सूरज से करीब दस लाख गुना ज्यादा भारी… 7.3 अरब साल बाद मिला ब्रह्मांड का रहस्य, वैज्ञानिकों ने कहा- नई गैलेक्सी

सोचिए ज़रा, किसी चीज को देखने में हमें 7.3 अरब साल लग जाएं! अजीब लगता है ना? लेकिन वैज्ञानिकों ने सच में ऐसा कर दिखाया है. उन्होंने एक बेहद रहस्यमयी और घनी “अदृश्य गांठ” (Dense Blob) खोजी है, जो एक गैलेक्सी के अंदर छिपी हुई थी. इस गैलेक्सी की रोशनी हम तक पहुंचने में अरबों साल लगे हैं!
सूरज से 10 लाख गुना भारी, लेकिन दिखाई नहीं देतीवैज्ञानिकों के मुताबिक, ये ब्लॉब सूरज से करीब 10 लाख गुना ज्यादा भारी है. लेकिन ये दिखाई नहीं देता. इससे न कोई रोशनी निकलती है, न रेडियो या इंफ्रारेड (गर्मी वाली) किरणें. इसका पता सिर्फ इसकी ग्रैविटी, यानी खींचने की ताकत से चला. मतलब, ये चीज है, लेकिन दिखती नहीं है.
इतनी दूर किसी छोटे ऑब्जेक्ट की पहली खोजये खोज की है जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के वैज्ञानिक डेवोन पॉवेल और उनकी टीम ने. उनका कहना है कि इतनी दूर किसी छोटे ऑब्जेक्ट को सिर्फ ग्रैविटी के असर से पकड़ पाना पहले असंभव माना जाता था. लेकिन इस खोज ने साबित कर दिया कि अब ब्रह्मांड में छिपे “डार्क मैटर” जैसी चीज़ों को ढूंढना मुमकिन है. टीम का कहना है कि यह अब तक का सबसे हल्का ऑब्जेक्ट है, जिसे इतनी दूरी से सिर्फ ग्रैविटी की वजह से खोजा गया है.
डार्क मैटर या छोटी गैलेक्सी?अब सवाल ये है कि आखिर ये ब्लॉब है क्या? वैज्ञानिकों के मुताबिक, ये दो चीज़ों में से एक हो सकती है–
ये डार्क मैटर का टुकड़ा हो सकता है, यानी वो रहस्यमयी चीज़ जिससे ब्रह्मांड का बड़ा हिस्सा बना है लेकिन जिसे हम देख नहीं सकते.
या फिर ये छोटी गैलेक्सी (Dwarf Galaxy) हो सकती है, जो इतनी फीकी है कि टेलिस्कोप भी उसे नहीं पकड़ पाते.
इस ब्लॉब से कोई भी प्रकाश (light) सिग्नल नहीं मिला– न आंखों से दिखने वाली रोशनी, न रेडियो और न ही गर्मी वाली इंफ्रारेड किरणें. मतलब या तो ये पूरी तरह अदृश्य है या बहुत कमजोर.
‘ग्रैविटेशनल लेंसिंग’ से हुआ खुलासावैज्ञानिकों ने इस रहस्य को समझने के लिए ‘ग्रैविटेशनल लेंसिंग’ नाम की तकनीक का इस्तेमाल किया. आसान भाषा में कहें तो, जब कोई बड़ी गैलेक्सी अपने गुरुत्व के कारण किसी दूर की गैलेक्सी की रोशनी को मोड़ देती है, तो उसे ग्रैविटेशनल लेंसिंग कहते हैं. ऐसा ही हुआ जब पॉवेल की टीम ने JVAS B1938+666 नाम की गैलेक्सी को देखा.
इस सिस्टम में एक गैलेक्सी हमसे करीब 7.3 अरब साल दूर है और उसके पीछे एक और गैलेक्सी है जो 10.5 अरब साल दूर है. दूर वाली गैलेक्सी की रोशनी, सामने वाली गैलेक्सी की gravity से मुड़कर चार हिस्सों में बंट गई. इन्हीं में से एक हिस्से में वैज्ञानिकों को एक छोटा सा “डिंपल” (गड्ढा जैसा निशान) दिखा.
नीदरलैंड्स की ग्रोनिंगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जॉन मकेन ने बताया, “जब हमने पहली हाई-क्वालिटी फोटो देखी, तभी उस लाइट आर्क में एक हल्की सी दरार जैसी जगह दिखी. तभी समझ गए कि बीच में कुछ तो है.”
26 सिग्मा– मतलब पक्की खोजटीम ने जब डेटा को ध्यान से देखा, तो पाया कि वह गड्ढा सिर्फ गैलेक्सी की वजह से नहीं बन सकता था. बीच में किसी छिपे द्रव्यमान (mass) का होना ज़रूरी था. और यह नतीजा 26 सिग्मा की भरोसेमंद रेटिंग के साथ आया, जो वैज्ञानिकों की भाषा में “लगभग पक्की खोज” मानी जाती है.
डार्क मैटर थ्योरी को मिला नया सबूतडेवोन पॉवेल कहते हैं, “हमें उम्मीद थी कि हमें कम से कम एक ‘डार्क ऑब्जेक्ट’ तो मिलेगा. ये खोज हमारे ‘कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी’ के बिलकुल मुताबिक है.” वैज्ञानिकों का मानना है कि आगे ऐसी और भी “डार्क गांठें” (dark blobs) मिलेंगी, जो ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में मदद करेंगी.