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Muharram 2023 : मुहर्रम के महीने में 10वें दिन का है विशेष महत्व, रोजी में आती है बरकत, जानें मान्यता

मोहित शर्मा/ करौली. इस्लाम में पवित्र रमजान महीने के बाद मोहर्रम के महीने को सबसे ज्यादा तवज्जो दी जाती है. माहे मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होने के साथ अल्लाह की इबादत के लिए रमजान के बाद सबसे पवित्र माना जाता है. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इस्लाम के सबसे पवित्र माने जाने 4 महीनों में से मोहर्रम एक है. माहे मोहर्रम के इस महीने में आने वाली दसवें दिन का एक अहम महत्व होता है. जिसे इस्लाम में आशूरा कहा जाता हैं.

अल्लाह का महीना है माहे मोहर्रम 

मरकज मस्जिद के मौलवी मुफ्ती इलियास मजाहिरी का कहना है कि माहे मोहर्रम इस साल 20 जुलाई से शुरू हो चुका है. मोहर्रम के महीने से इस्लामी साल की शुरुआत होती है. इसीलिए इस महीने को इस्लाम में पहले महीने का दर्जा दिया गया हैं. उनका कहना है कि माहे मोहर्रम का महीना अल्लाह का महीना है. रमजान के बाद इस्लाम में अफजल का महीना मोहर्रम का है और इसमें भी हर अकलमंद मुसलमान को रोजे रखने चाहिए.

पहले रमजान से पहले रखा जाता था आशूरा का रोजा

मौलवी मजाहिरी के मुताबिक रमजान के महीने के रोजे फर्ज होने से पहले मुस्लिम घरों में आशूरा के रोजे रखे जाते थे. जिसके बाद जब इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पाक महीने रमजान में रोजे फर्ज कर दिए जाने के बाद आशूरा पर रोजा रखना फर्ज नहीं है. लेकिन मौलवी मुक्ति इलियास का ऐसा कहना है कि हजीज में ऐसा जिक्र है कि जो शख्स आशूरा का रोजा रखता है और उसके साथ एक रोजा आशूरा के आगे या पीछे वाले दिन का भी करता है तो अल्लाह, तबारक उसके 1 साल की पिछली गुनाहों को माफ कर देते हैं. इसलिए इस महीने में हर मुसलमान को खुशी से दो रोजे रखने चाहिए.

मौलवी ने यह भी बताया कि हदीज में ऐसा भी आया है कि आशूरा के दिन यानी दसवें मोहर्रम को जों भी मुसलमान अपने परिवार और जरूरतमंदों को खिलाने पिलाने में खूब खर्चा करता है तो अल्लाह ताला पूरे साल भर उसे उसकी रोजी में कुशादगी और खूब बरकत देते हैं.

Tags: Hindi news, Local18, Religion 18

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