Crocodiles were kept in ponds of Jauhar Bai and Abheda Mahal of the 17th century. Now the ponds are in a bad condition. – News18 हिंदी
शक्ति सिंह/कोटा:- कोटा के उपनगरीय क्षेत्र के नांता क्षेत्र में स्थित जौहर बाई का तालाब (सगस जी महाराज), मेंढकी पाल तालाब और अभेड़ा तालाब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में बदहाल हो रहा है. इंटेक के कन्वीनर बहादुर सिंह हाड़ा ने बताया कि पर्यटन, पर्यावरण एवं वन्यजीव समेत बहुउपयोगी समझे जाने वाले इन तालाबों को उदयपुर की झीलों की तर्ज पर विकसित किया जाना चाहिए. जौहर बाई का तालाब 80-90 के दशक में, फ्लाई ऐश की समस्या की बलि चढ़ गया. यहां फ्लाईऐश को डंप किया जाता रहा है.
अब इस फ्लाईऐश से मोटा मुनाफा होने लगा, तो राख तो उठा ली गई, लेकिन तालाब अपनी दयनीय बदहाल स्थिति पर आज भी आंसू बहा रहा है. यह तालाब प्रकृति के अंधाधुन दोहन का जीता-जागता उदाहरण है. अब थर्मल प्रशासन से मिलकर इस तालाब के सौंदर्यीकरण की मांग की जाएगी. उन्होंने कहा कि प्राचीन तालाब हमारी सांस्कृतिक विरासत है. इन्हें बचाने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए. इन तालाबों को निखारने के लिए इंटेक की ओर से जन आन्दोलन शुरु किया जाएगा.
रियासतकालीन हैं ये तालाब
निखिलेश सेठी ने बताया कि नांता क्षेत्र में 9 तालाब थे, जिनका निर्माण 17वीं शताब्दी में कराया गया था. इनमें से केवल 3 का ही अस्तित्व बचा है. जौहर बाई तालाब का निर्माण झाला जालिम सिंह ने कराया था. मेंढकी तालाब का निर्माण मवेशियों को पानी पिलाने के लिए किया जाता था. ये तालाब पानी का बड़ा स्रोत रहा है.
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मगरमच्छों को नाम से बुलाते थे महाराव उम्मेद सिंह
अभेड़ा स्थित करणी माता सिद्ध आश्रम के तालाब का जीर्णोद्धार अंतिम बार महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय ने कराया था. यहां मौजूद मगरमच्छों को उम्मेदसिंह कालिया और धोलिया नाम पुकारकर बुला लेते थे. इस तालाब की भराव क्षमता 20 फीट तक है. ऐसे में पर्यटन गतिविधियों के लिए यह तालाब उपयुक्त है.
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FIRST PUBLISHED : February 17, 2024, 17:43 IST