राजस्थान में खोजी गई चने की नई वैरायटी, देरी से बुआई करने पर भी होगी बंपर पैदावार

जयपुर: कृषि वैज्ञानिक अनाजों की नई वैरायटी तैयार करते रहते हैं. इन सभी की अपनी खासियत होती है. किसी में फसलों में लगने वाले रोगों से लड़ने की क्षमता ज्यादा होती है तो किसी अनाज में पौष्टिक तत्वों को क्वालिटी और मात्रा बेहतर होती है. उदाहरण के लिए चावल को ही लें तो बाजार में बासमाती से लेकर 1121 और तमाम किस्म के चवाल हैं. सभी को अलग-अलग चावल की वैरायटी पसंद आती हैं. इसी तरह चना, मूंगफली और गेहूं सहित सभी अनाजों के कई वैरायटी के बीज होते हैं. अभी हाल ही में राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान दुर्गापुरा जयपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने चने की एक नई किस्म खोजी है.
वैज्ञानिकों ने जिस नए चने की किस्म खोजी है उसे ‘करण चना 20’ नाम दिया गया है. चने की इस नई वैरायटी से राजस्थान ही नहीं पूरे भारत के किसानों को लाभ होगा. चने की यह नई किस्म उन किसानों के लिए उपयोगी है जो देरी होने के कारण समय पर चने की बुवाई नहीं कर पाते. ‘करण चना 20’ किस्म की सबसे खास बात यह हैं कि किसान अगर इसे देरी से भी बोएंगे तब भी उन्हें अच्छी फसल मिलेगी. इससे फसल उत्पादन में भी वृद्धि होगी.
कृषि अनुसंधान के आंकड़ों के मुताबिक भारत चने की खेती में दुनिया में सबसे आगे है. यह वैश्विक क्षेत्र में 10.11 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन पर 69.65% और वैश्विक उत्पादन के हिसाब से 11.57 मिलियन टन चने का उत्पादन करता है. राजस्थान पूरे देश में खेती के मामले में तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है. राजस्थान में 17.7 लाख हेक्टेयर में चने की खेती होती है. इससे 19.1 लाख टन चना पैदा होता है. राजस्थान में चूरू में सबसे ज्यादा 3.2 लाख हेक्टेयर खेती होती है. अगर उत्पादन के लिहाज से देखें तो टोंक 1,860 किलो/हेक्टेयर के साथ पहले स्थान पर है.
राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. एस के जैन और उनकी टीम ने चने की इस नई किस्म को तैयार किया है. उनके अनुसार इस किस्म में चने का उत्पादन बेहतर होगा. इसमें विल्ट, ड्राई रूट रोट, स्टंट रोग और हरी लट से लड़ने की क्षमता भी अन्य किस्मों से ज्यादा है. इसमें 19.7% तक प्रोटीन मिलेगा. राजस्थान में खोजे गए इस चने की किस्म को नई दिल्ली स्थित केंद्रीय किस्म विमोचन समिति से अनुमोदन प्राप्त हो गया है.
आपको बता दें कि चने की यह नई किस्म राजस्थान के साथ ही उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और असम जैसे राज्यों की जलवायु के लिए भी उपयुक्त है. चने की बुवाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है लेकिन, खरीफ की फसल समेटने में किसानों को देरी हो जाती है. इसके बाद चने की बुवाई करने पर अच्छी उपज अच्छी नहीं मिल पाती. इसलिए किसानों के लिए चने की नई किस्म तैयार की गई है.
इस नई किस्म में देरी से बुवाई करने के अलावा रोगों से लड़ने की क्षमता भी अन्य किस्मों से ज्यादा होगी. यह किस्म उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में 16.38 क्विंटल/हेक्टेयर की औसत उपज देगी और 116 दिनों में पक कर तैयार हो जाएगी. उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में उपज और ज्यादा होगी.
पूर्वी राजस्थान में किसानों को चने की फसल में हुआ था नुकसानचने की फसलों को मौसम की मार जैसे सूखा और अधिक तापमान के अलावा कीटों और जड़ सड़न, चने का मुरझाना, चने में बौना रोग से सबसे ज्यादा नुकसान होता है. ऐसे ही इस साल राजस्थान में चने की फसल में काफी नुकसान देखने को मिला. पूर्वी राजस्थान के जिलों में चने की फसलों में रोग के कारण चने के दाने कमजोर हो गए थे. जहां अच्छी फसल में चने की एक फली में 3 दाने तक होते थे लेकिन रोग के कारण 2 से कम ही दाने देखने को मिले. इससे किसानों को चने की फसल में नुकसान हुआ.
राजस्थान में किसान फिलहाल आरएसजी 888, सीएसजेडी 884, आरएसजी 895, आरएसजी 973, आरएसजी 807 जैसी किस्मों के चने पैदा करते हैं. चने की फसल को और बेहतर करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए ‘करण चना 20’ किस्म तैयार की गई है.