला मिट्टी की पट्टिकाओं के माध्यम से पवित्र परंपराओं में दर्शाते हुए आधुनिक समय में कला के एक आदर्श के रूप में उभरी है, टेराकोटा की कला कई दूतावासों से लेकर हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों और पांच सितारा होटलों और रिसॉर्ट्स की शोभा बढ़ा रही है. आपको बता दें मोलेला गांव राजस्थान के राजसमंद जिले का एक गांव है, जो अपनी सदियों पुरानी टेराकोटा परंपरा के लिए फेमस है. यहां के कुशल कुम्हारों के जरिए बनाई गई टेराकोटा कला एक अनूठी कला है जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गई है. आज टेराकोटा की कला सिर्फ छोटी मूर्तियों के रूप में ही नहीं बल्कि हजारों मीटर की दीवार पर टाइलों के रूप में अपनी जगह बना चुकी हैं.

Rupesh Kumar Jaiswal

रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन…और पढ़ें

रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन… और पढ़ें

Location :

Jaipur,Rajasthan

First Published :

October 13, 2025, 17:09 IST

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दादा-पिता को मिली मिट्टी की कला से पहचान, अब पोता भी आगे बढ़ा रहा हुनर

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