राजस्थान: बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे गुजरात-पाकिस्तान की सीमा से सटे 34 गांव
श्याम सुंदर. जालोर. राजस्थान के जालोर जिले के गुजरात व पाकिस्तान की सीमा से सटे गांव इस प्रचंड गर्मी में बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. आजादी के करीब 75 साल बाद भी सरकारें यहां पानी का इंतजाम नहीं कर पाई. जालोर जिले के 30 किलोमीटर के इस इलाके में बसे 34 गांव आज आदिम युग में जी रहे हैं और गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. नेहड़ क्षेत्र के गुजरात व पाकिस्तान की सीमा से सटे सांचौर विधानसभा क्षेत्र गांव के 34 गांवों में आज भी लोग एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं.
जिले के लोगों को पानी पिलाने के लिए फरवरी 2008 को वसुंधरा राजे ने जालोर के सीलू में नर्मदा नहर का लोकार्पण किया था. लेकिन इस योजना के बाद भी इन गांवों की प्यास नहीं बुझ सकी. जानकारी के मुताबिक इन 34 गावों में लोग कच्ची बेरियां खोदकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं. इतना ही नहीं इन बेरियों में भी केवल 10-15 लीटर ही पानी मिल पा रहा है. ग्रामीणों को कई किलोमीटर तक पानी की तलाश में पैदल चलना पड़ रहा है. क्षेत्रवासियों का कहना है कि पेयजल समस्या के समाधान को लेकर हर बार दावे किए गए. लेकिन किसी भी नेता ने अपना वादा पूरा नहीं किया.
एक मटका पानी के लिए करना पड़ता है घंटों इंतजार
जालोर जिले के नेहड़ क्षेत्र के चितलवाना उपखंड में पड़ने वाले करीब 30 किलोमीटर के इलाके में बसे 34 गांवों की एक डरावनी तस्वीर दिखती है. NEWS18 की टीम ने देखा यहां पर एक मटका पानी के लिए महिलाओं को घंटों इंतजार करना पड़ता है. यहां किसी भी प्रकार का कोई पानी का स्रोत नहीं है. इस कारण मीठा पानी पीने के लिए प्रतिदिन यहां कच्ची बेरियों की खुदाई की जाती है. इन बेरियों में भी एक दिन में करीब 10 से 15 लीटर पानी ही निकल पाता है. अगले दिन अगर मीठा पानी पीना हो तो नई बेरी की खुदाई करनी पड़ती है. क्योंकि 1 दिन के बाद दूसरे दिन उस बेरी का पानी खारा हो जाता है. ऐसे में आप कल्पना कर सकते हैं कि गर्मी के दिनों में 45-50 डिग्री के तापमान में लोगों के क्या हाल होते होंगे. बता दें कि 14 साल पहले बसुंधरा राजे की सरकार ने यहां एक नहर बनाई थी. लिकेन इस नहर के जरिए यहां केवल 1 बार पानी पहुंचा है.
45 किमी बिछी लाइन से केवल 1 साल मिला पानी
बता दें कि इन गांवों में पानी की किल्लत मिटाने के लिए 45 किमी की लाइन बिछी. लेकिन इस लाइन से ग्रामीणों को केवल 1 साल ही पानी मिल पाया. चितलवाना उपखंड क्षेत्र में 34 गांवों वाले 30 किमी नेहड़ क्षेत्र में आज भी सरकारी योजनाओं से पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. कुकड़िया, रडक़ा, ढीगपुरा, भवातड़ा, जोरादर, भाटकी, कोलियों की गढ़ी, सांकरिया, खेजडिय़ाली, सूथड़ी, सूराचंद, रणखार, टीपराड़ा, धुड़ाजी की ढाणी समेत कई गांव हैं, जहां पर पेयजल के लिए जीएलआर तो बनाई गई, लेकिन यह पानी से नहीं जुड़ी हुई है. नर्मदा नहर यहां से 20 से 40 किमी दूरी से गुजर रही है, लेकिन सरकारें ये पानी भी नहीं दे पाई.
पूर्व विधायक हीरालाल बिश्नोई के प्रयासों के बाद भी अब तक कोई जनप्रतिनिधि नेहड़ के लोगों का हाल जानने नहीं पहुंचा. सबसे पहली चिंता 1998 में तत्कालीन विधायक हीरलाल विश्नोई ने जताई थी. उनके कार्यकाल में सांचौर क्षेत्र के सुरावा से नेहड़ तक 40 किमी लंबी पाइप लाइन बिछी और क्षेत्र में पहली बार मीठा पानी आने लगा. 2004 आते-आते यह पानी मिलना भी बंद हो गया. नर्मदा नहर की वितरिकाओं की खुदाई के दौरान पाइप लाइन क्षतिग्रस्त हो गई थी. तब से चार विधायक क्षेत्र में वोट मांगकर विधानसभा जा चुके हैं, लेकिन ये पानी नहीं ला पाए.
आपके शहर से (जालोर)
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Rajasthan news