कविता-पतंगें उड़ रही हैं | Poem by Vyagra pande

Hindi poem
जयपुर
Published: January 08, 2022 06:21:49 pm
नई-नई जो मंजिलें गढ़ रही हैं पतंगें उड़ रही हैं व्यग्र पाण्डे पतंगें उड़ रही हैं
बैठ डोरी आगे बढ़ रही हैं
लाल पीली हरी अनेक रंगों की
उड़ रही बन चाहत उमंगों की
नई-नई जो मंजिलें गढ़ रही हैं
पतंगें उड़ रही हैं

कविता-पतंगें उड़ रही हैं
बच्चों का उल्लास देखो
और उनका प्रयास देखो
कोई नीची कोई ऊंची
हर पल ऊपर चढ़ रही हैं
पतंगें उड़ रही हैं रुक जाती हवा जब-जब
दम घुटता उनका तब-तब
देखकर ऐसी दशा को
सबकी धड़कन बढ़ रही हैं
पतंगें उड़ रही हैं
शून्य भरे आकाश में
बसा ली है जिसने बस्ती
तन करके जता रही हकपरस्ती
इस अति उत्साह में
अपनों से ही लड़ रही हैं
पतंगें उड़ रही हैं
—————- व्यग्र पाण्डे कुछ चंचल चितचोर पतंगें
हरी पीली लाल पतंगें
अरे, अरे! संभाल पतंगें
मकर संक्रांति का मौसम है
भांती सबको डोर-पतंगें
जमघट लगा छतों पर कैसा
उड़ा रहे कर शोर पतंगें
वे लज्जा में सहमी-सहमी
कर रही सबको बोर पतंगें
इठलाती सी बलखाती सी
कुछ चंचल चितचोर पतंगें
आज व्यग्र भी खुश है देखो
शब्दों की ले डोर पतंगें
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