Rajasthan
Azadi Ka Amrit Mahotsav… Sur-Sangat Program | आजादी के अमृत महोत्सव में सिने संगीत की ‘गवाही’

युवाओं ने गाया ‘हम हैं तो चांद और तारे’ (मैं नशे में हूं) तो युवाओं से भी कहा गया ‘रुक जाना नहीं तू कहीं हार के’ (इम्तिहान)। युवा वर्ग जिंदगी के ‘कारोबार’ में उलझा। हमेशा सफलता थोड़े ही मिलती है। विफलताएं, मुश्किलें और मायूसियां भी इन 75 वर्षों के सफर में रास्ते में मिलीं। गरीबी पूरी तरह नहीं मिटी। हाथ पसारने की मजबूरी भी सिने संगीत में दर्ज हुई- ‘ओ बाबू, ओ जाने वाले बाबू, एक पैसा दे दे’ (वचन), या ‘गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा’ (दस लाख)। मगर, आम हिंदुस्तानी के जज्बे ने हार नहीं मानी और भूखा होने पर भी वह गाता रहा ‘सूरज जरा आ पास आ, आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम’ (उजाला)।
मुफलिसी की हालत को यूं भी बयान किया ‘चीन ओ अरब हमारा, हिंदोस्तां हमारा, रहने को घर नहीं, सारा जहां हमारा’ (फिर सुबह होगी)। ‘बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई’ (रोटी कपड़ा और मकान) गा कर शिकायत की तो थोड़ा-सा ध्यान ऊपर वाले का भी अपनी ओर खींचने की कोशिश की गई- ‘आसमां पे है खुदा और जमीं पे हम, आजकल वो इस तरफ देखता है कम’ (फिर सुबह होगी)। हिंदुस्तानियों ने गाया ‘छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी’ (हम हिन्दुस्तानी)। और मायूसी को यह कहते हुए तोड़ा, ‘यारों नीलाम करो सुस्ती, हमसे उधार ले लो मस्ती’ (प्रेम पुजारी)। मगर, ये मस्ती अकेले की नहीं थी ‘तुम आज मेरे संग हंस लो, तुम आज मेरे संग गा लो’ (आशिक)।

देश की सीमाओं पर हमला हुआ तो यह हुंकार भी भरी- ‘अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं’ (लीडर)। आजादी के बाद के सफर में सबसे अधिक नेताओं ने निराश किया, जिन पर भी करारा व्यंग्य कसा गया ‘अंधी प्रजा अंधा राजा… जमाने धत्त तेरे की’ (तेरे मेरे सपने)। नया जमाना पैसे के पीछे दौड़ने का आ गया तो रुपए की महिमा भी गाई गई ‘तेरी धूम हर कहीं, तुझ सा यार कोई नहीं, हम को तो प्यारे तू सब से प्यारा’ (काला बाजार)।