Safe Heaven for Criminals| Which Countries are not in Interpol| Countries Out of Interpol: कौन से हैं वो देश, जहां इंटरपोल भी नहीं बिगाड़ सकता कुछ, अपराधियों के लिए बने हैं सेफ हैवेन

Countries Where Interpol Doesn’t Work: अपराध करके देश छोड़ देना आजकल बहुत सामान्य हो गया है. हालांकि जब इन अपराधियों के खिलाफ इंटरपोल के नोटिस जारी होते हैं, तो इनके बचने की संभावना कम हो जाती है. दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि ये तय कर देती है कि इन्हें अपराधों की सजा मिल ही जाएगी. इसके लिए काम करता है – इंटरपोल. ये एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो दुनिया भर के पुलिस बलों के बीच सहयोग सुविधाजनक बनाता है. अब सवाल ये उठता है कि क्या ऐसी भी जगहें हैं, जहां इंटरपोल भी नाकाम हो जाता है.
आपको बता दें कि इंटरपोल खुद गिरफ्तारियां नहीं करता, बल्कि नोटिस जारी करता है. नोटिस के तहत वो अलग-अलग देशों को किसी भगोड़े को लोकेट करने और अस्थायी रूप से गिरफ्तार करने की रिक्वेस्ट करता है. इंटरपोल के पास अपनी कोई पुलिस फोर्स नहीं है और यह किसी देश में जबरदस्ती एक्शन नहीं ले सकता. यही वजह है कि कुछ ऐसे देश भी हैं, जो इसकी जद से बाहर हैं और वही क्रिमिनल्स के लिए सेफ हैवेन बने हुए हैं.
इंटरपोल के रेड नोटिस का प्रभाव कहां नहीं पड़ता?
फिलहाल इंटरपोल के 196 सदस्य देश हैं, यानि दुनिया के लगभग सभी देश इसके सदस्य हैं. इंटरपोल के रेड नोटिस गैर-सदस्य देशों में कोई आधिकारिक प्रभाव नहीं रखते, क्योंकि वहां इंटरपोल का कोई नेशनल सेंट्रल ब्यूरो नहीं होता और सहयोग की बाध्यता नहीं होती. जिन देशों में इंटरपोल के नोटिस काम नहीं करते, वे इस तरह से हैं –
उत्तर कोरिया (इसकी वजह राजनीतिक अलगाव है)
तुवालु (छोटा द्वीपीय देश, संसाधनों की कमी)
अन्य छोटे या आंशिक रूप से मान्यता प्राप्त जैसे – पलाऊ, माइक्रोनेशिया, वानुअतु. हालांकि ताजा आंकड़ों में मुख्य रूप से उत्तर कोरिया और टुवालु ही पूर्ण रूप से गैर-सदस्य हैं.
आंशिक मान्यता प्राप्त या विवादित देशों में ताइवान, कोसोवो और फिलिस्तीन के मामले में इंटरपोल की सीमित पहुंच है.
इन देशों में भागने वाले अपराधियों को इंटरपोल का रेड नोटिस भी सीधे प्रभावित नहीं कर सकता. हालांकि अगर अपराध गंभीर है, तो कोई भी देश 100 फीसदी सुरक्षित नहीं होता. मूल देश डिप्लोमैटिक प्रेशर, बाइलेटरल एग्रीमेंट या अन्य तरीकों से एक्सट्राडिशन की कोशिश कर सकता है.
बिना प्रत्यर्पण संधि के भी इंटरपोल नोटिस प्रभावी हैं क्या?
दुनिया के कई देशों में एक्सट्राडिशन ट्रीटी यानि प्रत्यर्पण संधि नहीं होने के बावजूद वे इंटरपोल सदस्य हैं और रेड नोटिस पर एक्शन ले सकते हैं. ऐसे देशों में – रूस, चीन, ईरान, क्यूबा, वेनेजुएला शामिल हैं.
किन देशों से लाए जा रहे हैं भारतीय अपराधी?
भारत ने कुल 50 देशों के साथ एक्स्ट्राडिशन ट्रीटी यानि प्रत्यर्पण संधि कर रखी है, जबकि 11 देशों के साथ एक्स्ट्राडिशन अरेंजमेंट साइन किए हैं. ये संधि भारत को भगोड़ों को वापस लाने में मदद करती हैं, लेकिन संधि के बाद भी कई बार प्रत्यर्पण आसान नहीं होता, इसके साथ भी अपने नियम हैं. भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक लगभग 150 से ज्यादा देशों के साथ ऐसी कोई औपचारिक ट्रीटी या अरेंजमेंट नहीं है. हालांकि इसके बाद भी दूसरे रास्तों से प्रत्यर्पण संभव हो सकता है. जिन प्रमुख देशों से भारत की संधि नहीं है, उनमें – रूस, चीन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कंबोडिया, मंगोलिया, क्यूबा, उत्तर कोरिया, वेनेजुएला, अर्जेंटीना, ब्रुनेई और बहरीन जैसे देश शामिल हैं. हालांकि इनमें भी अगर उत्तर कोरिया को छोड़ दें, तो ज्यादातर देशों से कूटनीतिक बातचीत के जरिये सीमित सहयोग लिया जा सकता है. अक्सर अपराधी अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों में भागकर ट्रीटी गैप का फायदा उठाते हैं.



