Ajab Gajab: काम जमीन का मगर कीमत आसमान छूने वाली! 80 साल पुरानी एंटीक दरी, कीमत उड़ा देगी होश

पाली. राजस्थान की शिल्पकला और हस्तनिर्मित कलाकृतियों की पहचान रखने वाला सालावास गांव आज भी अपनी दरियों (Durries) के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है. यह वही सालावास है, जो जोधपुर-पाली रोड पर स्थित है और जिसे लोग प्यार से “दरी गांव” के नाम से जानते हैं. यहां की दरियों की बुनाई और डिज़ाइन आज भी परंपरा और कला का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है. इन्हीं में से एक दरी ऐसी भी है, जो आज से करीब 80 साल पुरानी है और अपनी अनोखी कहानी और बारीक कारीगरी के कारण सबका ध्यान खींच लेती है.
यह दरी किसी साधारण वस्त्र का नमूना नहीं है, बल्कि यह राजस्थानी बुनाई कला की जीवित विरासत है. इसे बनाने में चार कुशल कारीगरों ने करीब 10 महीने से अधिक समय लगाया था. इतनी लंबी मेहनत का नतीजा है यह अनोखी दरी, जिसकी कीमत सुनकर कोई भी हैरान रह जाए. इस दरी की कीमत साढ़े तीन लाख रुपये बताई जाती है, और यह आज भी बेहद संभालकर एबीआई क्राफ्ट्स, सालावास में सुरक्षित रखी गई है.
इसलिए खास है यह दरी
यहां आने वाले देसी और विदेशी पर्यटक इस दरी को देखकर दंग रह जाते हैं. लोग अक्सर यह देखकर अचंभित होते हैं कि 80 साल पहले भी राजस्थान के कारीगर इतने बारीक डिज़ाइन और टिकाऊ गुणवत्ता की दरियां हाथों से तैयार किया करते थे. इस व्यवसाय से जुड़े दिनेश बोबारिया बताते हैं कि आज के समय में न तो ऐसी बुनाई संभव है, और न ही वैसी कारीगरी बची है. उस समय के कारीगरों में जो समर्पण, धैर्य और कौशल था, वह आज मशीनों के युग में लगभग समाप्त हो गया है.
वे कहते हैं कि हम यह दरी बेचना नहीं चाहते. यह हमारे लिए सिर्फ एक वस्तु नहीं, बल्कि हमारी विरासत और सम्मान का प्रतीक है. जब भी कोई विदेशी या देसी सैलानी यहां आता है, तो हम उन्हें इस दरी के बारे में बताते हैं कि कैसे वर्षों पहले कारीगर महीनों तक हाथों से धागा बुनते थे और रंगों को प्राकृतिक तरीकों से तैयार करते थे.
80 हजार से लेकर 3 लाख तक है दरियों की कीमत
सालावास का दरी उद्योग कोई नया नहीं, बल्कि चार पीढ़ियों से चला आ रहा पारिवारिक पेशा है. दिनेश बोबारिया का परिवार पिछले कई दशकों से इस काम को न सिर्फ जीवित रखे हुए है, बल्कि इसे वैश्विक पहचान भी दिला चुका है. उनके पास दरियों का ऐसा कलेक्शन है, जो किसी भी कला संग्रहालय की शोभा बढ़ा सकता है. इनमें 70-80 हजार रुपये से लेकर डेढ़, दो, और साढ़े तीन लाख रुपये तक की एंटीक दरियां शामिल हैं. इन सभी को उन्होंने बेचने के बजाय संरक्षित कर रखा है ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस कला की उत्कृष्टता को देख सकें.
राजस्थान की शान है सालावास
सालावास गांव की दरी उद्योग परंपरा, मेहनत और कला का अनूठा संगम है. यहां हर दरी सिर्फ एक वस्त्र नहीं, बल्कि एक कहानी है उन कारीगरों की, जिन्होंने महीनों तक बैठकर हर बुनाई में जीवन का स्पर्श डाला. आज जब मशीनें सब कुछ आसान बना चुकी हैं, सालावास की ये एंटीक दरियां हमें याद दिलाती है कि कला का असली मूल्य समय और परिश्रम से बनता है, पैसों से नहीं.



