Aravalli : अरावली पर फैसला या विनाश? 26 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है बड़ी सुनवाई

Last Updated:December 25, 2025, 19:27 IST
Save Aravalli Protest : अरावली पर्वतमाला के 100 मीटर ऊंचाई नियम पर सुप्रीम कोर्ट में फिर बहस तेज, हितेंद्र गांधी ने मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत को पत्र लिखकर पर्यावरणीय चिंता जताई है. दरअसल, पूर्व चीफ जस्टिस बी आर गवई के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली क्षेत्र से जुड़े 100 मीटर ऊंचाई के मानक को लेकर जो फैसला दिया गया था, उसका व्यापक विरोध हो रहा है.
ख़बरें फटाफट

शंकर आनंद/जयपुर. अरावली पर्वतमाला को लेकर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी और पर्यावरणीय बहस तेज होने के संकेत मिल रहे हैं. जानकारी के अनुसार 26 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ के समक्ष इस मामले को मेंशन किया जा सकता है. यह घटनाक्रम उस फैसले के बाद सामने आ रहा है, जिसे लेकर देशभर में पर्यावरण कार्यकर्ताओं, विशेषज्ञों और कई सामाजिक संगठनों द्वारा लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं. अरावली जैसे संवेदनशील और ऐतिहासिक पर्वतीय क्षेत्र के भविष्य को लेकर चिंता अब सीधे सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे तक पहुंच चुकी है.
दरअसल, पूर्व चीफ जस्टिस बी आर गवई के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली क्षेत्र से जुड़े 100 मीटर ऊंचाई के मानक को लेकर जो फैसला दिया गया था, उसका व्यापक विरोध हो रहा है. इसी फैसले की समीक्षा की मांग को लेकर पर्यावरण कार्यकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता हितेंद्र गांधी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत को एक विस्तृत पत्र लिखा है. इस पत्र की एक प्रति राष्ट्रपति को भी भेजी गई है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मामला केवल कानूनी नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर के पर्यावरणीय सरोकार से जुड़ा हुआ माना जा रहा है.
100 मीटर नियम पर सवाल, संरक्षण के दायरे से बाहर होने का खतराहितेंद्र गांधी ने अपने पत्र में विशेष रूप से अरावली क्षेत्र के संरक्षण से जुड़े 100 मीटर ऊंचाई के नियम पर गंभीर आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि केवल ऊंचाई के आधार पर किसी पहाड़ी या क्षेत्र को संरक्षण योग्य या गैर-संरक्षण योग्य मानना वैज्ञानिक और पारिस्थितिक दृष्टि से बेहद सीमित सोच है. पत्र में यह तर्क दिया गया है कि अरावली की कई ऐसी पहाड़ियां, टीले और भू-आकृतियां हैं, जो भले ही 100 मीटर की संख्यात्मक ऊंचाई की शर्त पूरी नहीं करती हों, लेकिन पर्यावरणीय संतुलन के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.
हितेंद्र गांधी का मानना है कि इस नियम के कारण अरावली की कई पारिस्थितिक इकाइयां संरक्षण के दायरे से बाहर हो सकती हैं. इनमें जल संरक्षण करने वाली संरचनाएं, जैव विविधता को सहारा देने वाले क्षेत्र और मरुस्थलीकरण को रोकने वाली प्राकृतिक बाधाएं शामिल हैं. यदि इन्हें केवल ऊंचाई के पैमाने पर नजरअंदाज किया गया, तो इसका सीधा असर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर तक के पर्यावरण पर पड़ सकता है.
सुप्रीम कोर्ट में मेंशनिंग और आगे की संभावनाएं26 दिसंबर को अवकाशकालीन पीठ के समक्ष इस मुद्दे की मेंशनिंग की संभावित तारीख को बेहद अहम माना जा रहा है. यदि सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई के लिए सहमति देता है, तो अरावली संरक्षण से जुड़े फैसले की न्यायिक समीक्षा का रास्ता खुल सकता है. यह समीक्षा न केवल 100 मीटर नियम तक सीमित रह सकती है, बल्कि व्यापक रूप से यह तय कर सकती है कि पर्यावरण संरक्षण के मामलों में केवल तकनीकी परिभाषाएं हावी रहेंगी या वैज्ञानिक और पारिस्थितिक दृष्टिकोण को भी समान महत्व मिलेगा.
अरावली पर्वतमाला को देश की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक माना जाता है और यह उत्तर-पश्चिम भारत में रेगिस्तान के फैलाव को रोकने में प्राकृतिक ढाल की भूमिका निभाती है. ऐसे में इस क्षेत्र से जुड़े किसी भी नियम या फैसले का असर दूरगामी होता है. सुप्रीम कोर्ट में संभावित मेंशनिंग के साथ ही यह मामला एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में आ गया है, जहां कानून, पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है.
About the AuthorAnand Pandey
नाम है आनंद पाण्डेय. सिद्धार्थनगर की मिट्टी में पले-बढ़े. पढ़ाई-लिखाई की नींव जवाहर नवोदय विद्यालय में रखी, फिर लखनऊ में आकर हिंदी और पॉलीटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया. लेकिन ज्ञान की भूख यहीं शांत नहीं हुई. कल…और पढ़ें
Location :
Jaipur,Rajasthan
First Published :
December 25, 2025, 19:27 IST
homerajasthan
अरावली पर फैसला या विनाश?26 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है बड़ी सुनवाई



