भूकंप ने डाली दरार और फट पड़ा ज्वालामुखी, एक लाख परमाणु बमों जैसी निकली आग, सोते-सोते कंकाल बन गए इंसान

प्रकृति के क्रोध की धमक आज भी इंसान को कांपने पर मजबूर कर देती है. अफ्रीका के इथियोपिया में हेली गुब्बी ज्वालामुखी 12,000 साल बाद अचानक से फट पड़ा. इस ज्वालामुखी से निकला गर्म राख का गुबार गुजरात-राजस्थान होते हुए दिल्ली के आसमान तक पहुंच चुका है. इस कारण देशभर में कई उड़ानें रद्द या डायवर्ट करनी पड़ी है. इथियोपिया में फटे इस ज्वालामुखी ने 1,946 साल पहले इटली के माउंट वेसुवियस में हुए भयानक विस्फोट की भी यादें कर दीं.
79 ई. में दो जोरदार भूकंप के झटकों ने वेसुवियस पहाड़ पर ऐसी दरार डाली कि हजारों साल से सोया ज्वालामुखी अचानक से एक दिन फट पड़ा. इस ज्वालामुखी से निकले लावे और जहरीली गैस की गुबार ने रोमन शहर पोम्पेई एक ही रात में राख में तब्दील कर दिया गए और हजारों लोग को सोते-सोते ही कंकाल बन गए. आइए, इतिहास की उस त्रासदी को फिर से खंगालें, जो आज भी ज्वालामुखी विज्ञान का आधार बनी हुई है…
कैंपेनिया क्षेत्र में बसा वेसुवियस 24 अगस्त 79 ईस्वी को फट पड़ा. यह रोमन इतिहास की सबसे घातक आपदाओं में गिना जाता है. ज्वालामुखी ने 33 किलोमीटर ऊंचाई तक गर्म राख और गैसों का विशालकाय बादल उगलना शुरू कर दिया. पिघला हुआ चट्टान, प्यूमिस की धूल और गर्म राख 1.5 मिलियन टन प्रति सेकंड की रफ्तार से माउट वेसुवियस से बाहर निकला. ऐसा अनुमान है इस ज्वालामुखी विस्फोट से निकली कुल ऊर्जा हिरोशिमा-नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से 100,000 गुना ज्यादा थी.
माउंट वेसुवियस से 700 डिग्री सेल्सियस गर्म राख की लहरें 100 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से बहती रहीं. राख और प्यूमिस की बारिश घंटों चल रही. हालांकि इस पहाड़ के करीब ही बसे पॉम्पेई शहर के लोग इस खतरे को पूरी तरह भांप नहीं पाए. कुछ ही मिनटों में ये लहरें नेपल्स की खाड़ी के किनारे बसे शहरों को निगल गईं और लोग गहरी नींद में सोते हुए कंकाल बन गए.
हालांकि यह तबाही रातोंरात नहीं उतरी थी. इससे शांत ज्वालामुखी के फटने के पीछे यहां कुछ साल पहले आए दो बड़े भूकंप को एक बड़ी वजह माना जाता है. दरअसल रोमन इतिसाह में दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक यहां 5 फरवरी 62 ईस्वी को नेपल्स की खाड़ी में एक बड़ा भूकंप आया, जिसने पोम्पेई को बुरी तरह झकझोर दिया. दीवारें ढह गईं, मंदिर टूटे, सड़कें फटीं. इस भूकंप से तबाह कई इमारतों की मरम्म ही चल रही थी कि 64 ईस्वी में एक और छोटा भूचाल आया.
वहीं वेसुवियस के विस्फोट से ठीक चार दिन पहले भी कुछ छोटे भूकंप आए, लेकिन इन्हें खतरे की घंटी नहीं माना गया. हालांकि इस भूकंप ने चट्टानों में दरारें डालीं, और उबलता लाल लावा ऊपर फट पड़ा. फिर आया वह काला दिन. मिसेनम शहर से प्लिनी द यंगर ने इस घटना का जीवंत वर्णन किया है. सुबह आकाश में एक पाइन ट्री जैसा विशाल बादल उभरा… ऊपर से फैला हुआ, नीचे मोटा. राख और प्यूमिस की बारिश घंटों चली. लोग जान बचाने के लिए भागे, लेकिन ज्वालामुखी से निकली राख ने सब निगल लिया. पोम्पेई शहर पूरी तरह मिट्टी में मिल गए. राख की परतों ने 1,500 से ज्यादा शवों को संरक्षित कर दिया, जो हजारों साल पुरातत्वविदों को जस की तस मिली. पोम्पई की खुदाई में घर, मंदिर, बाजार और ब्रेड की दुकानें उजागर हुईं, जहां रोटियां ओवन में पक रही थीं. अनुमान है कि माउंट वेसुवियस के ज्वालामुखी विस्फोट में 10,000-16,000 लोगों की जान चली गई थी.
वहीं इथियोपिया के ज्वालामुखी में हुआ विस्फोट माउंट विसूवियस जैसा खतरनाक तो नहीं, लेकिन यह भी विसूवियस की तरह लगभग 10 हजारों से शांत बैठा था और इस विस्फोट के पीछे भी भंकप को ही वजह माना जा रहा है. एरटा एले रेंज का यह हिस्सा पृथ्वी की प्लेटों के टकराव का केंद्र है. विस्फोट ने 10-15 किलोमीटर ऊंचाई तक राख और सल्फर डाइऑक्साइड का प्लूम उगला, जो 100-120 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ते हुए भारत के आसमान तक पहुंच गया. DGCA ने इस ज्वालामुखीय राख के मद्देनजर सोमवार को एयरलाइंस को एडवाइजरी जारी की, जिसमें इस राख वाले इलाकों में जाने से बचने को कहा गया है, क्योंकि इस राख के कण इंजन में चिपककर उसे खराब कर सकते हैं.
वैज्ञानिक कहते हैं, जलवायु परिवर्तन से ऐसे विस्फोट बढ़ रहे हैं. वेसुवियस ने हमें सिखाया कि प्रकृति की चेतावनियां नजरअंदाज न करें. वहीं इथियोपिया की राख दिल्ली को काला कर रही, तो क्या हम तैयार हैं? भूकंप की दरारें आज भी आ रही हैं… 62 ईस्वी की तरह. ज्वालामुखी फटते ही आग बहती है, और इंसान सोते-सोते राख में दफन. यह इतिहास नहीं, चेतावनी है…



