सड़क पर नहीं सुन रही है सरकार
केंद्र और राज्य सरकार के बीच समन्वय का एक उदाहरण ऐसा है, जो दोनों ही सरकारों के बीच समन्वय की कलई खोल देता है। वसुंधरा सरकार के समय जिन पचास सड़कों को नेशनल हाईवे घोषित करने की केंद्र ने सैद्धांतिक सहमति दी थी, उन प्रस्तावों को हरी झंडी देने के लिए राज्य सरकार अब तक केंद्र को तीन साल में 10 पत्र लिख चुकी है, लेकिन कोई जवाब ही नहीं आ रहा है।
केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री ने 2015 से लेकर 2017 के बीच अपने राजस्थान दौरों में कुल 50 सड़कों ( जिनकी लंबाई 4 हजार 772 किलोमीटर है ) को नेशनल हाईवे का दर्जा देने की सैद्धांतिक सहमति दी थी। इसके बाद प्रस्ताव बनाकर केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय को भेज भी दिए गए। 2018 में भाजपा की सरकार चली गई और कांग्रेस सरकार बनी। इस सरकार में अब तक केंद्र को दस पत्र लिखे जा चुके हैं, लेकिन इन पत्रों का कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया है।
सीएम, सीएस सब लिख चुके पत्र: पचास सड़कों को नेशनल हाईवे घोषित कर गजट नोटिफिकेशन जारी करने की मांग को लेकर केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री एवं अधिकारियों को दस पत्र लिखे जा चुके हैं। इनमें तीन पत्र सीएम अशोक गहलोत की तरफ से भेजे गए हैं। यह पत्र 2020 और 2021 में लिखे गए। इसी तरह दो पत्र मुख्य सचिव लिख चुके हैं। इसके अलावा पांच पत्र सार्वजनिक निर्माण विभाग के सचिव, मुख्य अभियंताओं की तरफ से लिखे जा चुके हैं।
सरकार की नहीं सुनी, अपने स्तर पर निर्णय
राज्य सरकार के प्रस्तावों को सैद्धांतिक सहमति तो केंद्र सरकार ने दे दी, लेकिन नेशनल हाईवे बनाने के मामले में राज्य सरकार की इस पूरे कार्यकाल में एक बार भी नहीं सुनी। दूसरी तरफ, केंद्र सरकार अपने स्तर पर नेशनल हाईवे घोषित कर बनवा रही है। दिल्ली-बड़ौदा आठ लेन एक्सप्रेस वे की बात हो या फिर अमृतसर-जामनगर एक्सप्रेस वे का मामला। केंद्र ने अपने स्तर पर ही इनका अलाइनमेंट तय किया और काम शुरू कर दिया। यह दोनों नेशनल हाईवे राजस्थान से होकर गुजर रहे हैं।