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परिसीमन से भाजपा को होगा फायदा, दक्षिणी राज्यों की ताकत होगी कम.

Last Updated:March 25, 2025, 07:42 IST

देश में परिसीमन का मुद्दा गरमाया हुआ है. दक्षिणी राज्य चिंतित हैं कि इससे उनकी संसद में हिस्सेदारी कम हो जाएगी. 2011 की जनगणना पर आधारित परिसीमन से भाजपा को फायदा होगा, खासकर हिंदी पट्टी में.2019 के लोस चुनाव में BJP को 303 नहीं, मिलने वाली थीं 322 सीटें, ये है माजरा!

अगर परिसीमन हुआ होता तो 2019 के चुनाव में भाजपा की सीटें बढ़ जातीं.

हाइलाइट्स

परिसीमन से भाजपा को 2019 में 322 सीटें मिलतीं.दक्षिणी राज्यों की लोकसभा सीटें घट सकती हैं.हिंदी पट्टी के राज्यों को परिसीमन से फायदा होगा.

देश में इस वक्त परिसीमन का मुद्दा छाया हुआ है. इस मुद्दे पर दक्षिण के राज्य काफी आक्रामक हैं. उनको लगता है कि अगर परिसीमन हुआ तो देश की संसद में उनकी हिस्सेदारी उत्तर भारत की तुलना में कम हो जाएगी. इस कारण दक्षिण के राज्य और राजनीतिक दल केंद्र सरकार पर दबाव डाल रहे हैं कि अगले 25-30 वर्षों के लिए एक बार फिर से परिसीमन के मुद्दे को टाल दिया जाए.

इस बीत तमाम तरह के आंकड़ें और विश्लेषण सामने आ रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार अगर 2011 के जनगणना को आधार बनाकर परिसीमन करती है तो मौजूदा वक्त में भाजपा को खूब फायदा होता. इसमें वर्ष 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव का विश्लेषण किया गया है. इसके मुताबिक 2019 में भाजपा को जितने वोट मिले थे, उतने ही वोट में अगर उस वक्त परिसीमन हुआ होता तो उसकी सीटें 303 से बढ़कर 322 हो जातीं. इसी तरह 2024 में उसे 6 अतिरिक्त सीटें मिल सकती थीं. परिसीमन का असर सिर्फ दक्षिणी राज्यों की राजनीतिक ताकत कम होने तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे मध्य और उत्तरी राज्यों को फायदा होगा. इससे सत्ता गैर-भाजपा दलों से भाजपा की ओर खिसक सकती है.

परिसीमन और इसका असरपरिसीमन का मतलब है लोकसभा और विधानसभा सीटों को जनसंख्या के आधार पर दोबारा निर्धारित करना है. अभी भारत में लोकसभा की 543 सीटें हैं, और हर राज्य को उसकी जनसंख्या के हिसाब से सीटें मिलती हैं. लंबे समय से सीटों की यही संख्या बरकरार है. परिसीमन का मुद्दा बहुत पुराना है. अगर 2011 की जनगणना के बाद सीटों का बंटवारा होता तो कुछ राज्यों की सीटें बढ़तीं और कुछ की घटतीं. इसका सबसे ज्यादा फायदा हिंदी पट्टी के राज्यों को मिलता, जहां भाजपा की पकड़ मजबूत है.

कौन से राज्य प्रभावित होंगे?अगर परिसीमन होता है तो तमिलनाडु में लोकसभा की सीटें 39 से घटकर 32, केरल में 20 से घटकर 15, कर्नाटक में 28 से घटकर 27 हो जाएंगी. वहीं उत्तरी और मध्य भारत के राज्यों की सीटें बढ़ जाएंगी. इस तरह उत्तर प्रदेश में सीटें 80 से बढ़कर 88, बिहार में 40 से बढ़कर 46 सीटें, राजस्थान में 25 से बढ़कर 30, मध्य प्रदेश में 29 से बढ़कर 32 सीटें हो जाएंगी. इसका मतलब है कि दक्षिणी राज्यों की ताकत कम होगी और हिंदी पट्टी के राज्य लोकसभा में ज्यादा प्रभावशाली होंगे.

भाजपा को कैसे फायदा?2019 और 2024 के चुनावों के वोट शेयर को देखें, तो परिसीमन से भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा अपने मजबूत इलाकों में मिलता. ये इलाके हैं- उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड और हरियाणा. यहां सीटें बढ़ने से भाजपा को अतिरिक्त सीटें मिलतीं. वहीं, कर्नाटक, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में सीटें कम होने से भाजपा को थोड़ा नुकसान हो सकता था. लेकिन कुल मिलाकर उसका दबदबा बढ़ता.

विश्लेषण कहता है कि 2019 में भाजपा को 14 और 2024 में 6 अतिरिक्त सीटें मिलतीं. इसका कारण यह है कि हिंदी पट्टी में उसकी जीत का प्रतिशत ज्यादा है. मिसाल के तौर पर 2019 में एनडीए (जिसमें भाजपा मुख्य पार्टी है) ने उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और दिल्ली से 254 सीटें जीती थीं. परिसीमन के बाद ये 277 हो जातीं. यानी इन राज्यों से ही उसे बहुमत मिल जाता और दक्षिणी राज्यों की सीटों की जरूरत ही नहीं पड़ती.


First Published :

March 25, 2025, 07:42 IST

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2019 के लोस चुनाव में BJP को 303 नहीं, मिलने वाली थीं 322 सीटें, ये है माजरा!

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