अजब-गजब अस्पताल! मंगलवार व अष्टमी को नहीं होता आंखों के ऑपरेशन, हर बड़े काम से पहले माता को लगाते भोग

Last Updated:April 02, 2025, 15:13 IST
श्रीगंगानगर के एक अंध विद्यालय में बने जगदंबा माता के मंदिर में दृष्टिबाधित, मूक-बधिर के लिए किसी सामान की जरूरत होती है या फिर नेत्र चिकित्सालय में नई मशीन खरीदनी हो, तो सबसे पहले माता जगदंबा को भोग लगाया जाता…और पढ़ेंX
श्रीगंगानगर में स्थित अंध विद्यालय.
हाइलाइट्स
श्रीगंगानगर का श्री जगदंबा अंध विद्यालय चमत्कारों से भरा है.अष्टमी और मंगलवार को नेत्र चिकित्सालय में ऑपरेशन नहीं होते.1960 में खुदाई के दौरान मां जगदंबा की प्रतिमा मिली थी.
श्रीगंगानगर:- हनुमानगढ़ रोड स्थित श्रीगंगानगर का श्री जगदंबा अंध विद्यालय चमत्कारों से भरा हुआ है. मूक-बधिरों व बेसहारा लोगों के सहारे के अलावा यह श्रीगंगानगर जिले का प्रमुख आस्था का केंद्र भी है. यहां कोई भी काम शुरू करने से पहले माता जगदंबा की आज्ञा ली जाती है, इसके बाद ही काम शुरू होता है.
अष्टमी और मंगलवार को नहीं होता ऑपरेशन हम बात कर रहे हैं श्रीगंगानगर के श्री जगदंबा अंध विद्यालय और नेत्र चिकित्सालय की. इस अंध विद्यालय में बने जगदंबा माता के मंदिर में दृष्टिबाधित, मूक-बधिर के लिए किसी सामान की जरूरत होती है या फिर नेत्र चिकित्सालय में नई मशीन खरीदनी हो, तो सबसे पहले माता जगदंबा को भोग लगाया जाता है.
इसके बाद माता के समक्ष काम की पूर्ति हेतु अर्जी लगाई जाती है. इस मंदिर की खास बात है कि नवरात्रों का पहला दिन या फिर नौ दिनों में आने वाले मंगलवार और अष्टमी के दिन अंधविद्यालय स्थित नेत्र चिकित्सालय में ऑपरेशन नहीं किया जाता.
मां की मूल प्रतिमा के साथ मां जगदंबा की बड़ी प्रतिमाइन दिनों यहां केवल ओपीडी की सेवा दी जाती है. इस दिन मंदिर में विशेष अनुष्ठान किया जाता है. बता दें कि मंदिर में शीश महल में मां की मूल प्रतिमा के साथ मां जगदंबा की बड़ी प्रतिमा स्थापित है. अंध के संस्थापक ब्रह्मदेव महाराज ने हरिद्वार स्थित पावन धाम में शीशे का काम हुआ देखा था. तब वहां के कारीगरों से ही इस मंदिर में मां का दरबार बनवाया गया. इससे पहले इन्हीं कारीगरों से एल ब्लॉक हनुमान मंदिर बनवाया गया था.
खुदाई के दौरान निकली थी प्रतिमा ब्रह्मदेव महाराज ने Local 18 को बताया कि मंदिर की जगह कभी सुरजाराम कुलचानिया की होती थी. साल 1960 में खुदाई के दौरान जमीन से मां जगदंबा की प्रतिमा निकली थी. तब यहां संत महात्माओं ने मातारानी की पूजा-अर्चना शुरू की. उस समय कुलचानिया परिवार के लोग मेरे पास आए और मां की सेवा का आग्रह किया. मैं 1980 में मां के मंदिर गया, तब कुलचानिया परिवार ने यह जमीन दान स्वरूप दी.
साल 1960 में खुदाई के दौरान जमीन से मां जगदंबा की प्रतिमा निकली थी. तब यहां संत महात्माओं ने मातारानी की पूजा-अर्चना शुरू की. इस कमरे की छत बारिश के दिनों में टपकती थी. ऐसी परिस्थिति में भी मैंने करीब 5 साल तक इसी कमरे में बिताए थे. इस बीच यहां 13 दिसंबर 1980 को अंधविद्यालय की नींव भी रख दी थी. वर्तमान में यहां 125 दृष्टिबाधित व मूक-बधिर बच्चे अध्ययनरत हैं.
First Published :
April 02, 2025, 15:13 IST
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