एग्रीकल्चर न्यूज़: सालों की मेहनत और जैविक परंपरा से बनी भटनोखा की मिर्च, राजस्थान और देशभर में बढ़ती मांग

नागौर. आधुनिक दौर में, जहां बाजार मिलावटी उत्पादों से भरे पड़े हैं, वहीं गांवों के अंतिम छोर पर बैठे किसान आज भी जैविक खेती के जरिए शुद्धता और स्वाद की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. खजवाना क्षेत्र का भटनोखा गांव इसी मिसाल के रूप में जाना जाता है, जहां की मिर्च ने केवल प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश भर में अपनी अलग पहचान बनाई है. रंग, स्वाद और तीखापन इन तीनों गुणों में यह मिर्च किसी ब्रांड से कम नहीं है, इसलिए इसकी मांग राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में भी रहती है.
भटनोखा, सेनणी और आसपास के गांवों में वर्षों से मिर्च की खेती होती आ रही है, यहां के वरिष्ठ किसान धारूराम गालवा और रामनाथ गालवा का कहना है कि दो से तीन दशक पहले यह इलाका बड़े पैमाने पर मिर्च उत्पादन के लिए मशहूर था. खेतों में जहां तक नजर जाती, लाल और हरी मिर्च की फसल लहलहाती दिखती थी. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरते जल स्तर ने खेती को गहरा नुकसान पहुंचाया है. पानी की कमी का असर इतना बढ़ गया कि उत्पादन पहले की तुलना में मात्र 30 प्रतिशत तक सिमटकर रह गया.
जैविक तरीके से खेती
इसके बावजूद किसानों का उत्साह कम नहीं हुआ है, वे जैविक तरीके से खेती कर प्राकृतिक स्वाद और गुणवत्ता को बनाए हुए हैं. खेतों में रासायनिक खाद का उपयोग कम और गौ-आधारित जैविक खाद का उपयोग अधिक किया जाता है. किसान बताते हैं कि इससे न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, बल्कि मिर्च में प्राकृतिक तीखापन और सुगंध भी बरकरार रहती है. यही वजह है कि भटनोखा गांव की मिर्च नागौर, हरसोलाव, पुष्कर, जोधपुर समेत कई शहरों के बाजारों में ऊंचे दामों पर बिकती है.
व्यापारी सीधे खेतों से खरीदते हैं मिर्च
स्थानीय किसान बताते हैं कि यदि पानी की पर्याप्त उपलब्धता हो जाए, तो यह क्षेत्र फिर से मिर्च उत्पादन में अपनी पुरानी पहचान हासिल कर सकता है. एक किसान ने जानकारी दी कि उन्होंने ढाई बीघा में मिर्च की खेती की है, जिससे करीब 3 से 4 लाख रुपये तक के उत्पादन की उम्मीद है. उचित सिंचाई व्यवस्था, आधुनिक तकनीक और सरकारी सहयोग मिलने पर किसानों की आर्थिक स्थिति और बेहतर हो सकती है. वर्तमान समय में खेतों में मिर्च की तुड़ाई का काम तेजी से चल रहा है. किसान सुबह-सुबह श्रमिकों के साथ मिर्च तोड़कर उसे धूप में सुखाने की तैयारी करते दिखते हैं. सुखाई गई मिर्च को व्यापारी सीधे खेतों से खरीद लेते हैं, जिससे किसानों को परिवहन और मंडी खर्च से राहत मिलती है.
देशी मिर्ची का ब्रांड
भटनोखा की यह मिर्च सिर्फ आय का साधन नहीं है, बल्कि यहां के किसानों की मेहनत, परंपरा और जैविक विश्वास की पहचान भी है. पानी की कमी ने भले ही उत्पादन पर चोट की हो, लेकिन किसानों की उम्मीदें अभी भी हरी हैं. गांव के लोग मानते हैं कि यदि जल संकट का समाधान हो जाए, तो भटनोखा की मिर्च फिर से पूरे प्रदेश में देशी मिर्ची का ब्रांड बनकर चमक सकती है.



