Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट में इकरा चौधरी की याचिका: पूजा स्थल अधिनियम 1991 पर जोर

Last Updated:February 14, 2025, 15:50 IST
सपा सांसद इकरा चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेस ऑफ वॉरशिप एक्ट के समर्थन में याचिका दाखिल की है और धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण आदेशों पर रोक की मांग की है।
इकरा चौधरी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए
हाइलाइट्स
सपा सांसद इकरा चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कीयाचिका में पूजा स्थलों के सर्वेक्षण आदेशों पर रोक की मांग कीकपिल सिब्बल ने मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाने पर चिंता जताई
नई दिल्ली. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की नेता और संसद सदस्य इकरा चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. इकरा चौधरी ने प्लेसेस ऑफ वॉरशिप एक्ट के मामले में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार के समक्ष हस्तक्षेप याचिका दाखिल की है. इस याचिका में सपा सांसद ने कहा है कि यह एक्ट देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के मुताबिक है. इसमें कोई भी बदलाव सामाजिक समरसता के लिए ठीक नहीं होगा. इस पर हालांकि हल्के अंदाज में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हर हफ्ते इस तरह की अर्जी दाखिल हो रही हैं.
चीफ जस्टिस ने इस तरह की याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त की. इकरा चौधरी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाने वाले कई केस, जो अक्सर उचित जांच के बिना जल्दबाजी में सर्वेक्षण के आदेश देते हैं सांप्रदायिक तनाव को भड़का सकते हैं. उन्होंने आगे दलील दी कि इससे भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को कमजोर कर सकते हैं. याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि इस मुद्दे की अनदेखी करने से देश की सद्भावना को खतरा है.
क्या है इकरा चौधरी की याचिका?याचिका दो मुख्य प्वाइंट है. सबसे पहले, यह राम जन्मभूमि मंदिर मामले का हवाला देते हुए कहता है कि 1991 के अधिनियम को दरकिनार करने से गैर-प्रतिगमन के स्थापित सिद्धांत का उल्लंघन होगा. दूसरा, यह तर्क देता है कि पूजा स्थलों को शामिल करने के लिए 1958 के प्राचीन स्मारक अधिनियम के तहत ‘प्राचीन स्मारकों’ को परिभाषित करने से संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 का उल्लंघन होगा, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं.
चौधरी की याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि ‘प्राचीन स्मारक’ की परिभाषा समावेशी नहीं है और इसमें स्वतः ही धार्मिक संरचनाएं शामिल नहीं हो सकती हैं. ऐसा करना अनुच्छेद 25, 26 और 29 का खंडन होगा, जो केवल सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर प्रतिबंधों की अनुमति देता है. याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि 1958 के अधिनियम की शाब्दिक व्याख्या पूजा स्थलों को ‘प्राचीन स्मारकों’ के रूप में वर्गीकृत नहीं करेगी जब तक कि स्पष्ट रूप से उल्लेख न किया गया हो. इसके अलावा, याचिका में 1991 के अधिनियम की धारा 4 का हवाला दिया गया है, जिसमें पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को संरक्षित रखने का आदेश दिया गया है, जैसा कि वे 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में थे. हालांकि, यह सुरक्षा 1958 के अधिनियम के अंतर्गत आने वाले प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों या पुरातात्विक स्थलों को शामिल नहीं करती है.
चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट से क्या किया अनुरोधयाचिका में 16वीं सदी की एक मस्जिद पर सर्वेक्षण के आदेश से शुरू हुई संभल हिंसा जैसे उदाहरणों का हवाला दिया गया है और इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कैसे निचली अदालतें अक्सर उचित कानूनी जांच के बिना मस्जिद और दरगाह सर्वेक्षण के लिए एकतरफा अंतरिम आदेश जारी करती हैं, संभावित रूप से सांप्रदायिक सद्भाव को खतरे में डालती हैं.
चौधरी की याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि:
1. पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के पूर्ण कार्यान्वयन का निर्देश दें.2. यह घोषित करें कि 1958 के अधिनियम के तहत ‘प्राचीन स्मारक’ में पूजा स्थल शामिल नहीं हैं, और कोई भी विपरीत व्याख्या अनुच्छेद 25, 26 और 29 का उल्लंघन करती है. यह 1958 के अधिनियम के तहत चल रही किसी भी कार्यवाही को खारिज करने का भी प्रयास करता है जिसका उद्देश्य 1991 के अधिनियम के तहत संरक्षित पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति को बदलना है.3. सभी भारतीय न्यायालयों को ऐसे मुकदमों पर सुनवाई करने से रोकें जो 15 अगस्त, 1947 को किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने का प्रयास करते हैं.4. सभी भारतीय न्यायालयों को चल रहे मामलों में ऐसे आदेश जारी करने से रोकें जो 15 अगस्त, 1947 को किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदल सकते हैं.5. वैकल्पिक रूप से, ऐसे मुकदमों पर विचार करने के लिए दिशानिर्देश स्थापित करें, यह सुनिश्चित करते हुए कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के उल्लंघन को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय हों.
गौरतलब है कि 12 दिसंबर, 2024 को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने धार्मिक स्थलों के खिलाफ नए मुकदमों और सर्वेक्षण के आदेशों पर रोक लगा दी थी. यह आदेश ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा शाही ईदगाह और संभल जामा मस्जिद से जुड़े लंबित मामलों पर भी लागू होता है, जिसमें सर्वेक्षण आदेश सहित अंतरिम या अंतिम आदेशों को रोकना शामिल है..यह अंतरिम आदेश पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए और इसके कार्यान्वयन की वकालत करते हुए जारी किया गया था।
Location :
Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
February 14, 2025, 15:50 IST
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