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Iran-Israel Conflict: जानिए, आखिर क्यों छिड़ी है ईरान-इजरायल में जंग, कल के जिगरी दोस्त कैसे बन गए आज के जानी दुश्मन

ईरान ने इजरायल पर भीषण हमला (Iran-Israel Conflict) कर इजरायल के साथ ही पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। वैश्विक नेता इसे तीसरे विश्व युद्ध की आहट समझकर इसे किसी भी हालत में टालने की जुगत में जुटे हुए हैं। ईरान (Iran) ने इजरायल पर हमला करने से पहले ही उसे चेता दिया था कि 48 घंटों में वो उस पर हमला कर सकता है और ऐसा हुआ भी। अब ईरान और इजरायल को लेकर लोगों में एक सवाल बार-बार कौंध रहा है कि आखिर क्या वजह है कि दो युद्धों का मुंह देख रही दुनिया को एक और जंग देखनी पड़ रही है। आखिर क्यों ईरान और इजरायल (Israel) के बीच इतनी तनातनी हो गई है? क्यों ईरान और इजरायल अब जानीदुश्मन बन गए हैं जो कभी एक अच्छे दोस्त हुआ करते थे। जी हां, ईरान और इजरायल एक वक्त एक-दूसरे के बेहद अच्छे दोस्त थे। दोनों में मैत्री संबंध थे। वो भी कोई एक-दो साल नहीं बल्कि पूरे 30 साल।

1979 का वो अहम साल

आज हम जिस ईरान और इजरायल (Iran-Israel Conflict) के बीच इतनी कट्टर दुश्मनी देख रहे हैं असल वो पहले कभी थी ही नहीं। इजरायल को तो देश के रूप में मान्यता भी ईरान जैसे मुस्लिम देश ने दी थी। इस बात को फिलिस्तीन (Palestine) ने अपने लिए तबाही की एक मौन अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति के रूप में देखा था। क्य़ोंकि 1948 में इज़राइल के निर्माण के समय 7 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी विस्थापित हुए थे। इज़राइल गैर-अरब देशों के साथ संबंध स्थापित करने में लगा हुआ था। जिसमें ईरान के साथ सैन्य और सुरक्षा सहयोग भी शामिल था लेकिन साल 1979 में इस्लामी क्रांति (Islamist Revolution) के दौरान इन दोनों देशों में दरार आ गई थी।

‘शैतान’ बन गए थे अमरीका और इज़रायल

 ईरान में उस वक्त शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था और अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी (Ruhollah Khomeini) ने ईरान की कमान को अपने हाथ में ली। खुमैनी के शासन काल में अमरीका को ईरान में “महान शैतान” और इज़राइल को “छोटा शैतान” के रूप में जाना जाने लगा।

1980 तक जारी था ईरान और इजरायल के बीच सहयोग

बावजूद इसके इज़राइल और ईरान (Iran)के बीच सीमित सहयोग 1980 के दशक तक जारी रहा। हालांकि इसके बाद में दोनों के बीच दुश्मनी पैदा हुई क्योंकि ईरान ने सीरिया, इराक, लेबनान और यमन में प्रॉक्सी मिलिशिया (Proxy Militia) और अन्य समूहों का निर्माण और वित्त पोषण किया। बता दें कि प्रॉक्सी मिलिशिया एक लड़ाकू संगठन है जो एक समुदाय, क्षेत्र या देश के सदस्यों से बना होता है। इसके चलते कुछ सालों में ही ईरान और इज़राइल के बीच तनाव बढ़ गया।

परमाणु कार्यक्रम भी है तनाव की अहम वजह

ईरान का परमाणु कार्यक्रम (Nuclear Program) भी इन दोनों देशों के बीच तनाव की अहम वजह है। दरअसल ईरान का मानना है कि इज़राइल और अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के लिए यूरेनियम (Uranium) को समृद्ध करने वाले सेंट्रीफ्यूज को टारगेट किया हुआ है और इसके लिए ही उन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत में स्टक्सनेट कंप्यूटर वायरस की शुरुआत की थी।

इजरायल ने शुरू कर दिए ईरान पर हमले

इसके बाद 2020 के दशक में इजरायल (Israel) ने ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को टारगेट बनाते हुए उन पर हमले किए थे। इजरायल ने ईरान के कई परमाणु वैज्ञानिकों को भी निशाना बनाया था। वहीं डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के शासन काल में साल 2018 में अमरीका ईरान परमाणु समझौते से पीछे हट गया था जिसे ईरान के लिए एक बड़ा झटका और इजरायल के लिए एक बड़ी जीत के तौर पर देखा गया था।

ईरान की संदिग्ध होती गईं गतिविधियां

अमरीका (USA) को अपने विश्वास में लेने के लिए ईरान लगातार इस बात पर ज़ोर देता रहा कि उसके परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण है। उसने किसी देश को नुकसान पहुंचाने के लिए ये कार्यक्रम नहीं किए हैं। हालाँकि कुछ घटनाएँ जैसे उन स्थानों पर यूरेनियम कणों की कथित तौर पर खोज, जिनके बारे में ईरान ने संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी एजेंसी (UN Nuclear Agency) कभी नहीं बताया, ईरान के इरादों पर शक पैदा कर देती है।

खामनेई (Ali Khamenei) के सत्ता में आ जाने से ईरान पूरी तरह इस्लामी कट्टरपंथियों के कंट्रोल में है। दूसरी तरफ इजरायल में भी कथित तौर पर रुढ़िवादी ताकतें शासन कर रही हैं। इस वजह से ईरान और इजरायल अब एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं।

ईरान का हिजबुल्लाह और हमास प्रेम

ईरान (Iran) लंबे समय से इस क्षेत्र में सशस्त्र समूहों का समर्थन करता आया है। जो इज़राइल के साथ-साथ अमेरिकी सेना को भी निशाना बनाते हैं। इनमें से सबसे अहम है लेबनान में हिज़्बुल्लाह (Hezbollah), जिसका गठन 1980 के दशक में दक्षिणी लेबनान में इज़रायली कब्जे से लड़ने के लिए किया गया था। अक्टूबर में गाजा (Gaza) युद्ध शुरू होने के बाद से हिजबुल्लाह उत्तरी इज़राइल में रॉकेट दाग रहा है। 7 अक्टूबर को हमास के इजरायल (Hamas Attack on Israel) पर किए गए अचानक हमले को ईरान ने हमास की जीत करार दिया था। जिससे साफ हो गया था कि ईरान का समर्थन हमास को है ना कि इजरायल को। इससे ये भी साफ हो गया था ईरान सशस्त्र फिलिस्तीनी समूह हमास का भी समर्थन करता है।

ईरान को आतंकिस्तान बना डाला नसरल्लाह ने

इसमें ईरान के सबसे ताकतवर और कद्दावर नेता हसन नसरल्लाह (Hassan Nasrallah) का हाथ है। बता दें कि हसन नसरल्लाह हिजबुल्ला आतंकी संगठन का प्रमुख है, वर्तमान में इस संगठन की सारी गतिविधियों का कर्ता-धर्ता यही शख्स है। हसन नसरल्लाह ईरान (Iran) के सर्वोच्च नेता अली खामनेई का बेहद करीबी है। वही अली खामनेई जिसने ईरान को आंतक (Hezbollah) की आग में झोंक दिया और जिसकी कुनीतियों और कुशासन की वजह से अमेरिका ने इस देश पर प्रतिबंध लगा रखा है। कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि अली खामनेई और नसरल्लाह मिलकर लेबनान, लीबिया, सीरिया समेत कई देशों में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। लेबनान तो पूरी तरह से हिजबुल्ला और नसरल्लाह की मुट्ठी में आ चुका है।

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