Rajasthan

Diwali 2023: दिवाली पर यहां हस्तनिर्मित चित्र से होती है लक्ष्मी गणेश की पूजा, कई साल पुरानी परंपरा

मोहित शर्मा/करौली. हिंदू धर्म के सबसे बड़े पर्व दीपावली पर लक्ष्मी गणेश के चित्रों की विशेष मान्यता मानी जाती है. देशभर के घर-घर में इन्हीं चित्रों से लक्ष्मी पूजन किया जाता है. मान्यता ऐसी है कि इन चित्रों के बिना लक्ष्मी पूजन अधूरा माना जाता है. वैसे तो जगह-जगह पर अब दीपावली पर लक्ष्मी पूजन प्रिंटेड चित्रों से किया जाता है. लेकिन राजस्थान में एक इकलौता शहर ऐसा है, जहां आज भी दिवाली पर हस्तनिर्मित चित्रों से ही घर-घर में लक्ष्मी पूजन किया जाता है. धार्मिक नगरी करौली में हस्त निर्मित चित्रों से पूजा करने की अपनी एक मान्यता और परंपरा है. जो यहां रियासत काल से निरंतर चली आ रही है. खास बात यह है कि करौली में इन हस्तनिर्मित चित्रों को यहां का स्थानीय चतेरा परिवार सैकड़ो वर्षों और अपनी कई पीढियों से हाथों से तैयार करता आ रहा है. इतना ही नहीं, इन हस्तनिर्मित चित्रों की मांग इतनी रहती है कि धार्मिक नगरी में पूर्ति तक नहीं हो पाती हैं.

राजशाही जमाने से बनते आ रहे हैं हस्तनिर्मित चित्र
लक्ष्मी गणेश के हस्त निर्मित चित्र बनाने की यह परंपरा करौली में राजाशाही जमाने से चली आ रही है. स्थानीय चतेरा परिवार के लोग इन चित्रों को अपनी कई पीढियां से हाथों से कागज पर ब्रश चलाकर बनाते आ रहे हैं. चतेरा परिवार और करौली के सबसे पुराने हुनरमंद 73 वर्षीय चित्रकार रामस्वरूप शर्मा बताते हैं कि यहां के हर मंदिर में यही चित्र दिवाली पर चढ़ाए जाते हैं. करौली में बनने वाले हस्त निर्मित देसी पन्ने की सबसे बड़ी खासियत इसकी शुद्धता होती है. क्योंकि यह हाथों से तैयार की जाती है. शर्मा इस बनने के महत्व के बारे में बताते हैं कि लक्ष्मी पूजन में देसी पन्ने का ही ज्यादा महत्व होता है. बाहर से मशीनों में छपकर आने वाले पन्नों का कोई भी महत्व नहीं होता हैं.

दो दिन में एक पन्ना होता है तैयार 
अपनी कई पीढियां से दिवाली के लिए हस्तनिर्मित पन्ने तैयार करते आ रहे रामस्वरूप शर्मा का कहना है कि हाथों से बनने और बड़ी ही बारीकी से तैयार होने के कारण एक हस्तनिर्मित पन्ने को बनने में 2 दिन का समय लग जाता है. यही वजह है कि आज एक ही परिवार द्वारा बनाए जाने के कारण करौली में इन पन्नों की पूर्ति भी नहीं हो पाती है. चतेरा परिवार के चित्रकार दिनेश शर्मा का कहना है कि पुरानी परंपरा और अच्छी मांग के चलते आज भी हस्तनिर्मित पन्नों की करौली में सबसे ज्यादा मांग रहती है. इन्हें हम 2 महीने पहले ही बनाना शुरू कर देते हैं, फिर भी महत्व होने के कारण लोगों में पूर्ति में देसी पन्ने की पूर्ति नहीं हो पाती है. दिनेश का कहना है कि हम इन पन्नों को परंपरा अनुसार हाथों से बनाते हैं. जिन्हें पहले हमारे बड़े बुजुर्ग, बाप, दादा भी बनाया करते थे.

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FIRST PUBLISHED : November 11, 2023, 22:36 IST

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