Vasa Bawdi Rajasthan | वासा गांव की 7 तल वाली बावड़ी का इतिहास और रहस्य

Last Updated:November 20, 2025, 09:50 IST
Rajasthan Historic Bawdi: सिरोही जिले के वासा गांव की सात तल वाली बावड़ी अपनी अनोखी बनावट और ऐतिहासिक इंजीनियरिंग के लिए प्रसिद्ध है. सदियों पुरानी होने के बावजूद यह बावड़ी आज भी गांव के लोगों के लिए पीने के पानी का प्रमुख स्रोत है और अपनी कलात्मकता, मेहराबों और सीढ़ियों की क्रमबद्धता से हर किसी को आकर्षित करती है.
वासा गाँव की बावड़ी की बनावट ऐसी है कि यह अंदर से किसी महल या किले जैसी दिखाई देती है. इस बावड़ी का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था. इतने वर्ष बीतने के बाद भी यह बावड़ी आज भी पानी बचाने के लिए उपयोग में लाई जाती है. कई दशकों तक इसका उपयोग गाँव वालों के लिए पेयजल में होता रहा है. यह बावड़ी भारतीय स्थापत्य कला और जल संरक्षण की पारंपरिक प्रणाली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.

वासा गाँव की यह बावड़ी काफ़ी समय तक लोगों के लिए पानी का मुख्य स्रोत हुआ करती थी. यह बावड़ी वास्तुकला की दृष्टि से बेहद ख़ास है, क्योंकि इसमें 30 पिलर (स्तंभ) और 7 तल बने हुए हैं. हर पिलर और तल पर सुंदर कलाकृतियाँ भी उकेरी हुई हैं. हालांकि, समय के साथ देखरेख के अभाव में यह ऐतिहासिक बावड़ी धीरे-धीरे खंडहर होती जा रही है, जिससे इस अमूल्य धरोहर के संरक्षण की आवश्यकता महसूस की जा रही है.

ऐतिहासिक दृष्टि के अलावा धार्मिक रूप से भी यह बावड़ी क्षेत्रवासियों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस बावड़ी में एक ख़ास समारोह, खेतलाजी की बैर, भी मनाया जाता है. इस आयोजन में हर घर की बेटी या महिला यहाँ बावड़ी में बने मंदिर पर पूजा करती है और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती है. इस तरह यह बावड़ी न सिर्फ जल संरक्षण की धरोहर है, बल्कि गाँव की आस्था और परंपरा का भी केंद्र है.
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12वीं शताब्दी में तत्कालीन सिरोही राज्य के शासक शेर सिंह ने वासा गाँव की स्थापना की थी. इसी समय, लाखी बंजारा ने गाँव की इस बावड़ी का निर्माण करवाया था, जो जल संरक्षण की एक अद्भुत संरचना है. बावड़ी के पास बने सूर्य नारायण मन्दिर को लेकर यह मान्यता है कि इसकी नींव मीराबाई ने रखी थी. इस प्रकार, वासा गाँव की बावड़ी न केवल अपनी स्थापत्य कला के लिए, बल्कि अपने ऐतिहासिक और धार्मिक जुड़ाव के लिए भी प्रसिद्ध है.

वासा गाँव की इस बावड़ी की एक ख़ास बात यह है कि यह पूरी बावड़ी केवल विशाल पत्थरों और पिलरों (स्तंभों) के सहारे बनी हुई है. बिना किसी सीमेंट के बनी यह बावड़ी प्राचीन निर्माण शैली का बेजोड़ नमूना है, जो उस समय के शिल्प कौशल को दर्शाता है. बावड़ी के पास ही जमदग्नि ऋषि का प्राचीन आश्रम भी बना हुआ है, जहाँ अब जाबेश्वर महादेव मंदिर बना हुआ है. इस तरह, यह स्थान ऐतिहासिक, स्थापत्य कला और धार्मिक तीनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है.

स्थानीय ग्रामवासी और रोहिड़ा निवासी राजेश दवे ने बताया कि गाँवों की ऐतिहासिक बावड़ियाँ जल स्रोत के अलावा अब इन गाँवों की पहचान भी बन गई हैं. उन्होंने ज़ोर दिया कि इन बावड़ियों के संरक्षण पर प्रशासन को ध्यान देने की ज़रूरत है, ताकि इन ऐतिहासिक धरोहर को आने वाली पीढ़ी भी जान सके और प्राचीन जल प्रबंधन प्रणालियों के महत्व को समझ सके.
First Published :
November 20, 2025, 09:50 IST
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सिरोही की अनोखी बावड़ी… 7 तल नीचे तक पानी, बनावट देख हर कोई हैरान! जानें…



