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Cloudflare: डिजिटल दुनिया का मास्टर स्विच, डाउन होते ही ठप हो जाता है इंटरनेट, जानिए इसकी ABCD

कभी-कभी इंटरनेट पर काम करते हुए आपकी स्क्रीन पर एक अजीब सा एरर मैसेज (Error Message) आता होगा – 500 Internal Server Error या Connection Timed Out. आप सोचते हैं कि अरे! ये क्या हो गया? मेरा इंटरनेट तो चल रहा है, फिर ये वेबसाइट क्यों नहीं खुल रही? आप एक बार रीफ़्रेश करते हैं, दो बार करते हैं, लेकिन कुछ नहीं होता. फिर आप दोस्तों को फ़ोन करके पूछते हैं, और पता चलता है कि ये दिक्कत सिर्फ़ आपके साथ नहीं, बल्कि दुनिया भर में लाखों-करोड़ों लोग एक ही समय पर इसी परेशानी से जूझ रहे हैं. दुनिया की बड़ी-बड़ी वेबसाइट्स, चाहे वो एक्स (X) हो, नेटफ़्लिक्स (Netflix) हो, या कोई गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म सब एक साथ ठप हो जाते हैं. आज फिर एक बार क्लाउडफ्लेयर डाउन हुआ है, जिससे हजारों वेबसाइट्स ने कई देर तक काम करना बंद कर दिया. पूरी रिपोर्ट यहां – पढ़ें.

कुछ देर के लिए पूरा इंटरनेट रुक जाता है. ऐसा लगता है जैसे किसी ने डिजिटल दुनिया का ‘मास्टर स्विच’ ऑफ़ कर दिया हो. और ये सब होता है एक कंपनी की वजह से, जिसका नाम है Cloudflare (क्लाउडफ़्लेयर). ये वो कंपनी है, जो इंटरनेट को तेज़ और सुरक्षित बनाने का काम करती है, लेकिन जब इसमें कोई छोटी सी गड़बड़ी आती है, तो पूरी दुनिया में हड़कंप मच जाता है. ये क्लाउडफ़्लेयर है क्या? और कैसे इसकी एक छोटी सी रुकावट पूरे इंटरनेट को हिला कर रख देती है? चलिए डिटेल में जानते हैं.

2004 में अमेरिका में दो दोस्त मैथ्यू प्रिंस (Matthew Prince) और ली हॉलोवे (Lee Holloway) एक बहुत ही साधारण से सवाल का जवाब ढूंढ रहे थे. सवाल था कि “ये ईमेल स्पैम (Email Spam) आता कहां से है?” उस समय स्पैम ईमेल एक बड़ी परेशानी थी, जिससे लोग बहुत तंग आ चुके थे. मैथ्यू और ली ने मिलकर एक प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसका नाम था ‘प्रोजेक्ट हनी पॉट’ (Project Honey Pot). उनका आइडिया बहुत सिंपल था. वे वेबसाइट मालिकों को एक ऐसा सिस्टम देना चाहते थे, जिससे वे उन लोगों को ट्रैक कर सकें, जो उनकी वेबसाइट से ईमेल एड्रेस चुराकर स्पैम भेजते हैं. एक तरह उन्होंने ऑनलाइन दुनिया में ‘बुरे लोगों’ को पकड़ने का जाल बिछाया था.

प्रोजेक्ट हनी पॉट को लोगों ने हाथों-हाथ लिया. लोगों को बहुत पसंद आया कि उन्हें पता चल रहा था कि कौन लोग ऑनलाइन आकर उनकी वेबसाइट्स को नुकसान पहुंचा रहे हैं. लेकिन जल्द ही यूज़र्स की तरफ़ से एक ही गुजारिश बार-बार आने लगी कि सिर्फ़ इन ‘बुरे लोगों’ को ट्रैक मत करो, बल्कि इन्हें रोको भी!” यूज़र्स सिर्फ़ ये नहीं चाहते थे कि उन्हें चोरों का पता चले, बल्कि वो चाहते थे कि उनके घर के दरवाजे पर ताला भी लगे.

कैसे पड़ी क्लाउडफ़्लेयर की नींव और कैसे सूझा ये नाम?

इस बीच, 2009 में, मैथ्यू प्रिंस हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल (Harvard Business School) से MBA कर रहे थे. वहीं उनकी मुलाकात मिशेल ज़ेटलिन (Michelle Zatlyn) से हुई. मिशेल एक ऐसी शख़्स थीं, जिनमें किसी भी आइडिया को एक बड़े, सफल बिज़नेस में बदलने की काबिलियत थी. मैथ्यू ने उन्हें प्रोजेक्ट हनी पॉट के बारे में बताया, और मिशेल को तुरंत ये समझ आ गया कि ये सिर्फ़ स्पैम रोकने का एक छोटा-सा टूल नहीं है, बल्कि ये तो पूरे इंटरनेट को सुरक्षित बनाने का एक बहुत बड़ा मौका है. उन्हें लगा कि क्यों न एक ऐसी सर्विस बनाई जाए, जो किसी भी वेबसाइट को न सिर्फ़ साइबर अटैक से बचाए, बल्कि उसे तेजी से लोड होने में भी मदद करे.

बस यहीं से क्लाउडफ़्लेयर की नींव रखी गई. शुरुआती बिज़नेस प्लान का नाम उन्होंने प्रोजेक्ट वेब वॉल (Project Web Wall) रखा, पर वो नाम उतना अपीलिंग नहीं था. फिर एक दोस्त ने मज़ाक में कहा कि तुम तो क्लाउड (Cloud) में एक फ़ायरवॉल (Firewall) बना रहे हो, क्यों न इसे ‘क्लाउडफ़्लेयर’ कहा जाए? नाम सुनते ही तीनों संस्थापकों (मैथ्यू, ली और मिशेल) को लगा कि ये नाम बिल्कुल सही है, और बस, नाम पक्का हो गया.

शुरुआत का सफ़र आसान नहीं था. ली हॉलोवे कैलिफ़ोर्निया में थे और अपने खाली समय में इस नए सिस्टम का पहला वर्किंग प्रोटोटाइप बना रहे थे. वहीं, मैथ्यू और मिशेल हार्वर्ड में अपने प्रोफ़ेसरों के साथ बैठकर बिज़नेस प्लान को फाइनल कर रहे थे. उनका बिजनेस प्लान इतना जबरदस्त था कि 2009 में उन्होंने हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल बिज़नेस प्लान कॉम्पिटिशन जीत लिया. इस जीत ने न सिर्फ़ उन्हें कॉन्फ़िडेंस दिया, बल्कि पहले निवेशकों (Investors) का ध्यान भी खींचा.

अक्टूबर 2009 में, उन्हें पहले दौर की फंडिंग मिली. अब बारी थी इस आइडिया को हकीकत में बदलने की. तीनों संस्थापकों ने कैलिफ़ोर्निया में एक छोटे से ऑफ़िस में बैठकर रात-दिन काम किया और एक सफल प्रोडक्ट बनाया.

क्लाउडफ़्लेयर काम कैसे करता है?

क्लाउडफ़्लेयर असल में एक ऐसी ‘सुरक्षा दीवार’ या ‘मिडिल लेयर’ है, जो आपके कंप्यूटर और उस वेबसाइट के ओरिजिनल सर्वर (Original Server) के बीच में खड़ी हो जाती है.

आमतौर पर, जब आप किसी वेबसाइट को एक्सेस करते हैं, तो आपका रिक्वेस्ट सीधे उस वेबसाइट के सर्वर पर जाता है. अगर एक साथ बहुत सारे लोग उस सर्वर पर चले जाएं (या कोई हैकर DDoS Attack करके ढेर सारा फ़र्ज़ी ट्रैफिक भेज दे), तो सर्वर क्रैश हो जाता है, और वेबसाइट ठप हो जाती है. ये ऐसे ही है जैसे एक छोटे से दरवाज़े से एक साथ हजारों-लाखों लोग घुसने की कोशिश करें.

क्लाउडफ़्लेयर इस पूरे प्रोसेस को बदल देता है. ये वेबसाइट के सर्वर से पहले, दुनियाभर के कई देशों में फैले अपने बड़े-बड़े सर्वर (जिन्हें ये एज नेटवर्क – Edge Network कहते हैं) को खड़ा कर देता है.

जब आप किसी वेबसाइट को खोलते हैं, तो आपका रिक्वेस्ट उस वेबसाइट के असली सर्वर के पास जाने के बजाय, क्लाउडफ़्लेयर के सबसे नज़दीकी सर्वर पर जाता है. इस सर्वर में वेबसाइट का डेटा पहले से सेव (Cache) होता है. इससे डेटा को लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ती, और वेबसाइट बहुत तेज़ी से खुलती है.

क्लाउडफ़्लेयर बुरे और अच्छे ट्रैफिक के बीच फ़र्क़ कर सकता है. अगर कोई हैकर DDoS अटैक करने की कोशिश करता है, तो क्लाउडफ़्लेयर उस फ़र्ज़ी ट्रैफिक को अपनी ‘सुरक्षा दीवार’ पर ही रोक लेता है, और असली सर्वर तक पहुंचने ही नहीं देता. इससे वेबसाइट हर हाल में ऑनलाइन रहती है.

एक तरह से, क्लाउडफ़्लेयर पूरी दुनिया के इंटरनेट ट्रैफिक का लगभग 20% हिस्सा संभालता है. यही वजह है कि जब भी इसमें कोई गड़बड़ी आती है, तो उसका असर X, ChatGPT, Spotify, Amazon और Canva जैसी लाखों वेबसाइट्स पर पड़ता है.

क्लाउडफ़्लेयर के टूल, जो आते हैं लोगों के काम

2010 में क्लाउडफ़्लेयर को सैन फ्रांसिस्को में एक बड़े टेक इवेंट, TechCrunch Disrupt में लॉन्च किया गया. उन्होंने सबके लिए एक फ़्री टियर (Free Tier) सर्विस शुरू की, ताकि छोटी वेबसाइट्स और ब्लॉगर्स भी बड़ी कंपनियों जितनी सुरक्षा और स्पीड पा सकें. ये एक बहुत बड़ा गेम-चेंजर था. यूज़र्स ने तुरंत देखा कि उनका डेटा न सिर्फ़ सुरक्षित हो गया, बल्कि उनकी वेबसाइट्स 30% तक तेज़ी से लोड होने लगीं. इस फ़्री मॉडल ने कंपनी को रातों-रात लाखों यूज़र्स दिए.

ग्रोथ बहुत तेजी से हुई. एक छोटे से स्टार्टअप से क्लाउडफ़्लेयर एक मल्टी-करोड़ वैल्यूएशन वाली कंपनी बन गई. उन्होंने सुरक्षा से जुड़े और भी कई बेहतरीन टूल्स जोड़ने शुरू किए. जैसे कि-
1.1.1.1 (DNS Service): एक ऐसा सिस्टम जो आपके इंटरनेट को प्राइवेट और तेज़ बनाता है.
Cloudflare Workers: ये एक नया सिस्टम है, जिसकी मदद से डेवलपर्स (Developers) अपना कोड क्लाउडफ़्लेयर के एज नेटवर्क पर सीधे चला सकते हैं, जिससे ऐप्स और भी तेज़ी से काम करते हैं.
कंपनी ने दुनिया भर में अपने नेटवर्क को फैलाना शुरू किया. आज, क्लाउडफ़्लेयर के नेटवर्क 100 से ज़्यादा देशों में और 300 से ज़्यादा शहरों में फैले हुए हैं.

न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड है कंपनी

आज क्लाउडफ़्लेयर सिर्फ़ एक सुरक्षा कंपनी नहीं है, बल्कि इंटरनेट के भविष्य को आकार देने वाली एक ताक़त है. 2019 में, यह कंपनी न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज (NYSE) पर लिस्ट हुई, जो इसकी बड़ी सफलता का प्रमाण था. आज इसकी वैल्यूएशन अरबों डॉलर्स में है, और यह लगातार नए प्रोडक्ट्स ला रही है, ताकि इंटरनेट सिर्फ़ सुरक्षित ही नहीं, बल्कि तेज़, प्राइवेट और ओपन भी रहे.

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