Rajasthan

Mother Tongue Should Be Included In Primary Education: Suthar – प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा हो शामिल: सुथार

प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन की ओर से ‘आखर’ का आयोजन

जयपुर, 1 अगस्त
वरिष्ठ साहित्यकार भंवरलाल सुथार का कहना है कि प्राथमिक शिक्षा में राजस्थानी भाषा को शामिल करने से हमारे संस्कार और संस्कृति को बचाने में मदद मिलेगी। प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन की ओर से ‘आखर’ कार्यक्रम में उनका कहना था कि हम सभी को राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के बारे में आवाज उठानी चाहिए तभी हम सभी को सफलता मिलेगी। राजस्थानी भाषा के विभिन्न पक्ष और उनकी पुस्तक कोरोना काल पर चर्चा करते हुए उन्होंने प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा और राजस्थानी भाषा को मान्यता देने पर जोर दिया। उनके साथ संवाद युवा साहित्यकार महेंद्र सिंह छायण ने की।
साहित्यकार भंवरलाल सुथार से अपने प्रारंभिक जीवन और साहित्य यात्रा के बारे में बातचीत करते हुए बताया किए गांव में अभावों के बीच पांचवीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद जालौर आकर कक्षा 11 तक पढ़ाई और फिर जोधपुर में विश्वविद्यालय में प्रवेश का प्रयास किया। वर्ष 1974 में जोधपुर यूनिवर्सिटी में प्रवेश न मिलने पर प्रिंटिंग प्रेस में काम करना शुरू किया। 11वीं में राजस्थानी भाषा में लेखन का रुझान शुरू हो गया। प्रिंटिंग प्रेस में कंपोजिटर का काम करते हुए कई वरिष्ठ साहित्यकारों और लेखकों से परिचय हुआ इसीलिए साहित्य से जुड़ाव हो गया।
अपनी पुस्तक कोरोना काल के बारे में भंवरलाल सुथार ने बताया कि, शुरू में दोहे लिखे थे लेकिन बाद में इसने पुस्तक का रूप ले लिया। इस पुस्तक में कोरोना मिटाने की देवी.देवताओं से प्रार्थना की गई, साथ ही सरकारी प्रबंध और बेरोजगारी पर चर्चा की गई है। एक विशेषता यह भी है कि इसमें राजस्थानी भाषाओं के शब्दों के हिंदी में अर्थ भी बताए गए हैं और आमजन को कोरोना के बारे में सचेत किया गया है। इसमें राजस्थानी देशज शब्दों के साथ आवश्यक अंग्रेजी शब्दों का भी उपयोग किया गया है। ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने आभार प्रकट करते हुए कहा कि युवा साहित्यकार महेन्द्र सिंह छायण ने और समीक्षक रामस्वरूप लटियाल में राजस्थानी को बहुत सुंदर तरीके से पिरोया है। वरिष्ठ साहित्यकार मोहनलाल सुथार में राजस्थानी शब्दकोश के रचयिता सीताराम लालस के साथ काम किया है। इनकी पुस्तक कोरोना काल में कोरोना के समय की परिस्थितियों का वर्णन किया गया है।

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