Barqatullah khan who used to say Bhabhi to Indira Gandhi first muslim Chief minister of Rajasthan interesting political tale
जयपुर. जोधपुर के कारोबारी परिवार के बरकतुल्लाह खान (प्यारे मियां) की हिंदू-मुस्लिम लव स्टोरी जितनी दिलचस्प है, उतनी ही खूबसूरत संयोगों से लिपटी उनके सीएम बनने की कहानी है. खुद उन्होंने भी कभी सीएम बनने के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था. उनको सीएम बनने की खबर देश से बहुत दूर लंदन में मिली. इंदिरा गांधी के एक फोन कॉल ने बरकतुल्ला खान कि जिंदगी में मुख्यमंत्री की बरकत बख्शी. इसके साथ ही राजस्थान के 17 साल से लगातार मुख्यमंत्री रहे मोहन लाल सुखाड़िया की कुर्सी चली गई. बरकतुल्लाह खान की अचानक लॉटरी खुलने और उनके सीएम बनने के साथ ही कांग्रेस में हाईकमान कल्चर की शुरुआत हुई. वो राजस्थान के ऐसे मुख्यमंत्री थे जो इंदिरा गांधी को भाभी कहते थे.
लखनऊ यूनिवर्सिटी में हुई फिरोज गांधी से दोस्ती
जोधपुर के कारोबारी परिवार में 25 अक्टूबर 1920 को पैदा हुए प्यारे मियां पढ़ाई के लिए लखनऊ गए. यहीं उनकी फिरोज गांधी से दोस्ती की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर मजबूत राजनीतिक बुनियाद बनी. यहीं प्यारे मियां को पहला प्यार मिला और बरसों चली उनकी लव स्टोरी शादी तक पहुंची. पहले बात राजनीति की. लखनऊ में वकालत की पढ़ाई कर बरकत जोधपुर छुट्टियों में आए. 1948 में जय नारायण व्यास एक लोकप्रिय सरकार बनाने की तैयारी कर रहे थे. व्यास एक रोज बरकतुल्लाह खान के घर पहुंचे और उनके पिता से बोले, ‘हम लोकप्रिय सरकार बना रहे हैं. एक मंत्री आपकी बिरादरी से भी चाहिए. आपके बैरिस्टर बेटे को मंत्री बनाना चाहते हैं.’ बरकत मंत्री बन गए. 1949 में राजस्थान बना लोकप्रिय सरकार खत्म हो गई. नेतागिरी में कदम रख चुके बरकत स्थानीय राजनीति में सक्रिय हुए और नगर परिषद अध्यक्ष बने.
फिरोज गांधी ने दोस्ती का हक अदा कर सांसद बनवाया
उधर बरकत के दोस्त फिरोज अब युवा कांग्रेसी नेता भर नहीं थे. 1942 में इंदिरा गांधी से शादी के बाद उनका कद और बढ़ गया. अब वह प्रधानमंत्री के दामाद भी थे और फिर 1952 में रायबरेली से सांसद बने. जब राजस्थान से राज्यसभा के लिए नाम तय हो रहे थे तो फिरोज ने दोस्ती का हक अदा करते हुए बरकत का नाम सरका दिया. बरकत सांसद हो गए. राजस्थान में विधानसभा के चुनाव थे और बरकत का मन भी दिल्ली में नहीं लगा. वो लौटे, लड़े, जीते और विधायक बने फिर सुखाड़िया सरकार में मंत्री भी.
अंतरात्मा की आवाज पर दिया गिरी को दिया वोट
साठ के दशक के आखिरी में कांग्रेस में इंदिरा युग अब चरम पर था. इसकी शुरुआत 1969 के राष्ट्रपति चुनाव से हुई. तब राजस्थान में सुखाड़िया और ज्यादातर विधायकों ने संगठन के कैंडीडेट नीलम संजीव रेड्डी के पक्ष में वोट डाला. मगर चार विधायक ऐसे थे, जिन्होंने इंदिरा की अंतरात्मा की आवाज पर वोटिंग की बात सुनी और वीवी गिरी के हक में गए. इन चार में से दो बाद में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने. एक प्रदेश अध्यक्ष बनी और एक स्पीकर. इनके नाम थे-बरकतुल्लाह खान, शिवचरण माथुर, लक्ष्मीकुमारी चूंड़ावत और पूरनचंद विश्नोई.
जब इंदिरा गांधी का लंदन में फोन पहुंचा….
फिर मौका आया 71 के चुनाव का. गरीबी हटाओ का नारा, इंदिरा का चेहरा. कांग्रेस आर की सत्ता में वापसी. इधर राजस्थान में आलाकमान के इशारे पर सत्ता में बदलाव की तैयारी शुरू हो गई. विधायकों ने सुखाड़िया हटाओ, भ्रष्ट सरकार हटाओ की मांग तेज कर दी. इसी समय पूर्वी पाकिस्तान शरणार्थी भारत आ रहे थे. भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव था. भारत सैन्य हमले से पहले राजनयिक मोर्चे दुरस्त करने में लगा था और इसी सिलसिले में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल लंदन गया. प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे प्यारे मियां. ‘दी लल्लनटॉप’ के मुताबिक, होटल में इंदिरा गांधी का फोन आता है और उधर से आवाज़ आती है- मैडम प्यारे मियां से बात करना चाहती हैं. प्यारे मियां यानी बरकतुल्लाह ने जब फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आई- वापस आ जाओ, तुम्हे राजस्थान का सीएम बनाया गया है. आकर शपथ लो. ये सुनते ही प्यारे मियां जवाब देते हैं- जी भाभी.’
और राजस्थान को मिला पहला मुस्लिम मुख्यमंत्री
प्यारे मियां उस टाइम राजस्थान की सुखाड़िया सरकार में मंत्री थे, वो फोन कॉल के आदेश को ज्यादा कुछ समझ नहीं पाए. फिर भी अगली फ्लाइट पकड़कर दिल्ली पहुंचे और कुछ दिन बाद… 9 जुलाई 1971 को प्यारे मियां राजस्थान के छठवें मुख्यमंत्री बन गए. कश्मीर के अलावा किसी राज्य को पहली बार मुस्लिम मुख्यमंत्री मिला था. हालांकि उनसे पहले एम. फारुखी पांडचेरी के मुख्यमंत्री रहे थे, लेकिन वो केंद्र शासित प्रदेश था.
कड़े फैसलों से सख्त प्रशासक की छवि बनी
मुख्यमंत्री के रूप में बरकतुल्लाह खान की छवि पहले कार्यकाल में ही सख्त प्रशासक की बन गई. दूसरे कार्यकाल में भी यह जारी रही. इसमें उन्होंने आरक्षण और स्ट्राइक से जुड़े सख्त फैसले लिए. पहले अगर आरक्षित पद पर रिजर्व केटेगिरी का उम्मीदवार नहीं होता था तो इसे जनरल कैंडीडेट से भर दिया जाता था. बरकत ने कहा कि यह आरक्षण की मूल भावना के खिलाफ है, ऐसे में रिजर्व सीट पर रिजर्व कैंडिडेट ही आएगा, चाहे सीट कुछ समय खाली ही क्यों न रहे. इसके विरोध में राज्य में हड़ताल हुई तो उन्होंने इससे निपटने के लिए काम नहीं तो वेतन नहीं का फॉर्मूला लागू कर दिया.
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