बिश्नोई समाज अपने बच्चों की तरह करता है हिरणों की देखभाल, शावक को महिलाएं करवाती हैं स्तनपान
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पाली. सलमान खान और काले हिरण से जुड़ा मामला चर्चाओं में है. हिरण को बिश्नोई समाज में काफी तरजीह दी जाती है और कहा जाता है कि इस समाज की महिलाएं हिरणों को अपना स्तनपान तक पिलाती हैं. बिश्नोई समाज राजस्थान का एक हिंदू समाज है, जो प्रकृति संरक्षण के लिए जाना जाता है. इस समाज के लोग प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति गहरा सम्मान रखते हैं.
ये समाज काले हिरण को अपना आराध्य मानता है और इसकी रक्षा के लिए अपनी जान तक न्योछावर करने को तैयार रहते हैं. कहा जाता है कि जरूरत पड़ने पर हिरणों को बिश्नोई समाज की औरतें अपना स्तनपान तक करवाती हैं. यही वजह है कि प्रकृति प्रेम से लेकर जीवों की रक्षा के लिए इन समाज की मिसाल दुनियाभर में दी जाती है. कई लोग इस समाज का काले हिरण के लिए समर्पण देखते हुए इस दावे को सही मानते हैं. वहीं सोशल मीडिया पर इस बात को सही साबित करने के लिए कई तस्वीरें भी हैं, जो बताती हैं कि वाकई में बिश्नोई समाज का हिरणों के लिए एक अनुठा प्रेम और समर्पण है.
प्रकृति से इतना प्रेम की जान की नहीं करते हैं परवाह राजस्थान में बिश्नोई समुदाय, जिसकी स्थापना गुरु जम्भेश्वर ने 15वीं शताब्दी के आसपास की थी, जो 29 सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है. उनकी शिक्षाएं वन्यजीवों और वनस्पतियों की सुरक्षा और संरक्षण पर जोर देती हैं. बिश्नोई दर्शन के मूल सिद्धांतों में से एक है काले हिरण की पूजा उनके आध्यात्मिक गुरु जम्भेश्वर के पुनर्जन्म के रूप में करना.
बिश्नोई समाज से जुडे जालाराम बिश्नोई ने लोकल-18 से खास बातचीत करते हुए बताया कि बिश्नोई कोई धर्म नहीं है, बल्कि गुरु जम्भेश्वर के 29 सिद्धांतों पर आधारित जीवन जीने का एक तरीका है, जिन्होंने 550 साल पहले बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी. 29 नियमों के सिद्धांतों में से एक पेड़ों और जीवों की सुरक्षा की वकालत करता है. हम जीवों की रक्षा के लिए मरने के लिए भी तैयार हैं. हमारे समुदाय ने सलमान खान मामले में एक बेहतरीन मिसाल कायम की है. हमारी महिलाएं हिरणों को अपने बच्चों की तरह पालती हैं. जोधपुर की बात करें तो गुडा बिश्नोईयां से लेकर कांकाणी और रोहिट के नजदीक बडी संख्या में हिरण पाए जाते हैं जिनकी सुरक्षा के लिए बिश्नोई समाज आज भी लगा हुआ है.
अपने बच्चों की तरह इनसे करते हैं प्रेम बिश्नोई समाज से जुडे विशुद्धानंद महाराज ने कहा कि सभी जीवों के लिए बिश्नोई समाज हमेशा समर्पित रहता है. हिरण जिसका सबसे ज्यादा शिकार होता है वह जीव इतना भोला भाला है कि किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता. इसको मारते है तो हमे बुरा लगता है. हम इनको बच्चो की तरह रखते है अगर अपने बच्चे को नुकसान करें तो तकलीफ होती है. उसी तरह से तकलीफ हमें भी होती है.
खेजड़ली के पेड़ों के लिए बलिदान हो गए थे 362 बिश्नोई गौरतलब है कि 1730 में, जोधपुर के पास खेजड़ली गांव में पेड़ों को काटने से बचाने के दौरान 362 बिश्नोई मारे गए थे. यह नरसंहार जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के आदेश पर हुआ था. उनके सैनिकों को एक नया महल बनाने के लिए लकड़ी लाने के लिए खेजड़ी के पेड़ों को काटने के लिए भेजा गया था, लेकिन अमृता देवी नामक एक महिला के नेतृत्व में बिश्नोई समुदाय ने इसका विरोध किया. अमृता देवी और अन्य लोगों ने पेड़ों की रक्षा के लिए उनसे लिपटकर प्रतिरोध का साहसी कार्य किया. इस घटना को 1973 के चिपको आंदोलन के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है.
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FIRST PUBLISHED : October 25, 2024, 10:50 IST