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Volcano Eruption: क्यों होता है ज्वालामुखी विस्फोट, दुनिया के नक्शे पर कहां-कहां मौजूद हैं ये हॉटस्पॉट

Volcano Eruption: रविवार सुबह (23 नवंबर) उत्तरी इथियोपिया में लंबे समय से सुप्त ज्वालामुखी हेली गुब्बी फट गया और आसमान में राख के गुबार उठने लगे. विस्फोट के क्षण का वर्णन करते हुए एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा, “ऐसा लगा जैसे अचानक कोई बम फेंका गया हो.” सौभाग्य से विस्फोट के बाद कोई हताहत नहीं हुआ. 12,000 सालों में यह पहला मौका है जब हेली गुब्बी में विस्फोट हुआ है और तस्वीरों में ज्वालामुखी के शिखर से राख के विशाल गुबार निकलते दिखाई दे रहे हैं.

आइए समझते हैं कि आखिर ज्वालामुखी कैसे फटते हैं और ये दुनिया के किन हिस्सों में स्थित हैं. ज्वालामुखी विस्फोट के बाद धरती के गर्भ से निकली वस्तुओं का क्या इस्तेमाल होता है इस बारे में भी जानेंगे.

कैसे बनते हैं ज्वालामुखी और लावाज्वालामुखी को हमारी पृथ्वी की पपड़ी (crust) में मौजूद एक दरार (fracture) के रूप में समझा जा सकता है. यह दरार पृथ्वी के भीतर मौजूद मैग्मा (Magma), गर्म गैसों (hot gases), पिघले हुए लावा (molten lava) और चट्टान के टुकड़ों (rock fragments) को बाहर निकलने का मार्ग प्रदान करती है. पृथ्वी की गहराई में अत्यधिक गर्मी के कारण कुछ चट्टानें धीरे-धीरे पिघल जाती हैं और एक गाढ़ा, बहने वाला पदार्थ बनाती हैं जिसे मैग्मा कहा जाता है. यह मैग्मा ठोस चट्टान से हल्का होता है, इसलिए यह ऊपर की ओर उठता है और मैग्मा कक्षों में एकत्रित हो जाता है. अंततः, कुछ मैग्मा पृथ्वी की सतह पर मौजूद दरारों और छिद्रों से बाहर निकल आता है, जिसके परिणामस्वरूप ज्वालामुखी विस्फोट होता है. इस बाहर निकले हुए विस्फोटित मैग्मा को ही लावा कहते हैं.

कैसे होता है ज्वालामुखी विस्फोटज्वालामुखी कैसे फटते हैं, यह समझने के लिए हमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानना आवश्यक है. सबसे बाहरी परत को स्थलमंडल (Lithosphere) कहा जाता है, जिसमें ऊपरी क्रस्ट (Upper Crust) और मेंटल (Mantle) का ऊपरी भाग शामिल होता है. मेंटल एक मोटी परत है जो मुख्य रूप से ठोस चट्टानों से बनी होती है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में यह अर्ध-ठोस (semi-solid) अवस्था में भी हो सकती है.

पृथ्वी की संरचना और मैग्मा का कंपोजिशन

क्रस्ट की मोटाई: पर्वतीय क्षेत्रों में क्रस्ट की मोटाई 10 किमी से 100 किमी तक हो सकती है. यह परत मुख्य रूप से सिलिकेट चट्टानों (Silicate Rocks) से बनी होती है.

मैग्मा की संरचना: मैग्मा एक जटिल मिश्रण है. इसमें घुले हुए रूप में एंडेसिटिक (Andesitic) और रयोलाइटिक (Rhyolitic) घटकों के साथ-साथ पानी (Water), सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें भी मौजूद होती हैं.

विस्फोट को प्रेरित करने वाले कारकविस्फोट की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब बुलबुले बनने के कारण अतिरिक्त पानी मैग्मा के साथ टूट जाता है. जैसे-जैसे मैग्मा सतह के करीब पहुंचता है, इसमें पानी का स्तर कम होता जाता है और इसके परिणामस्वरूप गैस का अनुपात (गैस/मैग्मा) चैनल में बढ़ जाता है. दबाव में यह वृद्धि ही अंततः ज्वालामुखी विस्फोट को प्रेरित करती है.

मैग्मा का राख के रूप में बाहर आनापृथ्वी की क्रस्ट (Crust) से लेकर मेंटल (Mantle) तक की परिस्थितियों में नाटकीय रूप से परिवर्तन आता है. इन गहराइयों में दबाव में भारी वृद्धि होती है और तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. चिपचिपी और पिघली हुई चट्टान पृथ्वी की क्रस्ट के भीतर बड़े कक्षों में इकट्ठी हो जाती है. चूंकि मैग्मा अपने आस-पास की ठोस चट्टानों की तुलना में हल्का होता है, यह सतह की ओर तैरना शुरू कर देता है और मेंटल में मौजूद दरारों तथा कमजोरियों को बाहर निकलने के लिए ढूंढता है. अंततः, सतह पर पहुंचने के बाद यह ज्वालामुखी के शिखर बिंदु से फट जाता है. इस पिघली हुई चट्टान को सतह के नीचे होने पर मैग्मा कहा जाता है, लेकिन जब यह ऊपर आकर फटता है, तो यह मुख्य रूप से राख के रूप में बाहर निकलता है.

लावा कैसे बनाता है ज्वालामुखी का आकारप्रत्येक ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान चट्टानें, लावा और राख ज्वालामुखी के मुख (vent) पर जमा होती रहती हैं. इस जमाव से ज्वालामुखी के अंतिम आकार का निर्धारण होता है. विस्फोट की प्रकृति और परिणामस्वरूप ज्वालामुखी का आकार मुख्य रूप से मैग्मा की चिपचिपाहट (viscosity) पर निर्भर करता है. जब लावा आसानी से बहता है (यानी कम चिपचिपा होता है), तो यह दूर तक फैल जाता है. इस प्रकार यह कम ढलान वाले चौड़े ढाल के आकार का ज्वालामुखी बनाता है. जब लावा बहुत गाढ़ा होता है, तो यह दूर तक नहीं फैल पाता. ऐसे में यह एक जाना-पहचाना शंकु (cone) जैसा ज्वालामुखी आकार बनाता है. यदि लावा अत्यधिक गाढ़ा है, तो यह ज्वालामुखी के मुख पर ही जमा हो सकता है. यह जमाव एक गुंबद (dome) जैसी संरचना बनाता है और इसमें विस्फोट भी हो सकता है.

धरती पर कहां-कहां हैं ज्वालामुखीदुनिया में अधिकांश ज्वालामुखी टेक्टोनिक प्लेटों की सीमाओं पर स्थित हैं. ये वे क्षेत्र हैं जहां ये विशाल भूगर्भीय प्लेटें या तो आपस में टकराती हैं, एक-दूसरे से अलग होती हैं, या एक-दूसरे के नीचे खिसकती हैं.

ज्वालामुखियों का जमाव मुख्य रूप से तीन प्रमुख बेल्टों में केंद्रित है:प्रशांत महासागर की रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire): यह विश्व की सबसे बड़ी और सबसे सक्रिय ज्वालामुखी बेल्ट है, जो प्रशांत महासागर के किनारे एक घोड़े की नाल जैसा आकार बनाती है. यह क्षेत्र अपनी अत्यधिक भूगर्भीय गतिविधि के लिए जाना जाता है, जहां विश्व के लगभग 75 प्रतिशत सक्रिय और निष्क्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं. यह महत्वपूर्ण भूगर्भीय पट्टी न्यूजीलैंड से शुरू होती है और दक्षिण-पूर्व एशिया, जापान, तथा उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के किनारों तक फैली हुई है.

मध्य-महासागरीय रिज प्रणाली (Mid-Oceanic Ridge System): यह वह क्षेत्र है जहाँ टेक्टोनिक प्लेटें समुद्र तल पर एक-दूसरे से दूर जा रही हैं.

भूमध्यसागरीय बेल्ट (Mediterranean Belt): इसमें भूमध्य सागर के आस-पास के ज्वालामुखी शामिल हैं, जैसे कि इटली में एटना और वेसुवियस.

इंडोनेशिया का विशेष महत्व (Special importance of Indonesia): इंडोनेशिया इस रिंग ऑफ फायर में स्थित होने के कारण, दुनिया के सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी वाला देश है. अनुमान के अनुसार इंडोनेशिया में लगभग 121 सक्रिय ज्वालामुखी मौजूद हैं.

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