सियासत से दूर, मोहब्बत के करीब, जब हिंदू और मुस्लिम ने एक साथ मस्जिद में बांटी दुआएं!

Last Updated:April 23, 2025, 18:25 IST
बाड़मेर में सामाजिक कार्यकर्ता उदाराम मेघवाल ने रमजान के मौके पर मुस्लिम समुदाय के लिए जामा मस्जिद में रोज़ा इफ्तार का आयोजन किया, जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हुए और भाईचारे, शांति व एकता का संदेश दिया गया.X
रोजा इफ्तारीमें शामिल लोग
मनमोहन सेजू/ बाड़मेर- राजस्थान की रेगिस्तानी धरती बाड़मेर ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि भारत की असली ताकत उसकी गंगा-जमुनी तहजीब में छुपी है. रमजान के पवित्र महीने में सामाजिक कार्यकर्ता उदाराम मेघवाल ने एक ऐसा आयोजन किया, जिसने धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत और भाईचारे की मिसाल पेश की.
जामा मस्जिद में हुआ भव्य इफ्तार आयोजनउदाराम मेघवाल द्वारा बाड़मेर शहर की जामा मस्जिद में रोजा इफ्तार का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों रोज़ेदारों ने खजूर और पानी से रोजा खोला और फिर स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ एक साथ बैठकर भोजन किया. इस आयोजन ने सामाजिक सौहार्द की भावना को और भी प्रगाढ़ किया.
हर धर्म के लोग हुए शामिलइस इफ्तार में मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ हिंदू समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में शामिल हुए. नमाज़ के बाद सभी ने मिलकर खाना खाया और एक-दूसरे को रमजान की मुबारकबाद दी. बच्चों की हंसी और बड़ों की दुआओं ने माहौल को भावुक और सजीव बना दिया.
प्यार और सम्मान का पैगामजामा मस्जिद के पेश इमाम हाजी लाल मोहम्मद सिद्दिकी ने कहा, “यह पहली बार नहीं है जब उदाराम मेघवाल ने ऐसा आयोजन किया हो. वे हमेशा हर समुदाय के साथ खड़े रहते हैं. यह इफ्तार हमारे लिए सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि एक पैगाम है प्यार, इज्जत और एकता का.”
सांसद से लेकर समाजसेवियों तक सभी रहे मौजूदइस विशेष अवसर पर बाड़मेर-जैसलमेर सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल, पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष फतेह खान, युवा नेता लक्ष्मण गोदारा, राजेन्द्र कड़वासरा, महेंद्र जाणी, तोगाराम मेघवाल और लक्ष्मण वडेरा जैसे कई नेता और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए.
भाईचारे और शांति की दुआओं से गूंजा माहौलइफ्तार के दौरान लोगों ने देश की शांति, एकता, और तरक्की के लिए दुआएं मांगी. यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक विविधता का सम्मान था, बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाला प्रेरक उदाहरण भी बन गया.
Location :
Barmer,Rajasthan
First Published :
April 23, 2025, 18:25 IST
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सियासत से दूर, मोहब्बत के करीब, जब हिंदू और मुस्लिम ने एक साथ मस्जिद में बांटी