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किस्सा : गजरा की मौत ने तोड़ दिया सपना! राजस्थान का वो ताजमहल जो कभी पूरा ही नहीं हो पाया

Last Updated:December 01, 2025, 19:01 IST

Rajasthan Ka Tajmahal : राजस्थान के धौलपुर में भी अधूरा ताजमहल है. धौलपुर रियासत के महाराज भगवंत सिंह ने 1836 में अपनी प्रियशी गजरा की याद में एक ताजमहल का निर्माण करवा रहे थे. लेकिन किसी कारणवश प्रियशी की मौत हो गई और निर्माण अधूरा रह गया. इतिहास के पन्नों में इसे सदा के लिए अधूरा ताजमहल कहा जाने लगा. 

महाराज भगवंत सिंह अपने पिता महाराज कीरत सिंह की मृत्यु के बाद सन 1836 में धौलपुर रियासत के राजा बने.<br />कहा जाता है महाराज भगवंत सिंह स्वाभाविक रूप से आशिक मिजाज के थे. महाराज भगवंत सिंह के एक प्रमुख अधिकारी थे सैयद मोहम्मद जो धौलपुर रियासत में एक अधिकारी के पद पर तैनात थे. महाराज भगवंत सिंह को अपने अधिकारी सैयद मोहम्मद की बेटी गजरा से पहली मुलाकात में प्यार हो गया था.

गजरा एक अच्छी नृत्यांगना भी थी. स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं एक बार महाराज भगवंत सिंह के दरबार में नृत्य सभा का आयोजन होता है. उस समय ही महाराज भगवंत सिंह और गजरा की मुलाकात होती है. और दोनों ही एक दूसरे को अपना दिल दे बैठे. महाराज भगवंत सिंह और उनकी प्रेमिका गजरा शादी करना चाहते थे.

महाराज भगवत सिंह ने गजरा के पिता सैयद मोहब्बत से जब शादी की बात की तो सैयद मोहम्मद ने अपनी बेटी गजरा और धौलपुर के महाराज भगवंत सिंह की शादी से इनकार कर दिया. फिर भी कुछ समय बाद महाराज भगवंत सिंह और गजरा की शादी हो जाती है. गजरा जितना अच्छा नृत्य करती थी उतना ही अच्छा धौलपुर रियासत का राजकाज संभाल रही थी. मतलब धौलपुर रियासत के राजकाज में गजरा की दखल बढ़ती गई और गजरा का फरमान धौलपुर रियासत में पत्थर की लकीर बन गई. लेकिन धौलपुर रियासत के प्रमुख अधिकारी और सरदार गजरा के राजकाज में दखल से खुश नहीं थे.

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महाराज भगवंत सिंह भी अपनी प्रेमिका गजरा के लिए ताजमहल जैसी ही प्यार की निशानी बनवाना चाहते थे. जिससे महाराज भगवंत सिंह और गजरा का प्यार हमेशा के लिए अमर हो जाए. महाराज भगवंत सिंह ने 1855 में ताजमहल जैसे ही इमारत बनवाने का फैसला किया और इस इमारत को बिल्कुल ताजमहल जैसा ही बनवाने की कोशिश की गई.

सफेद और लाल पत्थर से बनी इस इमारत के चारों तरफ मीनार बनवाई गई और इस इमारत के बीच हिस्से में चौकारे और बुलंद दरवाजा (बड़ा दरवाजा) और चारों तरफ छोटे-छोटे मेहराब बनवाये गये. सन 1859 में गजरा की मृत्यु हो जाती है और फिर इस इमारत के बीचों-बीच बिल्कुल ताजमहल जैसा ही गजरा का मकबरा बनवा दिया जाता है.

धौलपुर में स्थित इस प्यार की निशानी की अगर देखभाल अच्छे से की जाती तो शायद ये भारत का दूसरा ताजमहल होता. प्यार की यह निशानी आज खंडर और जर्जर अवस्था में होकर अपने इतिहास को ही भूलती जा रही है.

First Published :

December 01, 2025, 19:01 IST

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