क्यों धर्मेंद्र ने सियासत से कर ली थी तौबा, नेताओं का क्या पसंद नहीं आता था

बॉलीवुड के महान अभिनेता धर्मेंद्र वर्ष 2004 में बीकानेर से बीजेपी के सांसद चुने गए लेकिन वर्ष 2009 में अपना कार्यकाल बीतते बीतते उन्होंने राजनीति से तौबा कर ली. उन्होंने साफ कह दिया कि राजनीति उनके वश की बात नहीं है. संसद में नेताओं का हल्ला-गुल्ला, आरोप – प्रत्यारोप उन्हें अजीब लगते थे. संसद में नेताओं का ये बर्ताव उन्हें कभी पसंद नहीं आया. उन्होंने इसके बारे में इंटरव्यू में भी कहा.
धर्मेंद्र ने 2004 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के टिकट पर राजस्थान के बीकानेर से चुनाव लड़ा. ये चुनाव काफी चर्चित भी रहा क्योंकि तब धर्मेंद्र सिने वर्ल्ड के जाने माने सुपर स्टार थे.
धर्मेंद्र पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के काफी करीबी माने जाते थे. कहा जाता है कि यह रिश्ता राजनीति से परे एक व्यक्तिगत मित्रता का था. वाजपेयी जी उनकी फिल्मों के भी प्रशंसक थे. शुरू में तो उन्होंने बीकानेर की जनता के लिए काम करने की कोशिश की. स्थानीय मुद्दों को उठाया. लेकिन बाद में उनकी सक्रियता कम होती चली गई.
हालांकि उनकी पत्नी हेमामालिनी तो लंबे समय से राजनीति में सक्रिय हैं. वर्ष 2014 से वह मथुरा संसदीय सीट से बीजेपी सांसद हैं. उससे पहले वह वर्ष 2003 से लेकर 2009 तक राज्यसभा सांसद भी रहीं.
क्यों राजनीति से हुआ मोहभंग
फिर धर्मेंद्र ने सांसद के तौर पर पहले कार्यकाल के बाद खुद सक्रिय राजनीति से खुद को दूर कर लिया. उसकी कई वजहें भी थीं लेकिन मुख्य कारण तो राजनीति से उनका मोहभंग हो जाना ही था.
उनकी उम्र बढ़ने लगी थी. हेल्थ प्रॉब्लम्स बढ़ गईं थीं. ऐसे में संसद की कार्यवाही में नियमित रूप से हिस्सा लेना. सक्रिय रहना उनके लिए शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो गया था. संसद सत्रों के दौरान उन्हें दिल्ली में रहना पड़ता था, जिससे वे अपनी फिल्मों और पंजाब के फार्महाउस से दूर हो जाते थे.
धर्मेंद्र का पहला और सबसे बड़ा प्यार अभिनय ही रहा. वह फिल्मों की ओर वापस मुड़ना चाहते थे. परिवार के साथ समय बिताना चाहते थे. राजनीति की व्यस्त दिनचर्या और सार्वजनिक जीवन की पाबंदियां उन्हें रास नहीं आईं.
क्या नेताओं और अफसरों ने उन्हें मायूस किया
ये भी कहा जाता है कि धर्मेंद्र को राजनीति के अंदरूनी खेल और ब्यूरोक्रेसी से कुछ हद तक निराशा हुई. ये माहौल उन्हें अपने मन मुताबिक नहीं लगा. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर से टिकट नहीं मांगा. धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति से दूर हो गए. हालांकि इसके बाद वह बीजेपी को लेकर अपना समर्थन जारी करते रहे.
धर्मेंद्र ने कई इंटरव्यू में खुलकर कहा, उन्हें संसद में नेताओं का व्यवहार, गाली-गलौज और एक-दूसरे पर व्यक्तिगत हमले बिल्कुल पसंद नहीं आए. वे बोले, मैंने सोचा था कि राजनीति में जाकर कुछ अच्छा करूंगा, लेकिन वहां जो कुछ देखा, उससे दिल टूट गया.”
उन्होंने कहा था राजनीति में भ्रष्टाचार और सौदेबाजी
धर्मेंद्र का स्वभाव हमेशा से सरल और भावुक रहा. वह राजनीति की चालबाज़ी, गुटबाज़ी और प्रोटोकॉल में खुद को फिट नहीं कर पाए. उन्होंने एक इंटरव्यू में ये भी कहा, “मैं राजनीति के लायक नहीं हूं. बस लोगों के दिलों में रहना चाहता हूं.”
उन्होंने ये भी कहा, राजनीति में घुसपैठिए, भ्रष्टाचार और सौदेबाजी इतनी है कि यह ईमानदार इंसान के लिए असहनीय हो जाती है. एक 2013 के इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “सियासत ने मुझे तोड़ दिया. वहां सब कुछ पैसे और सौदों पर चलता है, जो मेरी सोच से मेल नहीं खाता.” सांसद रहते हुए उन्हें ये भी लगा कि वे जनता की असली समस्याओं और किसानों की समस्याओं को भी हल नहीं कर पा रहे.
उन्होंने इंटरव्यू में ये भी मैने काम किया, लेकिन क्रेडिट किसी और को मिला. जब वह सियासत में थे तो मीडिया के रुख पर भी खफा रहते थे. उन्होंने ये भी कहा कि “मीडिया ने भी मेरा साथ नहीं दिया” — मतलब उनकी किए गए कामों को पारदर्शिता या ज़रूरत के मुताबिक़ उजागर नहीं किया गया.
हालांकि धर्मेंद्र की ही तरह राजनीति उनके बेटे सनी देयोल को भी रास नहीं आई. उन्होंने राजनीति में कदम रखा. वर्ष 2019 में वह बीजेपी के टिकट पर गुरदासपुर से चुनाव लड़ा. इस चुनाव को जीता लेकिन उसके बाद उन्होंने 2024 में चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया.
सांसद रहते हुए धर्मेंद्र ने क्या काम किया
– वित्तीय सहायता और सांसद कोटे (MPLADS फंड) के इस्तेमाल में सक्रिय भूमिका निभाई.– सांसद कोटे का उपयोग बीकानेर के कई स्कूलों, अस्पतालों और सार्वजनिक स्थानों के विकास के लिए किया.– समाज, संगठन और संस्थाओं के लिए सहायता हेतु हमेशा तैयार रहते थे.– सुर सागर की सफाई करवाई.– बीकानेर में स्कूलों की फीस कम करवाई.– उन्होंने कहा था कि वह अपने क्षेत्र की हर समस्या को सुनते थे. उनका ऑफिस उन्हें रोज़ाना लोगों की समस्याओं के बारे में बताता था. हालांकि संसद में कम उपस्थिति और फिल्मों की शूटिंग में व्यस्तता को लेकर आलोचना भी हुई.



