Dev Uthani Ekadashi : देवउठनी एकादशी पर क्यों होता है तुलसी-शालिग्राम का विवाह, जानें महत्व

भीलवाड़ा : देवउठनी एकादशी का पर्व नजदीक आ गया है और इसके साथ ही शादियों के सीजन की शुरुआत हो जाती है लेकिन देव उठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का सबसे अधिक महत्व माना जाता है हिंदू धर्म में तुलसी का बहुत पौराणिक धार्मिक महत्व है. तुलसी का पौधा सीधा भगवान विष्णु से संबंधित होता है और देवउठनी एकादशी पर देशभर में ठाकुर जी का विवाह तुलसी माता से करवाया जाता है.
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु 4 महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं. इस दिन से भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने के बाद से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत होने लगती है. दिपावली के ग्यारहवें दिन और इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह करते हैं तो कुछ लोग दिया भी जला कर छोटी दीवाली मानते हैं.
भीलवाड़ा शहर के नगर व्यास पंडित कमलेश व्यास ने लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए कहा कि हिंदू धर्म के अनुसार वृंदा का विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से संपन्न हुआ था. लेकिन वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी. एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध होने लगा, तब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा. स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी. जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी. ऐसे में कोई भी देवता जलंधर को पराजित नही कर पा रहे थे. तब भगवान विष्णु जी राय मांगी गई.
भगवान विष्णु ने एक चक्रव्यूह रचा भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए. वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया. इधर, वृंदा का संकल्प टूटा, उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया. इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न सके. वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं. इसके चलते भगवान तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में हाहाकार मच गया. देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया. इसके बाद वे अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं. उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं इस पत्थर रूप में भी रहूंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा.
हिन्दू धर्म में तुलसी का महत्वहिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व होता है. धार्मिक रूप से इसका खास महत्व है. तुलसी माता को मां लक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है, जिनका विवाह शालीग्राम भगवान से हुआ था. शालीग्राम दरअसल, भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का ही रूप मानें जाते हैं. देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार मास बाद जागते हैं.
तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए देव जब उठते हैं तो हरि वल्लभा तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से की जाती है. अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्या दान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है.
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FIRST PUBLISHED : November 10, 2024, 10:55 IST