Diwali 2024: कुम्हारों की दीपावली फीकी, मिट्टी के दीयों की चमक फैंसी दीयों से कम

धौलपुर: राजस्थान के धौलपुर में दीपावली के अवसर पर घरों को रोशन करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं. महंगाई, मिट्टी की कमी, लदाई-ढुलाई की बढ़ती लागत, और उचित बाजार न मिलने से कुम्हारों की आजीविका मुश्किल में है. मिट्टी से बने पारंपरिक दीपकों की मांग में कमी आने के कारण कुम्हारों का यह पुश्तैनी व्यवसाय संकट में है, और कई कुम्हार अब मजदूरी या अन्य काम करने को मजबूर हो रहे हैं. अब कस्बों में केवल कुछ ही परिवार परंपरागत दीयों का निर्माण कर रहे हैं, जबकि अधिकांश ने यह काम छोड़ दिया है.
पारंपरिक मिट्टी के दीपकों की जगह अब फैंसी दीपक, इलेक्ट्रिक लाइटें और रंग-बिरंगी मोमबत्तियां ले चुकी हैं. गुलाबसिंह प्रजापति, जो कई वर्षों से मिट्टी के दीपक बना रहे हैं, कहते हैं कि तेल में जलने वाले दीयों से हानिकारक जीवाणुओं का नाश होता है और पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलती है. लेकिन बढ़ती महंगाई और बदलते रुझान के कारण उनके द्वारा तैयार किए गए दीयों को खरीददार नहीं मिल पा रहे हैं.
रोजी-रोटी पर संकटजानकारों का मानना है कि दशकों से मिट्टी के दीपकों का प्रचलन लगातार घट रहा है, और कुम्हारों के लिए अपना हस्तनिर्मित सामान बेचना मुश्किल होता जा रहा है. हस्तशिल्प कुम्हारों को बड़ा बाजार न मिलने और फैंसी दीपों की प्रतिस्पर्धा से उनकी स्थिति और कठिन हो गई है.
बाजार में उतारे फैंसी दीएकुम्हार समाज ने इस बार मिट्टी के दीयों को विभिन्न डिजाइनों और रंगों से सजाकर बाजार में उतारा है, जिससे उन्हें उम्मीद है कि ये दीपक चाइनीज और इलेक्ट्रिक दीयों की प्रतिस्पर्धा में टिक पाएंगे. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी मिट्टी के दीयों से दीपावली मनाई जाती है, और परंपरागत तौर पर मिट्टी के दीये ही घर-आंगन को रोशन कर रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 28, 2024, 14:12 IST