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अजोला बो कर किसान ने बदली पशुपालन और खेती की दिशा, जानें अन्य किसान कैसे लगाएं इसका प्लांट 

जयपुर : कहते हैं खेती में सफलता सिर्फ बड़े संसाधनों से नहीं, बल्कि समझदारी और नई तकनीक अपनाने से मिलती है. जयपुर के पास चिमनपुरा गांव के युवा किसान ओमप्रकाश यादव इसका बेहतरीन उदाहरण हैं. सीमित पानी और लगातार घटती पैदावार के बीच उन्होंने ऐसा कदम उठाया जिसने उनकी खेती और पशुपालन दोनों को नई पहचान दे दी. इस युवा ने बेहतरीन तकनीकी का उपयोग करते हुए कम पानी में एक नई सोच शुरू कर दी.

ओमप्रकाश के पिता पारंपरिक फसलें – गेहूं, जौ और चना उगाते थे, लेकिन ट्यूबवेल में पानी कम होने के कारण परिणाम निराशजनक होते जा रहे थे. इसी दौरान 12वीं में पढ़ रहे ओमप्रकाश ने कृषि विभाग से सलाह लेकर सब्जियां उगानी शुरू कीं. फिर साल 2022 में उन्होंने एक अनोखा प्रयोग किया 12 एकड़ में से एक एकड़ में अजोला घास बो दी. यह प्रयोग बिल्कुल वैसा था जैसा हरित क्रांति में किया गया.

कैसे करें इस खेती का बिजनस किसान ओमप्रकाश ने बताया कि इसकी खेती करने में खर्च कम और मुनाफा ज्यादा होता है. ओमप्रकाश ने बताया कि इसकी खेती करने में लगभग एक करीक्यारी में 80 से 90 किलो घास तैयार होती है और उसकी लागत लगभग 2000 से ₹3000 रहती है और अगर इसके मुनाफे की बात करें तो लगभग 8000 से ₹10000 का होता है. किसान ने बताया कि एक लंबी करी बनाकर उसमें पानी डालकर और इस अजोला घास को डाल दिया जाता है. जो की सीमित समय में तैयार हो जाती है और पशुओं को खिलाया जाता है. किसान ओमप्रकाश ने बताया कि इस घास को तैयार होने के बाद अन्य किसानों को या फिर बाजार में लगभग 1 किलो घास को सो रुपए किलो के हिसाब से भेज सकते हैं. और अगर इसकी लागत की बात करें तो 1 किलो घास में लगभग 30 से ₹40 की लागत लगती है. इस खेती का बिजनेस कर कर किसान पशुपालन के साथ-साथ घास को बेचकर अन्य आमदनी कमा लेता है.

खेत में बनाया अजोला प्लांटओमप्रकाश बताते हैं कि उन्होंने खेत में गड्ढा करके उसमें प्लास्टिक तिरपाल बिछाई, फिर वर्मी कम्पोस्ट और मिट्टी डालकर अजोला उत्पादन शुरू किया. शुरुआत में 10 किलो अजोला के बीज खरीदने पड़े थे, लेकिन आज स्थिति यह है कि हर 15 दिन में 50 किलो से ज्यादा अजोला तैयार हो जाता है. यह घास उनके लिए कमाई का सबसे आसान और विश्वसनीय स्रोत बन चुकी है.

गायों को अजोला खिलाया, दूध उत्पादन उछल पड़ायही नहीं, ओमप्रकाश ने अजोला का उपयोग बेहतर तरीके से किया. ओमप्रकाश के पास 18 से अधिक होलिस्टन नस्ल की गायें हैं. वे बताते हैं कि अब गायों को मुख्य रूप से अजोला ही खिलाया जाता है. इसका असर आश्चर्यजनक देखने को मिला. अजोला खिलाने से सबसे ज्यादा प्रभाव दूध उत्पादन पर पड़ा. दूध की मात्रा पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई और बाजार से अलग से कैल्शियम खरीदने की जरूरत पूरी तरह खत्म हो गई. इसी के साथ पशुओं में कैल्शियम की कमी से होने वाली बीमारियां दूर हो गईं. अब गर्मी में 18 लीटर दूध देने वाली गायें अब हांफती नहीं है. अजोला पशुओं को स्वाभाविक ठंडक देता है. वे रोज लगभग 30 किलो अजोला गायों को खिलाते हैं. इसकी खास बात यह है कि इतना खिलाने के बाद भी अजोला बच जाता है, जिसे वे बाजार में बेचकर अतिरिक्त कमाई कर लेते हैं.

कम पानी में अधिक आमदनीजहां पहले सिंचाई, जुताई और बार-बार बुवाई पर बड़ा खर्च आता था, वहीं अजोला ने उनकी लागत को बहुत कम कर दिया है. यह फसल इतनी सहज है कि सिर्फ 15 दिन में एक बार पानी बदलने की जरूरत पड़ती है. कम पानी में भी अजोला तेजी से उग आता है, जो सूखे क्षेत्रों के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है. इसे कम पानी में उगने वाला सोना कहा जा सकता है.

आंवला, बाजरा और सरसों – बहुविकल्पीय खेती से बढ़ा मुनाफालेकिन अब ओमप्रकाश कहां रुकने वाले थे. अजोला के अलावा ओमप्रकाश ने अपने खेत का उपयोग और भी समझदारी से किया है. खेत के बचे हिस्से में उन्होंने लगभग 20 से 25 फीट की दूरी पर आंवला लगाया है. इन पौधों से पिछले तीन साल से लगातार अच्छा फल मिल रहा है. उन्होंने बताया कि वह फल को चौमूं में बेचते हैं, और पेड़ों के बीच खाली जमीन में मौसम के अनुसार कभी बाजरा, कभी सरसों बोते हैं.

अजोला ने उनके पशुपालन को मजबूती दीट्यूबवेल में पानी आज भी कम है, लेकिन यह व्यवस्था इतनी संतुलित है कि खेती सहजता से चल रही है. 6 बीघा में लगाए गए 160 आंवला पेड़ उन्हें अतिरिक्त आय और दीर्घकालिक स्थिरता दे रहे हैं. ओमप्रकाश ने बताया कि वह कभी भी किस्मत के भरोसे नहीं बैठे रहे उन्होंने नहीं तकनीकी और समझदारी दोनों को मिलाकर एक नया प्रयोग कर दिया. यह प्रयोग इस बात का प्रमाण है कि खेत में पानी कम हो या साधन, यदि किसान नई दिशा चुन ले तो परिणाम असाधारण मिल सकते हैं. अजोला ने उनके पशुपालन को मजबूती दी, दूध उत्पादन बढ़ाया और खेती को लाभ का नया मॉडल बना दिया. वो फसल, आंवला पेड़ और अजोला – इन तीनों के संतुलन ने उनके खेत को एक सस्टेनेबल फार्मिंग मॉडल में बदल दिया है, जो आज के किसानों के लिए प्रेरणा है.

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