Rajasthan

इस मंदिर में दी जाती थी बच्चों की बलि! घने जंगल में विराजमान हैं मोरा माता, रहस्यमय है इसकी कहानी

दौसा. राजस्थान में अनेक धार्मिक स्थल है और धार्मिक स्थलों की अलग-अलग कहानियां सुनने को मिलती हैं. लेकिन दौसा जिले के घूमना गांव में स्थित मोरा माता मंदिर की कुछ अलग ही कहानी है. यहां पर नवरात्रि में दुर्गाष्टमी पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. मंदिर में मूर्ति सैकड़ों साल पुरानी की बताई जाती है. सैकड़ों साल पहले उस समय मंदिर का छोटा सा रूप बताया जाता है. पहले जिस जगह पर मंदिर बना हुआ था उसी के आसपास 2 गांव बसे हुए थे. इसमें एक गढ़ोली बड़ागांव था तो दूसरा घूमना छोटा गांव बताया जाता है. इन्हीं के माधो में सागर बांध की नहर के किनारे पर मोरा माता का एक छोटा सा स्थान बना हुआ था. लेकिन उस छोटे से स्थान पर बच्चे की बलि चढ़ाने का दावा भी लोग करते हैं. लेकिन अब काफी समय से माता की बलि चढ़ाने की रोक लग गई है.

पुजारी चौथी लाल भगत और दर्जनों लोगों का कहना है कि अब जिस स्थान पर मंदिर बना है उस जगह पर सैकड़ों वर्षों पहले ढाई महीने के बच्चे की बलि चढ़ाई जाती थी. तभी पुजारी के द्वारा एक बच्चे को बलि चढ़ाने के लिए यहां पर लाया गया था. लेकिन लोगों का विरोध के चलते बच्चे को नीचे छिपा दिया और पुजारी विरोध के कारण मंदिर से चला गया. विरोध करने वाले लोगों ने बच्चे को ढूंढना शुरू किया और बच्चा नहीं मिला तो किसी व्यक्ति ने एक मंदिर के पीछे छाबड़ा रखा हुआ था उसे उठाया तो उसके नीचे से बच्चे के रूप में मोर बन कर उठ गया तभी से माता की मान्यता बढ़ी और तभी से बलि चढ़ाने पर रोक लग गई. हालांकि, लोकल 18 इस तरह के दावों की पुष्टि नहीं करता.

बलि की रोक के बाद माता का बनाया मंदिरस्थानीय लोगों ने बताया कि जब से बलि चढ़ाने पर रोक लगी है और बच्चे को मोर बनकर उड़ाया तबसे माता की मान्यता अधिक हो गई और स्थानीय लोगों द्वारा ही माता का मंदिर भी बनाया गया है जिसने अब भव्य रूप ले लिया है. माता के मंदिर के आसपास धर्मशाला सामुदायिक भवन का निर्माण भी हुआ है. जिनमें लोग आराम से उठते बैठते हैं. चंद्रगुप्त मौर्य की मां का नाम था मोरा चंद्रगुप्त मौर्य का गढ़मोरा से नाता रहा है और उनकी मां का नाम मोरा था और मोरा नाम होने के कारण मोरा माता नाम हुआ. वहीं घूमना गांव जब स्थापित हुआ तो अपने कुल देवता देवी की स्थापना की गई. गुनावत गोत्र होने के कारण मोरा माता की स्थापना घूमना गांव में की गई तभी से लगातार गुनावत गोत्र के लोगों का आना जाना लगा रहता है और यहां सर्वाधिक गुनावत गोत्र के ही लोग निवास करते हैं.

दुर्गाष्टमी पर होता है भव्य आयोजनमोरा माता सेवा समिति के संरक्षक शिव जी अध्यक्ष योगेंद्र मीणा, जय सिंह, टीकम चंद, राहुल मुनीम, पिंटू मीणा, देशराज, पवन, मनीष, शिवराम, केशराम सहित अन्य सदस्यों ने बताया कि पिछले कई वर्षों से मोरा माता मंदिर पर दुर्गाष्टमी की शाम को भव्य आयोजन होता है. यहां मोरा माता सेवा समिति के द्वारा आयोजन किया जाता है. सेवा समिति के द्वारा कनक दंडवत करने वाले श्रद्धालुओं को दूध और केले का प्रसाद भी वितरण किया जाता है. जिसमें मिट्टी के कुल्लड़ में यह दूध दिया जाता है जो बहुत ही स्वादिष्ट होता है अब यह कार्यक्रम लगातार अपना रूप बदलता जा रहा है और भव्य होता जा रहा है.

माता के अन्य राज्यों से भी आने लगे श्रद्धालु मोरा माता मंदिर घूमना पर अन्य राज्यों से भी अब श्रद्धालु आने लगे हैं. क्योंकि यह मोरा माता गुनावत गोत्र की कुलदेवी भी है. इसलिए अन्य राज्यों में बसे गुनावत गोत्र के लोग भी मोरा माता मंदिर पर पहुंचने लगे हैं और राजस्थान के अन्य कई जिलों से भी श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए और अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए मंदिर पर पहुंचते हैं और माता के धोक लगाते हैं.

Tags: Dausa news, Local18, Rajasthan news

FIRST PUBLISHED : November 17, 2024, 16:09 IST

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