पपीते-मिर्च में मोज़ेक वायरस रोकथाम हेतु डाइमेथोएट छिड़काव

Last Updated:December 08, 2025, 15:19 IST
सर्दियों में पपीता और मिर्च की फसल मोज़ेक और लीफ कर्ल वायरस जैसी बीमारियों से प्रभावित हो जाती है, जो मुख्य रूप से कीट-वाहकों जैसे सफेद मक्खी और माहू के माध्यम से फैलती हैं. प्रभावित पौधों को तुरंत नष्ट करना और समय पर डाइमेथोएट छिड़काव करना रोग के प्रसार को रोकने में मदद करता है. खेत की स्वच्छता, पौधों के बीच उचित दूरी, रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन, नर्सरी में स्वस्थ पौध तैयार करना और बीजोपचार जैसी विधियां रोग प्रकोप को कम करती हैं. जैविक खेती में पीले चिपचिपे ट्रैप, नीम तेल या लस्सी आधारित घोलों का उपयोग कीट नियंत्रण के लिए कारगर है.
बढ़ती सर्दी के मौसम में पपीते में मोज़ेक वायरस और पत्ती मुड़ने जैसी बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है. ये मुख्य रूप से वायरस जनित रोग हैं, जो कीट-वाहकों द्वारा फैलते हैं, इस रोग की शुरुआत पत्तियों के पीले पड़ने, सिकुड़ने, हल्के धब्बे बनने या मोज़ेक पैटर्न दिखाई देने से होती है. ऐसे में किसानों को अपनी फसल बचाने के लिए प्रभावित पौधों को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए, ताकि वायरस आगे स्वस्थ पौधों में न फैल सके और उत्पादन पर इसका असर कम हो.

एग्रीकल्चर एक्सपर्ट दिनेश जाखड़ ने बताया कि पपीते के पौधों में मोज़ेक वायरस और पत्ती मुड़ने जैसी बीमारियों के फैलाव में मुख्य भूमिका सफेद मक्खी और माहू जैसे कीट निभाते हैं, इसलिए वायरस की रोकथाम के साथ-साथ कीट नियंत्रण भी जरूरी है. इसके लिए डाइमेथोएट 30 ईसी की मात्रा 1 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. यह न केवल कीटों को नियंत्रित करता है बल्कि बीमारी के आगे प्रसार को भी रोकता है. नियमित अंतराल पर देखभाल और छिड़काव से पपीते के पौधों को इन रोगों से बचाया जा सकता है.

पपीते के अलावा मिर्च की फसल भी मोज़ेक और लीफ कर्ल वायरस से तेजी से प्रभावित हो जाती है. मिर्च में ये रोग पौधे की बढ़वार रोक देते हैं और पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ने लगती हैं. जैसे ही ऐसी पत्तियों का गुच्छा दिखाई दे, उन्हें तुरंत खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें. समय पर डाइमेथोएट का छिड़काव मिर्च में भी वायरस जनित रोगों के प्रसार को नियंत्रित करने में बेहद प्रभावी माना जाता है.
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एग्रीकल्चर एक्सपर्ट दिनेश जाखड़ ने बताया कि रोगों की रोकथाम के लिए खेत की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए. खेत में उगी खरपतवार वायरस और कीटों के लिए मेजबान का काम करती है, इसलिए इन्हें समय-समय पर हटाते रहना जरूरी है. साथ ही, पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखने से कीटों के तेजी से फैलाव पर रोक लगती है. अत्यधिक घनी बुवाई से बचें, क्योंकि इससे पौधों में नमी अधिक बनी रहती है और कीटों को तेजी से पनपने का मौका मिलता है.

इसके अलावा, जहाँ तक संभव हो, रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए, एग्रीकल्चर एक्सपर्ट ने बताया कि पपीते और मिर्च की कई नई किस्में विकसित की गई हैं जो वायरस सहनशील होती हैं. नर्सरी में स्वस्थ पौधे तैयार करना, पहले से संक्रमित पौधों से दूरी बनाए रखना और बीजोपचार जैसी विधियां अपनाने से भी रोगों के प्रकोप को काफी हद तक रोका जा सकता है, इससे उत्पादन सुरक्षित रहता है.

जैविक खेती अपनाने वाले किसान पीले चिपचिपे ट्रैप, नीम तेल (5 मिली/लीटर) या लस्सी-आधारित जैविक घोलों का उपयोग करके कीटों की संख्या कम कर सकते हैं. इससे वायरस फैलाने वाले वाहक कीटों पर प्रारंभिक नियंत्रण मिलता है. नीम-आधारित कीटनाशक नियमित रूप से प्रयोग करने से वातावरण में रसायनों की मात्रा कम रहती है और पौधों की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है.

खेत में पौधों की पोषण स्थिति मजबूत रखना भी आवश्यक है, संतुलित खाद-उर्वरक देने से पौधे मजबूत रहते हैं और वायरस का प्रभाव कम दिखाई देता है. पोटाश की कमी होने पर पौधे जल्दी संक्रमित हो जाते हैं, इसलिए पोटाशयुक्त उर्वरक का उपयोग करें, इसके अलावा, माइक्रोन्यूट्रिएंट का स्प्रे समय-समय पर करने से पत्तियाँ स्वस्थ रहती हैं और वायरस का असर धीमा पड़ता है, जिससे कुल उत्पादन बेहतर होता है.
First Published :
December 08, 2025, 15:19 IST
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जानिए पपीते-मिर्च में मोज़ेक वायरस रोकथाम के लिए क्यों जरूरी है डाइमेथोएट



