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Last Updated:November 18, 2025, 17:05 IST
Agriculture News: पहली सिंचाई के बाद कई किसानों की फसल में जड़ों पर फफूंदजनित रोग तेजी से फैलता दिख रहा है. यह समस्या समय रहते नियंत्रण न की जाए तो पूरी फसल को नष्ट कर सकती है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बीजोपचार, जैविक फफूंदनाशक, उचित नमी और संतुलित खाद प्रबंधन से इस रोग पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है. किसान तत्काल निगरानी बढ़ाएं.
सीकर. सरसों की फसल किसानों के लिए फायदे का सौदा है. इस फसल में किसानों को पहली सिंचाई करते समय विशेष ध्यान देना चाहिए. एग्रीकल्चर एक्सपर्ट दिनेश जाखड़ ने बताया कि यदि खेत में पर्याप्त नमी बनी हुई है, तो अनावश्यक सिंचाई फसल को नुकसान पहुंचा सकती है. ऐसे में 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर नमी की जांच कर यह तय किया जाना चाहिए कि सिंचाई की आवश्यकता है या नहीं. इससे पानी की बर्बादी भी रुकती है और फसल स्वस्थ रहती है.

अक्सर किसान पहली सिंचाई के समय के समय खेत को अधिक पानी दे देते हैं, जिससे मिट्टी तालाब जैसी स्थिति में आ जाती है. यह गलती सरसों की फसल में फफूंदजनित बीमारियों का मुख्य कारण बन जाती है. पानी भराव से जड़ों में सड़न, पत्तों में धब्बे और विकास में रुकावट जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. इसलिए हल्की व समान सिंचाई ही सरसों की फसल के लिए अच्छी मानी जाती है.

एग्रीकल्चर एक्सपर्ट दिनेश जाखड़ ने बताया कि किसान सरसों की फसल में फफूंद नियंत्रित करने के लिए पहली सिंचाई में 200 ग्राम काबेंडाज़िम 50% डब्ल्यूपी को एक बीघा (0.25 हेक्टेयर) क्षेत्र में देना लाभकारी माना जाता है. यह दवा मिट्टी में सक्रिय रहकर बीज व पौधों को फफूंद संक्रमण से बचाती है. इसके अलावा मौसम में नमी अधिक होने पर इसका प्रभाव और भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि ऐसे समय में रोगों का प्रकोप तेजी से फैलता है.
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ध्यान देने योग्य बात यह है कि यदि किसान दूसरी सिंचाई करने की योजना बना रहे हों, तो काबेंडाज़िम का उपयोग पहली सिंचाई में न करें. एग्रीकल्चर एक्सपर्ट के अनुसार यह दवा दूसरी सिंचाई में देना अधिक प्रभावी रहता है, क्योंकि इस समय पौधे तेजी से बढ़ रहे होते हैं और उन्हें रोग प्रतिरोधक सुरक्षा की अधिक आवश्यकता होती है. इससे सरसों के तनों और पत्तों पर रोगों का असर कम होता है.

इसके अलावा, जिप्सम का उपयोग सरसों की फसल में तेल की मात्रा और दानों की चमक बढ़ाने के लिए कारगर माना जाता है. यदि बुवाई के समय किसान सिंगल सुपर फॉस्फेट का उपयोग नहीं कर पाए हों, तो 5 किलो जिप्सम प्रति बीघा देना जरूरी होता है. जिप्सम मिट्टी में गंधक की पूर्ति कर पौधों की आहार क्षमता को बढ़ाता है, जिससे दाने अधिक भरे हुए और चमकदार बनते हैं.

इसके साथ ही जिंक 33 प्रतिशत को 3 से 5 किलो प्रति बीघा की दर से डालना फुटान को बेहतर बनाता है. जिंक पौधों में एंजाइम गतिविधि बढ़ाकर शाखाओं की संख्या में वृद्धि करता है, जिससे कुल उत्पादन में सुधार होता है. ऐसे में जिन खेतों की मिट्टी में जिंक की कमी होती है, उनमें सरसों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं, इसलिए यह पोषक तत्व बहुत जरूरी है.

एग्रीकल्चर एक्सपर्ट दिनेश जाखड़ ने बताया कि यदि किसान सिंचाई और फफूंद नियंत्रण के इन उपायों को समय पर अपनाते हैं, तो सरसों की पैदावार 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है. जल प्रबंधन के साथ मिट्टी में सल्फर और जिंक की उपलब्धता बढ़ने से दाने की गुणवत्ता और तेल दोनों में सुधार होता है. इससे किसानों को बाजार में बेहतर भाव भी मिलता है और इससे किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होती है.
First Published :
November 18, 2025, 17:05 IST
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पहली सिंचाई में फसल बीमार! जड़ों पर फफूंद का अटैक, किसान अभी अपनाएं ये 5 उपाय



