G20 सम्मेलन: साउथ अफ्रीका में अमेरिका का यू-टर्न, पीएम मोदी अहम

साउथ अफ्रीका में होने वाला G20 शिखर सम्मेलन इस बार बड़ी शक्तियों के बीच कूटनीतिक रस्साकशी का अखाड़ा बन गया है. खासकर तब, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचने से ठीक पहले अमेरिका ने एक बड़ा यू-टर्न लेकर सबको चौंका दिया. पहले अमेरिका ने समिट का बहिष्कार करने का ऐलान किया, फिर अंतिम क्षणों में दक्षिण अफ्रीका को संदेश भेजकर कहा कि अब वह शामिल होना चाहता है. दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने कहा, अमेरिका ने 11th hour पर बताया कि उसका रुख बदल गया है. सवाल यह है कि यह बदलाव क्यों और किस संदेश के तहत?
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने कुछ ही दिनों पहले साफ कर दिया था कि अमेरिकी अधिकारी G20 समिट में शामिल नहीं होंगे. कारण बताया कि दक्षिण अफ्रीका में श्वेत अल्पसंख्यक समुदाय का ‘उत्पीड़न’ हो रहा है. दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने इस आरोप को पूरी तरह खारिज किया. लेकिन इसके मामला पूरी तरह पलट गया. रामाफोसा ने खुद कहा कि अमेरिका ने अचानक संदेश भेजकर कहा कि वह समिट में भाग लेना चाहता है, इसलिए अब मेजबान देश को उसकी व्यवस्था करनी होगी. यह बदलाव सिर्फ भागीदारी भर नहीं है, बल्कि एक संकेत है कि अमेरिका G20 जैसे मंच को खाली छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता, खासकर जब भारत, चीन और कई उभरती इकॉनमी यहां अपनी भूमिका मजबूत कर रही हैं.
दक्षिण अफ्रीका का पलटवार
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब पहले कहा कि अमेरिका इस समिट में हिस्सा नहीं लेगा, लेकिन ये बात भी तय है कि बिना अमेरिका की मौजूदगी के कोई बड़ा फैसला नहीं हो सकता. इस पर दक्षिण अफ्रीका भड़क गया था. दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्रालय ने इसे जबरदस्ती का दबाव बताया था. उन्होंने कहा कि अमेरिका बिना आए यह दिखाना चाहता था कि यदि वह नहीं है तो कोई भी अंतिम घोषणा जारी नहीं हो सकती. अमेरिका ने जो नोट भेजा था, उसमें लिखा था कि अमेरिका किसी भी G20 ‘लीडर्स डिक्लेरेशन’ को स्वीकार नहीं करेगा. वह सिर्फ चेयर का स्टेटमेंट मंजूर करेगा. इसके बाद दक्षिण अफ्रीका ने पलटवार किया. कहा, हम किसी देश को अपनी अनुपस्थिति को हथियार की तरह इस्तेमाल करने नहीं देंगे, वरना यह सामूहिक कामकाज का ढांचा ही खत्म कर देगा.
दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने बताया कि अमेरिका अब G20 समिट में हिस्सा लेगा. (Reuters)
नाराजगी किस बात की
दक्षिण अफ्रीका की G20 थीम सॉलिडेरिटी, इक्वॉलिटी और सस्टेनबिलिटी है. इस पर अमेरिका ने पहले ही तंज कस दिया था. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इन्हें एंटी अमेरिका थीम बता दिया था. अमेरिका को यह भी आपत्ति थी कि G20 अत्यधिक बड़े मुद्दों और देशों में फैला दिया गया है. यह G20 की जगह G100 बन गया है. अमेरिका चाहता है कि अगले साल, जब वह खुद G20 की अध्यक्षता करेगा तो यह मंच बेसिक इकोनॉमी एजेंडे तक सीमित रहे.
आखिर अमेरिका क्यों नहीं छोड़ सकता G20?
वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने वाले इस मंच को खाली छोड़ना अमेरिका को भारी पड़ सकता है. चीन लगातार अफ्रीका और एशिया में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. भारत का प्रभाव G20 में तेजी से बढ़ रहा है. रूस–यूक्रेन युद्ध पर पश्चिमी देशों की सहमति लगातार चुनौती झेल रही है. ऐसे में G20 में अपनी आवाज न रखना अमेरिका की रणनीतिक चूक होती. यही कारण है कि पहले बहिष्कार की धमकी और कड़े आरोपों के बावजूद अमेरिका को वापस लौटना पड़ा.
पीएम मोदी की मौजूदगी एक और वजह
भारत आज G20 राजनीति का केंद्रीय किरदार है. ग्लोबल साउथ की आवाज को भारत ने मुख्यधारा में लाया. चाबहार पोर्ट, अफ्रीका आउटरीच, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर भारत की भूमिका लगातार बढ़ रही है. दक्षिण अफ्रीका भी भारत के साथ मिलकर G20 को अधिक प्रतिनिधिक रूप देने की कोशिश कर रहा है. संभावना यह भी है कि अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत और विशेषकर पीएम मोदी बिना अमेरिकी मौजूदगी के वैश्विक मंच पर केंद्र में रहें.



