बच्चों की जान ले रहा डर! एक्सपर्ट से समझें क्यों डांट नहीं-बातचीत है जरूरी?

लखनऊ में एक 12 साल के बच्चे ने सुसाइड कर लिया, वह सातवीं क्लास में पढ़ता था, सुसाइड का कारण महज ये था कि उसने अपने बाबा की मोपेड चलाई थी, खंभे से टकराने की वजह से इसके कुछ कल पुर्जे टूट गए थे. बच्चे को डर था कि अब उसकी डांट पड़ेगी, इसीलिए उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया और फंदा लगाकर सुसाइड कर ली.
इससे ठीक पहले गाजियाबाद में एक मामला सामने आया था जिसमें 11 साल के बच्चे ने घर वालों को ये नहीं बताया कि उसे कुत्ते ने काट लिया है, घर वालों को पता तब चला जब उसमें रैबीज के सिमटम्स दिखे और कुछ ही दिनों में उसकी मौत हो गई. ये दो केस महज बानगी हैं.
असल में ऐसे बहुत सारे मामले हैं जहां माता-पिता या टीचर के डर की वजह से बच्चों ने गलत कदम उठाए. ऐसा क्यों होता है और पैरेंट्स के तौर पर इस पर कैसे रोक लगाई जा सकती है, इस बारे में हमने बात की चाइल्ड साइकॉलॉजी एक्सपर्ट और साइकियाट्रिक कंसल्टेंट डॉ. अविनाश डिसूजा से. उन्होंने विस्तार से बताया है कि हमें अपनी पैरेंटिंग में ऐसे क्या सुधार करने चाहिए जिससे बच्चा हमसे डरे नहीं और खुलकर अपनी बात कह पाए.
बच्चों में कितने प्रकार का डर?
माता-पिता का डर: भारत में बच्चों को डांटने और पीटने को अनुशासन माना जाता है, जबकि ये सही नहीं है, अगर आपका बच्चा आपसे डरता है तो यह तय है कि वह भावनात्मक तौर पर आपसे अलग हो रहा है.
सजा का डर : बच्चों को ये लगता है कि अगर वो गलती करेंगे तो उन्हें पीटा जाएगा, वह कई बार इस बात से अंजान होते हैं कि जो उन्होंने किया वो असल में उनकी गलती भी थी या नहीं, जैसा कि गाजियाबाद वाले मामले में हुआ, जहां बच्चे को कुत्ते ने काटा, मगर उसने घर पर डांट के डर से नहीं बताया. उसे डर रहा होगा कि उसने पीटा न जाए या बाहर जाने से न रोक दिया जाए.
असफलता का डर: एटा में हाईस्कूल एक छात्रा ने पेपर बिगड़ने के बाद सुसाइड कर लिया था, उस पर परीक्षा में नकल का आरोप लगाया गया था, इसके बाद उसने सुसाइड कर लिया था.
माता-पिता के रिश्ते में तनाव: माता-पिता के बीच रिश्ते में तनाव देखकर भी बच्चे अपनी समस्याओं को अंदर दबा लेते हैं, माता पिता इन्हें समझ नहीं पाते, परिवार में तनाव बढ़ता है और बच्चे अलग थलग महसूस करते हैं.
उम्रडर की प्रकृतिमाता-पिता क्या करें3-6 सालकाल्पनिक डरकल्पनाशील खेलों के माध्यम से डर का सामना कराएं.7-12 सालचोट, खो जाना, असफलताव्यावहारिक समाधान सिखाएं, बेसिक जानकारी दें.13-18 सालसामाजिक डरनिजी बातचीत का सम्मान करें, सलाह देने से पहले सुनें
क्या करें माता-पिता?
साइकियाट्रिक कंसल्टेंट डॉ. अविनाश डिसूजा के मुताबिक आजकल ऐसे मामले बहुत देखने को मिल रहे हैं, ऐसे में जरूरत है कि हर माता पिता अपने बच्चों को सेंसिटिवली हैंडल करें, बच्चों से जब भी बात करते हैं तो संयम रखें, अगर बच्चा कोई गलती कर देता है तो उससे प्यार से बात करें और पूछें कि क्या गलती हुई है
डांटना सॉल्यूशन नहीं: बच्चे को न डांटें और न ही पीटें, क्योंकि ये सॉल्यूशन नहीं है, कई बार बच्चों को भी ये पता नहीं होता कि वे गलती कर रहे हैं, ऐसे में जरूरी ये है कि बच्चों से अकेले में बात करें, पीटें तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि इससे आप बच्चे को सिर्फ शारीरिक चोट नहीं पहुंचा रहे हैं, बल्कि मानसिक चोट भी पहुंचा रहे हैं.
बच्चों से बातचीत करें : बच्चा आपसे बातें तब छिपाता है, जब उसे लगता है कि आप उसकी बात सुनकर उस पर चिल्लाएंगे या पीटेंगे तो वह आपको कुछ नहीं बताता, ऐसी स्थिति में बच्चों से बातचीत करें, उनकी प्रॉब्लम समझें, उनसे एक फ्रेंडली रिश्ता बनाएं.
मोबाइल न थमाएं: बच्चे को हर समय मोबाइल न थमाएं, ये भी एक बड़ी प्रॉब्लम है, मोबाइल की वजह से घरों में दूरियां बढ़ रही हैं, सब अपने अपने फोन पर लगे रहते हैं, बच्चे भी परिवार से बात करने की बजाय दोस्तों से देर रात तक फोन पर बात करता रहता है, ऐसे में वह आपसे बातें छिपाएगा ही.
सकारात्मक अनुशासन अपनाएं
बच्चों के साथ सकारात्मक अनुशासन का रिश्ता बनाएं, अगर कभी गुस्सा भी करें तो उन्हें समझाएं कि मुझे गुस्सा इसलिए आया, क्योंकि मुझे तुम्हारी फिक्र है.
बच्चे को धमकी न दें कि अगर देर से घर आआगे तो अगली बार तुम्हें घर के बाहर नही जाने दूंगा, या ऐसा करो तो देखो फिर मैं क्या करता हूं.
गुस्साए आए तो स्सा कई बार आपको आ सकता है, मगर ऐसे में बच्चे से बात न करें, 5 मिनट का ब्रेक लेंर फिर शांति उससे बात करें.
बच्चे के सामने दूसरों की बुराई न करें, अगर ऐसा करेंगे तो यह उन्हें सिखाएगा कि बातचीत असुरक्षित है.
बच्चों में बदलाव के क्या हैं लक्षण?
अचानक व्यवहार में बदलाव
खाना न खाना या बहुत ज्यादा खाना
नींद में परेशानी या बुरे सपने
दोस्तों से दूर रहना
स्कूल जाने से इनकार



