भीम के पौत्र को इस महिला से हुआ था प्रेम, विवाह का वादा कर रण में उतरे; महाभारत काल से जुड़ी अनसुनी कहानी
भरतपुर:- टेसू और झेंझीं के विवाह की अनोखी लोक परंपरा को कब से शुरू किया गया, इसका सटीक प्रमाण नहीं है.लेकिन यह बृजभूमि की एक विशिष्ट पहचान के रूप में प्रसिद्ध है. राजस्थान की बृजभूमि से लेकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के गांवों तक यह परंपरा जुड़ी हुई है और प्रचलित है. हालांकि आज के समय में आधुनिकता और तेजी से बड़े होने की होड़ के कारण लोग इस अनोखी लोक परंपरा को भूलते जा रहे हैं. फिर भी यह एक अद्भुत और लोकरंजक परंपरा है.
पराक्रमी भीम के पौत्र की अद्भुत कहानीऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें, तो ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा महाभारत काल के बाद शुरू हुई है. इस परंपरा के मूल में एक प्रेम कहानी छिपी है, जो समाज की सरलता और महानता का प्रतीक है. यह कहानी महापराक्रमी भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक से जुड़ी है, जिन्हें टेसू के रूप में पूजा जाता है. कहा जाता है कि बर्बरीक को झांझी नाम की एक महिला से प्रेम था और युद्ध में जाने से पहले उन्होंने वचन दिया था कि लौटने के बाद हम विवाह बंधन में बंधेंगे. लेकिन इस प्रेम कहानी का अंत उस समय हुआ, जब युद्ध की पृष्ठभूमि में इसे परवान चढ़ने से पहले ही समाप्त कर दिया गया.
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ऐसे निभाई जाती है परंपराप्रारंभिक समय में टेसू के नाक, कान और मुंह कौड़ियों से बनाए जाते थे. लेकिन समय के साथ इस परंपरा में बदलाव आया और अब बाजार में मिट्टी से बने टेसू और झेंझीं उपलब्ध होते हैं. नवरात्रि की शुरुआत होते ही खासकर सांझ ढलते समय बच्चे और बच्चियां टोलियों में टेसू और झेंझीं लेकर गांव-गांव और गली-मोहल्लों में घूमते हैं और टेसू झेंझीं खेलने हैं. टेसू झेंझीं के विवाह से संबंधित पारंपरिक लोकगीत गाते हैं और अनाज पैसे हर घर से मांगते हैं.
यह बच्चे गली मोहल्ले में टेसू और झेंझीं के विवाह से संबंधित पारंपरिक लोकगीत ‘टेसू हो तुम वामन वीर, हाथ लिये सोने का तीर बजरंग बेटा खड़ा निशान, बाएं हाथ चला पहिचान हरे बाग मा डेरा परिगा, सब लोगों ने पूंछी बात कितना लोग तुम्हारे पास, अस्सी पियादे, नौ असवार’ जैसे लोकगीत गाते हैं. नवरात्रि से लेकर दशहरा तक ये बच्च पैसे और अनाज इकट्ठा करते हैं और दशहरे के दिन टेसू और झेंझीं का प्रतीकात्मक विवाह कर उन्हें जल में प्रवाहित कर देते हैं. यह लोक परंपरा न केवल बच्चों को आनंदित करती है, बल्कि उन्हें संस्कृति और परंपराओं से भी जोड़ती है.
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FIRST PUBLISHED : October 9, 2024, 14:24 IST