Rajasthan

राजस्थानी हंसला आभूषण – Rajasthani Hansla Ornament Symbol of Valor & Culture

Last Updated:December 10, 2025, 06:20 IST

Rajasthani Hansla: राजस्थानी पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला हंसला आभूषण वीरता, शौर्य और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है. चांदी का यह पारंपरिक कंठहार सदियों से राजस्थान की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है. आज भी युवा तथा बुजुर्ग इसे गर्व और सम्मान के साथ धारण करते हैं, जो इसे राजस्थानी विरासत का गौरव बनाता है.राजस्थानी हंसला: पुरुष शक्ति और परंपरा का अभिन्न प्रतीक

राजस्थान की भूमि अपनी शौर्य गाथाओं, परंपराओं, वीरता और विशिष्ट लोक संस्कृति के लिए जानी जाती है. यहाँ के आभूषण केवल सजावट का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा, वीरता और आन-बान-शान के प्रतीक माने जाते हैं. इन्हीं ख़ास आभूषणों में से एक है हंसला, जिसे पारंपरिक रूप से राजस्थानी पुरुष सदियों से धारण करते आ रहे हैं. यह आभूषण पुरुषार्थ, साहस और गौरवशाली विरासत का प्रतीक है.

राजस्थानी हंसला: पुरुष शक्ति और परंपरा का अभिन्न प्रतीक

हंसला गर्दन में पहना जाने वाला एक ठोस और अर्धवृत्ताकार आभूषण होता है. इसे आमतौर पर शुद्ध या मिश्रित चांदी से बनाया जाता है. इसकी मोटी, मजबूत बनावट इसे सामान्य हार से अलग पहचान देती है. हंसला पहनने का उद्देश्य केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि शक्ति और आत्मबल का प्रदर्शन भी रहा है. पुराने समय में योद्धा इसे युद्ध के समय धारण करते थे, जिससे यह उनकी शारीरिक शक्ति और मानसिक दृढ़ता का प्रतीक बन गया.

राजस्थानी हंसला: पुरुष शक्ति और परंपरा का अभिन्न प्रतीक

प्राचीन काल में हंसला राजपूत योद्धाओं और सामंतों द्वारा धारण किया जाता था. इसे पहनना उनके निडर स्वभाव, युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता को दर्शाता था. माना जाता था कि हंसला पहनने वाला पुरुष साहसी, वचन का पक्का और अपनी भूमि व सम्मान की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता है. इसी कारण यह आभूषण वीरता और शौर्य का सशक्त प्रतीक बन गया, जिसे आज तक राजस्थानी पुरुषों के द्वारा धारण किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि हंसला पहनने वाला व्यक्ति कभी कायर नहीं होता और वह अपने गौरव की रक्षा के लिए अंतिम साँस तक लड़ता है. इसलिए हंसला राजस्थान की वीर परंपरा का आधारभूत स्तंभ बन गया है.

Add as Preferred Source on Google

राजस्थानी हंसला: पुरुष शक्ति और परंपरा का अभिन्न प्रतीक

हंसला केवल आभूषण नहीं, बल्कि सामाजिक पहचान भी रहा है. कई क्षेत्रों में इसे सम्मान के रूप में प्रदान किया जाता था. यह अक्सर पिता से पुत्र को विरासत में मिलता था, जिससे पीढ़ियों तक परिवार की शान और इतिहास जुड़ा रहता है. समाज में हंसला पहनने वाला पुरुष सम्मान और गरिमा की दृष्टि से देखा जाता था. इस प्रकार, हंसला केवल धातु का टुकड़ा न होकर, पारिवारिक गौरव और सामाजिक हैसियत का प्रतीक बन गया.

राजस्थानी हंसला: पुरुष शक्ति और परंपरा का अभिन्न प्रतीक

राजस्थानी लोक जीवन में हंसला का विशेष स्थान है. मेलों, त्योहारों, लोकनृत्यों और पारंपरिक आयोजनों में पुरुष इसे अपनी पारंपरिक वेशभूषा धोती, अंगरखा और साफ़ा के साथ धारण करते हैं. यह आभूषण आज भी ग्रामीण और लोक संस्कृति में गर्व की पहचान बना हुआ है. हंसला, राजस्थानी संस्कृति के प्रति गहरे सम्मान और गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है.

राजस्थानी हंसला: पुरुष शक्ति और परंपरा का अभिन्न प्रतीक

समय के साथ हंसला के डिज़ाइन में भी बदलाव आया है. आज यह पारंपरिक के साथ-साथ आधुनिक रूपों में भी उपलब्ध है, जिससे युवा पीढ़ी इसे फ़ैशन और परंपरा के मेल के रूप में अपना रही है. हल्का वज़न, कलात्मक नक़्क़ाशी और नए डिज़ाइन इसे आज के समय में भी लोकप्रिय बनाए हुए हैं. फ़ैशन के बदलते दौर में हंसला परंपरा और आधुनिकता के सुंदर संगम का उदाहरण बन चुका है. इसका लोकप्रिय होना शौर्य, स्वाभिमान और सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है.

न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।First Published :

December 10, 2025, 06:20 IST

homelifestyle

राजस्थान का पारंपरिक आभूषण ‘हंसला’, पुरुष शक्ति और सांस्कृतिक विरासत का…

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj