Ajab Gajab: राजस्थान के इस गांव में गधों को दुल्हन की तरह सजाकर की जाती है पूजा, जानें क्यों निभाई जाती है यह परंपरा

Last Updated:October 23, 2025, 06:59 IST
Rajasthan Unique Tradition: राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में हर साल दीपावली के अगले दिन गधों की पूजा की अनोखी परंपरा निभाई जाती है. कुम्हार समाज अपने जीवन में गधों के योगदान के प्रतीक स्वरूप उन्हें दुल्हन की तरह सजाकर पूजता है और गधों की दौड़ का आयोजन करता है.इस दौरान गधों को स्वादिष्ट पकवान भी खिलाया जाता है.
भीलवाड़ा. राजस्थान के भीलवाड़ा जिला अंतर्गत मांडल में एक ऐसा गांव है, जहां पर खास तौर पर गधों की पूजा की जाती है. उन्हें दुल्हन की तरह सजाया जाता है, फिर गधों की पूजा की जाती है. पुराने लोग बताते हैं जिस प्रकार किसान बैल की पूजा करता है उसी प्रकार यहां कुम्हार समाज की ओर से गधों की पूजा की जाती है. पुराने समय में जब आवागमन और माल परिवहन का कोई जरिया नहीं था, तब गधों के माध्यम से ही सामान का परिवहन किया जाता था. तभी यह परंपरा शुरू हुई थी. कुम्हार (प्रजापति) समाज वर्षों से गधों (बैशाखी नंदन) के पूजन की परंपरा निभा रहा है.
प्रतापनगर निवासी कैलाश कुम्हार और नरेंद्र कुमार ने बताया कि परंपरा शुरुआत तब हुई जब गधे कुम्हार (प्रजापत) समाज की आजीविका का मुख्य साधन थे. ये गधे तालाबों और अन्य जल स्रोतों से काली मिट्टी ढोकर लाते थे, जिसका उपयोग कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने में करते थे. समाज ने उनकी इस सेवा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए यह पूजा शुरू की. यह आयोजन हर साल दीपावली के अगले दिन, गोवर्धन पूजा पर्व पर, प्रतापनगर चौक में होता है. इस कार्यक्रम में मांडल और आस-पास के गांवों से सैकड़ों लोग जुटते हैं. पूजा की शुरुआत गधों की अर्चना से होती है, जिसमें उन्हें विभिन्न पकवान खिलाए जाते हैं. इसके बाद ‘गधों की दौड़’ या ‘भड़काया’ का आयोजन किया जाता है.
इस कारण से निभा रहें परंपरा
मांडल कस्बे के गोपाल कुम्हार ने बताया कि वैशाख नंदन पर्व मांडल में लगभग 70 सालों से मनाते आ रहे हैं. हमारे पूर्वज पहले हर घर में गधे रखते थे. उससे हमारी रोजी-रोटी चलती थी. अब जैसे-जैसे साधन बढ़ रहे हैं, इनकी संख्या कम होती जा रही है. फिर भी इनको हम भूले नहीं और हमारे पूर्वज दीपावली पर इनको पूजते थे. उसी परंपरा को निभाते हुए हम भी दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा के दिन हम इनको पूजते हैं. जिस प्रकार किसान अपने बैलों की पूजा करते हैं, उसी प्रकार हम कुम्हार समाज के लोग परंपरा को बनाए रखे हुए हैं.
गधों को दिया जाता है वीआईपी ट्रीटमेंट
दौड़ में प्रथम आने वाले गधे को विशेष सम्मान दिया जाता है. इस परंपरा को जीवित रखने के लिए कुम्हार समाज के लोग आस-पास के जंगलों और गांवों से गधों को खोजकर लाते हैं और उनकी पूजा करते हैं. यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि कुम्हार समाज की मेहनत और जीविकोपार्जन की ऐतिहासिक झलक भी प्रस्तुत करता है. आधुनिकता के इस दौर में भी यह परंपरा समाज की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में कायम है.
deep ranjan
दीप रंजन सिंह 2016 से मीडिया में जुड़े हुए हैं. हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, ईटीवी भारत और डेलीहंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 2022 से हिंदी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. एजुकेशन, कृषि, राजनीति, खेल, लाइफस्ट…और पढ़ें
दीप रंजन सिंह 2016 से मीडिया में जुड़े हुए हैं. हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, ईटीवी भारत और डेलीहंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 2022 से हिंदी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. एजुकेशन, कृषि, राजनीति, खेल, लाइफस्ट… और पढ़ें
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।Location :
Bhilwara,Rajasthan
First Published :
October 23, 2025, 06:59 IST
homeajab-gajab
यहां इंसानों से भी ज्यादा सम्मान पाते हैं गधे, दिवाली के बाद पूजते हैं लोग
 


