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क्या गांधीजी की भी थी कोई लव स्टोरी, कौन थीं सरला चौधरानी, कैसे जिंदगी में आईं, फिर बन गईं संन्यासी

हाइलाइट्स

वो टैगोर की बड़ी बहन की बेटी थींगांधीजी ने उन्हें पहली बार कांग्रेस के अधिवेशन में गाते हुए सुना थागांधीजी के पोते ने अपनी किताब में इस बारे में तफसील से लिखा

गांधीजी के जीवन में कई महिलाएं आईं. कस्तूरबा से उन्होंंने 12 साल की उम्र में शादी की. कुछ उनकी अनुगामी थीं. कुछ सहयोगी. कुछ को उन्होंने बेटी माना लेकिन एक और थी, जिसे गांधी जी अपना दिल दे बैठे थे. वो उनकी जिंदगी में आईं. फिर चली गईं. बाद में संन्यासी बन गईं. इस पर काफी कुछ लिखा भी जा चुका है.

ये भी कहा जाता है कि ये गांधी जी के लंबे राजनीतिक जीवन का फिसलन था, जिससे तमाम तरह की बातें फैलनी शुरू हो गईं थीं. घर टूटने की कगार पर आ गया. सम्मान दाव पर लगने की नौबत आ गई. आखिरकार गांधीजी ने अपने पैर वहां से वापस खींच लिए.

गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में अपने आंदोलनों के कारण जानी पहचानी शख्सियत बन चुके थे. वर्ष 1901 में वो दक्षिण अफ्रीका से भारत, कांग्रेस के अधिवेशन में हिस्सा लेने आए. ये कह सकते हैं कि भारत में अपनी राजनीतिक ज़मीन को टटोलने के लिए आए. कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने एक युवती को कांग्रेस को समर्पित एक गाना लिखकर गाते हुए सुना. तीखे नाक नक्शों वाली प्रखर मेधा की बंगाली सुंदरी. ऐसी महिला, जो अलग थी. गांधीजी के दिमाग पर ज़रूर ही वो युवती कहीं दर्ज़ हो गई.

जब सरला देवी से दोबारा मिलेगांधी जी दोबारा जब 1915 में भारत लौटे तो ये सोचकर लौटे कि अब वो स्थायी तौर पर अपने पराधीन देश को स्वाधीन बनाने की लड़ाई लड़ेंगे. अफ्रीका में किए गए प्रयोगों को भारत में आजमाएंगे. 1917 तक गांधी जी की पहचान देश में बन चुके थी. दो साल बाद उनके असहयोग आंदोलन को पूरे देश में अभूतपूर्व समर्थन मिला.

इस बीच गांधीजी को देशयात्रा के दौरान उस बंगाली महिला से फिर मिलने का अवसर मिला. लेकिन अक्टूबर 1919 जब वो सरला देवी चौधरानी के लाहौर स्थित घर में रुके तो उनके प्यार में पड़ गए. सरला तब 47 साल की थीं और गांधी जी 50 के.

सरला देवी नोबेल पुरस्कार प्राप्त रविंद्र नाथ टैगोर की बड़ी बहन की बेटी थीं. लाहौर में जब गांधी जी उनके घर ठहरे तो उनके पति चौधरी रामभुज दत्त आज़ादी आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण जेल में थे.

गांधीजी की शादी टूटने की नौबत आ गई थी‘कस्तूरबा ए सीक्रेट डायरी’ की लेखिका और देश के प्रसिद्ध उद्योगपति रहे रामकृष्ण डालमिया की बेटी नीलिमा डालमिया कहती हैं, ‘गांधीजी को वाकई सरला देवी से प्यार हो गया था. इस पर कस्तूरबा ने तीखी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की थी. ऐसा लगने लगा था कि गांधी जी की शादी टूट न जाए. इससे उनके घर में भूचाल आ गया. बेटों ने ज़बरदस्त विरोध किया. कुल मिलाकर ये मामला बड़ा स्कैंडल बन गया. बस गांधीजी ने जल्दी ही खुद को इससे किनारे कर लिया.’

पोते ने पहली बार किताब में ज़िक्र कियालाहौर में जिस दौरान गांधी जी सरला के घर में ठहरे, तब सार्वजनिक तौर पर भी लोगों ने उनकी करीबी का अहसास किया. गांधीजी ने अपने भाषण में उनका ज़िक्र किया. गांधीजी के पोते राजमोहन गांधी ने जब तक महात्मा गांधी की बॉयोग्राफी नहीं लिखी थी, तब तक ये प्रेम प्रसंग केवल सुनी सुनाई बातों और अटकलों के रूप में मौजूद था.

वह पहले शख्स थे, जिन्होंने अपनी किताब के माध्यम से इसे सबके सामने ला दिया. राजमोहन ने तब कहा, ” मुझे लगता है कि अगर ईमानदारी से गांधी जी की बॉयोग्राफी लिख रहा हूं तो उनका ये पहलू भी सामने आना चाहिए. बचपन में वो अपने अभिभावकों से लगातार ये बात सुनते थे कि किस तरह अधेड़ उम्र में भी गांधीजी फिसल गए थे.”

तुम मेरे अंदर होगांधी जी ने लाहौर से लौटकर सरला देवी को पत्र लिखा, “तुम मेरे अंदर पूरी शिद्दत से हो, तुमने अपने महान समर्पण के पुरस्कार के बारे में पूछा है, ये तो अपने आप खुद पुरस्कार है.” दक्षिण अफ्रीका के अपने एक मित्र को पत्र लिखा, “सरला का सानिध्य बहुत आत्मीय और अच्छा था, उसने मेरा बहुत ख्याल रखा.” इस प्यार में पड़ने के कुछ महीनों बाद वो सोचने लगे थे कि उनके रिश्ते आध्यात्मिक शादी की तरह हैं.

सरला और गांधी के पत्रगांधीजी ने अपने एक अन्य पत्र में सरलादेवी को लिखा, वो अक्सर उनके सपने देखते हैं. उन्होंने सरलादेवी के पति को बधाई दी कि सरला महान शक्ति या देवी हैं. अगस्त 1920 में गांधीजी के सचिव महादेव देसाई ने रिकॉर्ड किया कि सरलादेवी के पांच-छह पत्र लगातार मिले. एक बार तो सरलादेवी ने गांधीजी को छह दिनों में 12 पत्र लिख डाले. उनके लेख गांधीजी ने यंगइंडिया में लगातार छापे. नवजीवन के पहले पेज पर उनकी कविताएं प्रकाशित कीं. वो उनकी कविताओं की तारीफ करते थे.

एक साल से ऊपर चला ये रिश्ता1920 में जब घर में सरलादेवी को लेकर हालात दुरूह होने लगे तो उदास गांधीजी ने उनसे कहा कि उनके रिश्ते ख़त्म हो जाने चाहिए, क्योंकि मुश्किलें बढ़ रही हैं. दोनों ने अपनी आत्मकथाओं में अपनी निकटताओं का ज़िक्र नहीं किया. बस एक जगह सरला देवी ने ये ज़रूर लिखा, “जब वो राजनीतिक तौर पर मुश्किल में थी तो महात्मा गांधी ने मुझसे कहा, तुम्हारी हंसी राष्ट्रीय संपत्ति है, हमेशा हंसती रहो. ये रिश्ता अक्टूबर 1919 से दिसंबर 1920 तक चला.” कुछ समय पहले जानीमानी महिला साहित्यकार अलका सरावगी ने भी इस पर एक किताब “सरला देवी चौधरानी और गाँधी : बारह अध्याय” लिखी.


महिला साहित्यकार अलका सरावगी की किताब “सरला देवी चौधरानी और गाँधी : बारह अध्याय”

संबंध करीबी भरे थे‘महात्मा गांधीः ब्रह्मचर्य के प्रयोग’ के लेखक और पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर कहते हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं कि दोनों के संबंध बहुत करीबी भरे थे. अपने मित्र केलनबैचर को लिखे पत्र में उन्होंने सरलादेवी और कस्तूरबा की तुलना कर डाली थी. इस पत्र से ही लगता है कि कस्तूरबा के मुकाबले जब उन्हें सरलादेवी का सानिध्य मिला और वो उनके करीब आए.”

सरला का मोहक व्यक्तित्वसरलादेवी का व्यक्तित्व मोहक और भव्य था. उनके लंबे काले बाल लहराते होते थे. गले में मालाएं होती थीं और वो सिल्क की शानदार साड़ियां पहनती थीं. नाक नक्श तीखे थे. आंखों में गहराई दिखती थी. बंगाली साहित्य में सरलादेवी पर अलग से कई किताबें लिखी गई हैं वो समय से बहुत आगे और असाधारण महिला थीं.

उनके पिता कांग्रेस के शुरुआती असरदार नेताओं में थे. कांग्रेस के संस्थापक एओ ह्यूम से उनकी करीबी थी. पिता जानकीनाथ घोषाल मजिस्ट्रेट थे और लंबे समय तक लंदन में रहे. मां स्वर्णकुमारी बांग्ला साहित्य और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थीं.

प्रखर महिलासरला देवी अपने मामा रविंद्रनाथ टैगोर के साथ कोलकाता के टैगोर हाउस में रहीं, लिहाज़ा उन पर अपने ननिहाल का प्रभाव ज्यादा था. इस परिवार ने आज़ादी से पहले देश को कई प्रखर दिमाग वाली हस्तियां दीं. ‘गांधीः वायस ऑफ न्यू एज रिवोल्यूशन’ में लेखक मार्टिन ग्रीन लिखते हैं, ‘वो पढ़ाई में तेज़ थीं. कई विदेशी भाषाओं की जानकार. वो संगीतज्ञ थीं और कवियित्री भी. वो बंगाल के सशस्त्र आज़ादी के आंदोलन में शामिल होने वाली पहली महिला थीं. वो पुरुषों के साथ सोसायटी की मीटिंग में हिस्सा लेती थीं. कुश्ती और बॉक्सिंग के मैच आयोजित कराती थीं.’

बाद में संन्यासिन बन गईंविवेकानंद उन्हें पसंद करते थे. वो अक्सर सिस्टर निवेदिता से उनकी तारीफ करते थे. वो जब वर्ल्ड कांग्रेस में शिकागो गए तो सरला देवी को भी एक युवा लड़की के रूप में अपने साथ ले जाना चाहते थे ताकि दुनिया भारत के उभरते हुए युवाओं को देख सके. लेकिन तब उनके पिता ने इस यात्रा की अनुमति नहीं दी. ‘माई एक्सपेरिमेंट विद गांधी’ में लेखक प्रमोद कपूर ने सरला देवी के बाद के जीवन के बारे में लिखा, ‘1923 में उनके पति का देहांत हो गया. इसके बाद वो लाहौर से कोलकाता चली गईं. 1935 में वो संन्यासिन बनकर हिमालय की ओर चली गईं. 1945 में 73 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया. बाद में सरला देवी के बेटे दीपक का विवाह मगनलाल गांधी की बेटी राधा (गांधीजी की पोती) के साथ हुआ.’

सरला ने महिलाओं के मताधिकार की लड़ाई भी लड़ीद टेलीग्राफ में 28 जनवरी 2024 को प्रकाशित लेख म्यूज टू द महात्मा (Muse to the Mahatma) में प्रसून चौधरी ने लिखा, सरला देवी के लिए सक्रियता की शुरुआत काफ़ी पहले ही हो गई थी; वह अपने मूर्तिभंजक तरीकों के कारण टैगोर परिवार में थोड़ी अलग थीं. उन्होंने बंगाल में उग्र राष्ट्रवाद के लिए मंच तैयार किया और बाद में महिलाओं के मताधिकार के लिए लड़ाई लड़ी.

गांधीजी उनके व्यक्तित्व से चकित थेगांधी के पोते राजमोहन गांधी ने अपनी जीवनी मोहनदास: ए ट्रू स्टोरी ऑफ़ ए मैन, हिज पीपल एंड एन एम्पायर में लिखा है , “गांधी स्पष्ट रूप से उनके व्यक्तित्व से चकित थे और ऐसा लग रहा था कि वे कल्पना कर रहे थे कि ईश्वर चाहता है कि वे भारत को एक नए स्वरूप में ढालें… उन्होंने उनके पति की इस प्रशंसा को दोहराया कि वह एक ‘ महान शक्ति’ या देवी थीं.”

इतिहासकारों, जीवनीकारों और पत्रकारों ने दोनों के बीच के रिश्ते को व्यवस्थित रूप से गलत तरीके से पेश किया है, इसे एक निंदनीय मोड़ दिया. खासकर गांधी द्वारा अपने मित्र हरमन कैलेनबैक को लिखे गए पत्र में “आध्यात्मिक विवाह” वाक्यांश के इस्तेमाल के आधार पर. गांधीवादी विद्वान मार्टिन ग्रीन के “मनोविश्लेषण” ने यहां तक ​​सुझाव दिया कि गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा को तलाक देने के लिए तैयार थे ताकि वह सरला देवी से शादी कर सकें.

बाद में राजमोहन गांधी ने द टेलीग्राफ से एक बातचीत में स्पष्ट किया कि उनके दादा ने वास्तव में सरला देवी के साथ “एक गैर-भौतिक साझेदारी की कल्पना की थी” ताकि “भारत के लिए उनके सपनों को शीघ्र पूरा किया जा सके.”

वह हमेशा गांधीजी की हर बात से सहमत नहीं होती थींइस रिश्ते का सबसे निष्पक्ष विश्लेषण नारीवादी इतिहासकार गेराल्डिन फोर्ब्स ने अपनी किताब लॉस्ट लेटर्स एंड फेमिनिस्ट हिस्ट्रीज़: द पॉलिटिकल फ्रेंडशिप ऑफ़ मोहनदास के. गांधी एंड सरला देवी चौधरानी में किया. उन्होंने गांधी के 79 पत्रों और सरला देवी के चार पत्रों के ज़रिए अपने तर्क पेश किए, जिन्हें सरला देवी के बेटे दीपक ने भी साझा किया.

फोर्ब्स कहते हैं, “सरला देवी वह आज्ञाकारी शिष्य नहीं थीं, जिसे गांधी चाहते थे. उन्हें लगता था कि उनमें भारत की महिला नेता बनने की क्षमता है, वह चाहते थे कि वह एक कार्यक्रम पूरा करें – जिसे उन्होंने खुद तय किया था – ताकि वह नेता बन सकें.” उन्होंने कई चीजें कीं, जो गांधी चाहते थे, जैसे खादी पहनना. हालांकि वह अक्सर गांधी के आदेशों की अवहेलना करती थीं. विभिन्न मुद्दों पर असहमत होती थीं.”

प्रसून चौधरी अपने लेख में कहते हैं कि दूसरे शब्दों में कहें तो गांधी सरला देवी को एक स्वतंत्र महिला के रूप में स्वीकार करने में विफल रहे। यही कारण था कि उनकी दोस्ती एक साल में ही खत्म हो गई. गांधी ने स्वीकार किया कि वह खुद “उस संगति के लायक नहीं थे”.

Tags: Gandhi Jayanti, Love affair, Love Story, Mahatma gandhi, Mahatma Gandhi news

FIRST PUBLISHED : October 2, 2024, 12:48 IST

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