RJD को आईना दिखाकर मैदान में अकेली, रितु जायसवाल की अगली ‘चाल’ पर सबकी नजर, जानिए कौन हैं ‘मुखिया दीदी’ ?

पटना/सीतामढ़ी. गांव में लड़कियों की पढ़ाई से लेकर स्वच्छता मिशन और स्वच्छ पानी की उपलब्धता तक… ये सब सिर्फ योजनाएं नहीं थीं, बल्कि एक सामाजिक बदलाव था. उनके कामों की राष्ट्रीय पहचान बनी और आज से सात साल पहले उन्हें उपराष्ट्रपति के हाथों ‘चैंपियंस ऑफ चेंज’ पुरस्कार मिला. बाद में वह राजनीति में आगे बढ़ीं और राजद की महिला अध्यक्ष तक बन गईं. लेकिन, पार्टी में मिली उपेक्षा ने उन्हें आहत किया और अब उन्होंने नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है. विद्रोही तेवर के साथ राजनीति में आगे अपनी योजनाओं के अनुसार बढ़ेंगी और महिला कल्याण के लिए काम करती रहेंगी.अपने गांव में आज भी ‘मुखिया दीदी’ के नाम से जानी जाती हैं. हम बात कर रहे हैं राजद की पूर्व महिला अध्यक्ष रितु जायसवाल की.
विद्रोह से नई पार्टी तक का सफर
रितु जायसवाल ने नई पार्टी बनाने की घोषणा की है. इसका ऐलान करते हुए उन्होंने कहा कि वह ऐसी राजनीतिक पार्टी बनाएंगी, जहां महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व मिले जहां युवाओं को आगे बढ़ने का मौका मिले, जहां टिकटों की खरीद–फरोख्त न होती हो और जहां परिवारवाद के लिए कोई जगह न हो. जाहिर है उनकी भाषा शैली से आप समझ गए होंगे कि तेवर विद्रोही है. ऐसे में जानते हैं कि रितु हैं कौन? 1 मार्च 1977 को वैशाली के हाजीपुर में जन्मीं रितु जायसवाल की राजनीतिक पहचान किसी बड़े घराने से नहीं, बल्कि जमीनी काम से बनीं. वैशाली महिला कॉलेज से बी.ए. करने वाली ऋतु ने अपने करियर की शुरुआत सिंहवाहिनी ग्राम पंचायत से की, जहां वे मुखिया चुनी गईं. मुखिया के रूप में उनका फोकस लड़कियों की पढ़ाई, सार्वजनिक स्वच्छता और पेयजल व्यवस्था पर रहा. पंचायत स्तर पर किए गए इनके व्यवहारिक कदमों ने उन्हें स्थानीय जनता के दिलों में अलग पहचान दिलाई.
समाजसेवा और राष्ट्रीय सम्मान
ग्राम में शिक्षा और स्वच्छता अभियान में सक्रिय भूमिका निभाने के चलते रितु को 2018 में ‘चैंपियंस ऑफ चेंज’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह सम्मान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने उन्हें दिया. यह पुरस्कार उनके सामाजिक काम की मान्यता ही नहीं, बल्कि बिहार के पिछड़े क्षेत्रों की महिलाओं के लिए प्रेरणा भी बना. अब जब उन्होंने नई पार्टी बनाने की बात कही है तो साफ-साफ यह भी कहा कि-अब समय है एक ऐसी राजनीति का जिसमें टिकट बिकते नहीं, कमाए जाते हैं. वे आने वाले महीनों में नई पार्टी बनाने की तैयारी में हैं-जिसमें महिलाओं, युवाओं और गैर-राजनीतिक बैकग्राउंड वाले लोगों को जगह दी जाएगी.
RJD में रहीं, हारने पर भी पॉपुलर
रितु का राजनीति का रुख RJD के माध्यम से हुआ. 2020 में उन्होंने परिहार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और महज 1,549 वोटों से हारकर भी अपनी लोकप्रियता को समाप्त नहीं होने दिया. 2021 में वे पार्टी की राज्य प्रवक्ता बनीं और अप्रैल 2023 में महिला विंग की राज्य अध्यक्ष चुनी गईं. इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी वह शिवहर सीट से आरजेडी उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरी थीं. लेकिन इसमें उन्हें जेडीयू प्रत्याशी लवली आनंद से हार मिली.मगर लगातार दो चुनावों में दमदार उपस्थिति दर्ज कराने के बाद उन्होंने अपने क्षेत्र में मजबूत जनाधार बना लिया है.
टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय चुनौती
रितु जायसवाल की छवि परिवारवाद के खिलाफ, पारदर्शी और ग्रामीण अंचल में भी सक्रियत नेता की रही है. 2025 के विधानसभा चुनाव में जब RJD ने परिहार का टिकट स्मिता पुर्वे गुप्ता को दिया, जिन्हें ऋतु ने व्यक्तिगत और राजनीतिक तौर पर राजद के निर्णय को नहीं माना, तब रितु ने निर्दलीय रुख अपनाया. चुनाव परिणाम में वे दूसरे स्थान पर रहीं, BJP की गायत्री देवी से पिछड़ गईं पर RJD को तीसरे स्थान पर धकेल दिया. यह नतीजा साबित करता है कि उनका ग्रासरूट समर्थन अब भी मजबूत है.
परिवार, संघर्ष और राजनीतिक दर्शन
रितु का परिवार भी राजनीति और सेवा में सक्रिय है. 7 दिसंबर 1996 को उनकी शादी अरुण कुमार (पूर्व आईएएस) से हुई जो एक पूर्व सिविल सर्वेंट हैं और बाद में VRS लेकर स्थानीय राजनीति में उतरे. अरुण कुमार ने भी सरकारी सेवा से इस्तीफा देकर गांव की सेवा का रास्ता चुना था. अरुण कुमार ने वॉलंटरी रिटायरमेंट (VRS) लिया था और इसके बाद शिक्षा व ग्रामीण विकास के क्षेत्र में काम करना शुरू किया. वह आज भी बिहार में छात्रों को मुफ्त कोचिंग देकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में मदद करते हैं. दंपति के दो बच्चे-ऋत्विक आर्यन और अवनी हैं. परिवार ने उन्हें हमेशा समर्थन दिया और स्थानीय राजनीति में उनके कदमों को मजबूती दी.
रितु की नई पार्टी और नया एजेंडा
रितु जायसवाल ने घोषणा की है कि वे आने वाले महीनों में बिहार के युवाओं और खासकर महिलाओं से संवाद करेंगी और उनके सुझावों के आधार पर एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने पर विचार करेंगी. उनका एजेंडा स्पष्ट है- महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व, युवाओं को मौका, टिकटों की खरीद-फरोख्त और परिवारवाद से मुक्ति. उनके समर्थक इसे बदलाव की शुरुआत मान रहे हैं; आलोचक इसे राजनीतिक प्रतिक्रिया कह रहे हैं. पर एक बात निश्चित है: मुखिया से नेता बनी रितु जायसवाल अब बिहार की राजनीति में सेंटर स्टेज पर हैं और उनकी अगली चाल राज्य की राजनीति के नक्शे को नया मोड़ दे सकती है.



